पदमराग शुक्ल
मोर गोठ म आप मन ल परतीत भले झन होवय। फेर बात सिरतोन ए सोला बाना सिरतोन। जब ले मंय कालेज म गुरूजी होय हंव मोला हर बरिस कोई न कोई अइसन चेला मिल जाथे जेकर गुरू भक्ति ल देख के मन गदï्गदï् हो जाथे। मोर मन म ऐ मन ल देख के लगथे के हमन अपन क टु अनुभव ल सुरता रख के छात्र जगत बर नकरात्मक धारणा बना लेथन ऐ हर ठीक नोहे।
हमर छत्तीसगढ़ म पहिली जवान आदमी होते नई रिहिन। या तो लइका रहँय 13-14 बरिस के चाहे बुढ़वा बाल बिहाव के कारन असमय लइका बच्चा के फेर म जिम्मेवारी के भार ले दब जावै उनकर जवानी उमंग अउ उफान देखे देखाये के मउका नई मिलत रिहिस हे। आजादी के बाद जब ले बाल बिहाव बंद होइस हे लोगन लैकामन कालेज म पढ़े लिखे लगिन। तभेच ले उँकर चेलिक माटियारी के राग रंग, रचना सृजन मन देखब म आवत हे।
एक साल के बात ये मोर महाविद्यालय के हिन्दी एम. ए. म एक झन आदिवासी छात्रा प्रवेश लिस। एक दिन कहिस - सर, मैं आपके घर पढ़ने आ सकती हूं? मंय कहेवं - सहर्ष ...। मोर दरवाजा शाम के पांच बजे ले सात बजे तक हर विद्यार्थी बर खुला रहिथे। कोनो भी विद्यार्थी बिना भेदभाव के आ सकत हे।
ओ नोनी दूसर दिन ले रोज संझा आये लगिस। संझा के बेरा मोर छत बूड़त बेरा के उदास अउ ललछौहा परकास ले रंग जाथे। पेड़ पउधा के नीचे सूरूज महराज के बूढ़ना बड़ नीक लगथे। चिरई - चिरगुन के बोली। संझौती तरई अउ उजियारी शुक्ल पक्ष के सुरूआती चंदा के पश्चिम आकाश म उदय बड़ सुहावन लगथे। मंय कई दिन ओ नोनी ल निराला जी के संध्यासुन्दरी कविता छत म घूमत - घूमत भाव विभोर होके सुनायेव ...। दिवावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है, वह संध्या सुन्दरी परी सी धीरे - धीरे ...।
जसिन्ता कुजूर नाव के वो छात्रा संध्या सुन्दरी च बरोबर लागै -
नहि बजती उसके हाथों में कोई वीणा
नहि होता कोई अनुराग - राग आलाप
नुपुरों में भी कोई रूनझुन नहि
सिर्फ एक अव्यक्त शब्द सा चुप चुप चुप
है गूंज रहा सब कहीं - और क्या है, कुछ नहीं ...।
एम . ए . पूर्व के पांचों प्रश्र पत्र के बारे म ओ ह अपन कठिनाई लिख लिख के लाये रहै ओखर निवारन पाये के बाद ओकर बारे म अउ टेढ़वा - बेढ़वा सवाल घलाव पूछै। एक दिन विद्यापति पढ़त - पढ़त लखिमादेई के मया के बारे म पूछिस - सर, क्या लखिमादेवी के पति राजा शिवसिंह को लखिमादेवी और विद्यापति का प्रेम सहज ही बरदास्त हो जाता रहा होगा ?
मंय कहेवं - प्रेम सबल सुहाथे। दिक्कत आसक्ति म आथे। जब हम मन ओला चीज समझ के कब्जा चाहे लागथन। प्रेम के सुगंध अतकापवित्र हे के कहीं कोई ल एतराज होय नई सकय। विद्यापति के राधा तभे तो कहिथे - सखि कि पूछति अनुभव मोय
से हो पिरीत अनुराग बखानिय तिल - तिल नूतन होय।
एही बात ल बिचार के चण्डीदास ह लिखे हे -
साबार उपार मानुसेर सत ताहार उपार कछु नाई
सुन रे मानुष भाई ...।
मंय महाविद्यालय म राष्टï्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी घलाव रहेवं। कई रकम के बिद्यार्थी मोर लंग आवय। गांव मं शिविर लगाये के योजना बनावै। सांस्कृतिक कार्यक्रम के रिहर्सल करयँ। जसिन्ता धियान ले सब ल सुनय। एक दिन कहिथे - सर, मोरो गांव म एक दिन के शिविर लगाहौ का ? मोर गांव नानकन हे। मोर घर ह तो कुरिया आवय तभो ले मया दया खूब मिलही।
मंय कहेंव - जसिन्ता, तोर गांव म जरूर शिविर लगही।
जसिन्ता के गांव अजगर बहार छूरी के बाद हंसदो नदिया के ओपार जंगल के बीच म हवय। हमर दल एक दिन के केम्प म पहुंच गे। ढेंकी के कूटे सुगन्धित चाऊर के भात, भांटा मुरई के साग, अमारू पटुआ अउ औंरा के चटनी खूब मजा लेके खाएन। गायेन - बजायेन, भासन देहेन अउ लहूटे लगेन त जसिन्ता के दाई छिंद के एक ठोक गाँथे सरकी देके कहिस - मोर बेटी के गाँथे ये महराज, संकोच म देहे के हिम्मत नई कर सकत हे। ले जावव। बइठिहौ त हमर सुरता आही। मय कहेंव - तोर बेटी तो अतका मयारूक हे के तुंहर सुरता हम मन नई भुलावन तभो ले तुंहर मया के निसानी हमला स्वीकार हे ... कहिके मंय झोंक लेंव।
जब भी साँझ के जसिन्ता पढै़ बर आवै मोला ओहर सरकी म बइठे या लेटे पावै। ओकर मन के उमंग ह ओखर चेहरा म दिखै। धीरे - धीरे दू साल कइसे निकर गे गम नइ मिलिस। रोज साँझ के कभू भाषा बिज्ञान त कभू नवा कबि, कभू जुन्ना कबि, कभू गद्य त कभू पद्य। जसिन्ता परीछा म अच्छा लिखिस अऊ पहली श्रेणी ले पास होगे। परिनाम निकरे के बाद एक दिन आके कहिस - सर, जब तक मोला नउकरी नई मिलै। मंय पी.एच.डी. करना चहत हंव। का बिषय म शोध करवं मोला सुलाह देवव। मंय कहेंव - तंय अपन रूचि बाता कोन म तोर रूचि हवै ?
जसिन्ता कहिस - तुंहर संग पढ़ - पढ़ के मोर मन म लगातार प्रश्र पइदा होये लागिस सर के ये ना हे अमृता न स्याम त ग्रहणेन किमï् । मंय कहेंव महर्षि याज्ञवक्क मैत्रेयी ल का कहे रहिस तंय तो जरूर सुनै होबे जसिन्ता - आत्मनस्तु कामाय सर्व प्रिय भवतु: आत्मानं रे विजानिहि । हां सर, मैं आत्मा पर ही पी.एच.डी. करना चाहती हूं।
मंय कहेंव - ऐ बिषय तो बड़ा कठिन हवै जसिन्ता यद्यपि भक्तिकाल के सब्बो कबि मन आत्मशोध करे हे तहुं कर सकत हस फेर ये उमर म तोर रूचि देख के मोला आश्चर्य होवत हे।
लगभग जसिन्ता एक महिना तक मोर लँग पढ़े नई आइस। एक महिना बाद अचानक एक दिन एक झन सुन्दर लड़का संग मोटर साइकिल म आइस प्रनाम करे के बाद कहिस - एक झन लड़का हे सर,बड़ गुणी,बड़ सज्जन। मोला बड़ मया करथे। आपसे आज्ञा मिलतिस त मंय एकर संग धरतेंव।
मंय कहेंव - मंय कोन होथवं तोला अनुमति देवइया जसिन्ता। ऐ हर निरवा आपसी मामला आय। ऐमा ककरो सलाह काम नई करै।
जसिन्ता चुप होगे त ओ लड़का ह कहिस - मोर नाव लखिलेश शर्मा हे सर, मंय हर कम्प्यूटर इंजीनियर हंव। मंय जसिन्ता के व्यक्तिव ले बड़ प्रभावित हंव। बड़ चाहाथौ पर जसिन्ता आपके अनुमति के बिना मोला जुग जोड़ी बनाए बर तियार नई हे। तभे आप लँग आए हन।
मंय एक क्षण हक्का - बक्का रहि गेंव। इहां मोर निहोरा काबर करत हे ? लड़का कहिस - बात ए ह सर, के जसिन्ता कथे - मया असक्ति विहीन होये चाही फेर आपे बताऔ जसिन्ता के चिन्मय आत्मा ल मंय अखिलेश कइसे जानिहौ। जानय बर तो रूप गुन मया दया ल माध्यम बनायेच बर परिही न ? इही बात ल लेके आज 15 दिन ले हमर चरचा होवथे आखिर म आपके शरण आये हन।
मंय कहेंव - अखिलेश, ये हर सधारन लड़की नोहे। महामाया के रूप ये। एकर अंग ल मया करहौ त जल्दी उब जाहै। लड़का कहिस - मंय ऐकर ले बड़ प्रभावित हंव सर, एकर दिव्य आभा,ध्यान साधना, मातृत्व बोध के कारन मंय ऐकर ले प्रभावित हंव। आप हमला आर्शिबाद देवव सर ...। कहिके ओहर मोर गोड़ ल धर लिस।
मंय दूनो झन ला आसीस देंव अउ कहेंव - जसिन्ता, तोर जीवन म नवा मोड़ आगू म हवय। तोर कल्यान होवय। पर मया दया धरे रहिबे ....।
ओमन मोर ले बिदा हो गिन .....
बी - 5, नेहरू नगर
बिलासपुर 6छ.ग.8
मोर गोठ म आप मन ल परतीत भले झन होवय। फेर बात सिरतोन ए सोला बाना सिरतोन। जब ले मंय कालेज म गुरूजी होय हंव मोला हर बरिस कोई न कोई अइसन चेला मिल जाथे जेकर गुरू भक्ति ल देख के मन गदï्गदï् हो जाथे। मोर मन म ऐ मन ल देख के लगथे के हमन अपन क टु अनुभव ल सुरता रख के छात्र जगत बर नकरात्मक धारणा बना लेथन ऐ हर ठीक नोहे।
हमर छत्तीसगढ़ म पहिली जवान आदमी होते नई रिहिन। या तो लइका रहँय 13-14 बरिस के चाहे बुढ़वा बाल बिहाव के कारन असमय लइका बच्चा के फेर म जिम्मेवारी के भार ले दब जावै उनकर जवानी उमंग अउ उफान देखे देखाये के मउका नई मिलत रिहिस हे। आजादी के बाद जब ले बाल बिहाव बंद होइस हे लोगन लैकामन कालेज म पढ़े लिखे लगिन। तभेच ले उँकर चेलिक माटियारी के राग रंग, रचना सृजन मन देखब म आवत हे।
एक साल के बात ये मोर महाविद्यालय के हिन्दी एम. ए. म एक झन आदिवासी छात्रा प्रवेश लिस। एक दिन कहिस - सर, मैं आपके घर पढ़ने आ सकती हूं? मंय कहेवं - सहर्ष ...। मोर दरवाजा शाम के पांच बजे ले सात बजे तक हर विद्यार्थी बर खुला रहिथे। कोनो भी विद्यार्थी बिना भेदभाव के आ सकत हे।
ओ नोनी दूसर दिन ले रोज संझा आये लगिस। संझा के बेरा मोर छत बूड़त बेरा के उदास अउ ललछौहा परकास ले रंग जाथे। पेड़ पउधा के नीचे सूरूज महराज के बूढ़ना बड़ नीक लगथे। चिरई - चिरगुन के बोली। संझौती तरई अउ उजियारी शुक्ल पक्ष के सुरूआती चंदा के पश्चिम आकाश म उदय बड़ सुहावन लगथे। मंय कई दिन ओ नोनी ल निराला जी के संध्यासुन्दरी कविता छत म घूमत - घूमत भाव विभोर होके सुनायेव ...। दिवावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है, वह संध्या सुन्दरी परी सी धीरे - धीरे ...।
जसिन्ता कुजूर नाव के वो छात्रा संध्या सुन्दरी च बरोबर लागै -
नहि बजती उसके हाथों में कोई वीणा
नहि होता कोई अनुराग - राग आलाप
नुपुरों में भी कोई रूनझुन नहि
सिर्फ एक अव्यक्त शब्द सा चुप चुप चुप
है गूंज रहा सब कहीं - और क्या है, कुछ नहीं ...।
एम . ए . पूर्व के पांचों प्रश्र पत्र के बारे म ओ ह अपन कठिनाई लिख लिख के लाये रहै ओखर निवारन पाये के बाद ओकर बारे म अउ टेढ़वा - बेढ़वा सवाल घलाव पूछै। एक दिन विद्यापति पढ़त - पढ़त लखिमादेई के मया के बारे म पूछिस - सर, क्या लखिमादेवी के पति राजा शिवसिंह को लखिमादेवी और विद्यापति का प्रेम सहज ही बरदास्त हो जाता रहा होगा ?
मंय कहेवं - प्रेम सबल सुहाथे। दिक्कत आसक्ति म आथे। जब हम मन ओला चीज समझ के कब्जा चाहे लागथन। प्रेम के सुगंध अतकापवित्र हे के कहीं कोई ल एतराज होय नई सकय। विद्यापति के राधा तभे तो कहिथे - सखि कि पूछति अनुभव मोय
से हो पिरीत अनुराग बखानिय तिल - तिल नूतन होय।
एही बात ल बिचार के चण्डीदास ह लिखे हे -
साबार उपार मानुसेर सत ताहार उपार कछु नाई
सुन रे मानुष भाई ...।
मंय महाविद्यालय म राष्टï्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी घलाव रहेवं। कई रकम के बिद्यार्थी मोर लंग आवय। गांव मं शिविर लगाये के योजना बनावै। सांस्कृतिक कार्यक्रम के रिहर्सल करयँ। जसिन्ता धियान ले सब ल सुनय। एक दिन कहिथे - सर, मोरो गांव म एक दिन के शिविर लगाहौ का ? मोर गांव नानकन हे। मोर घर ह तो कुरिया आवय तभो ले मया दया खूब मिलही।
मंय कहेंव - जसिन्ता, तोर गांव म जरूर शिविर लगही।
जसिन्ता के गांव अजगर बहार छूरी के बाद हंसदो नदिया के ओपार जंगल के बीच म हवय। हमर दल एक दिन के केम्प म पहुंच गे। ढेंकी के कूटे सुगन्धित चाऊर के भात, भांटा मुरई के साग, अमारू पटुआ अउ औंरा के चटनी खूब मजा लेके खाएन। गायेन - बजायेन, भासन देहेन अउ लहूटे लगेन त जसिन्ता के दाई छिंद के एक ठोक गाँथे सरकी देके कहिस - मोर बेटी के गाँथे ये महराज, संकोच म देहे के हिम्मत नई कर सकत हे। ले जावव। बइठिहौ त हमर सुरता आही। मय कहेंव - तोर बेटी तो अतका मयारूक हे के तुंहर सुरता हम मन नई भुलावन तभो ले तुंहर मया के निसानी हमला स्वीकार हे ... कहिके मंय झोंक लेंव।
जब भी साँझ के जसिन्ता पढै़ बर आवै मोला ओहर सरकी म बइठे या लेटे पावै। ओकर मन के उमंग ह ओखर चेहरा म दिखै। धीरे - धीरे दू साल कइसे निकर गे गम नइ मिलिस। रोज साँझ के कभू भाषा बिज्ञान त कभू नवा कबि, कभू जुन्ना कबि, कभू गद्य त कभू पद्य। जसिन्ता परीछा म अच्छा लिखिस अऊ पहली श्रेणी ले पास होगे। परिनाम निकरे के बाद एक दिन आके कहिस - सर, जब तक मोला नउकरी नई मिलै। मंय पी.एच.डी. करना चहत हंव। का बिषय म शोध करवं मोला सुलाह देवव। मंय कहेंव - तंय अपन रूचि बाता कोन म तोर रूचि हवै ?
जसिन्ता कहिस - तुंहर संग पढ़ - पढ़ के मोर मन म लगातार प्रश्र पइदा होये लागिस सर के ये ना हे अमृता न स्याम त ग्रहणेन किमï् । मंय कहेंव महर्षि याज्ञवक्क मैत्रेयी ल का कहे रहिस तंय तो जरूर सुनै होबे जसिन्ता - आत्मनस्तु कामाय सर्व प्रिय भवतु: आत्मानं रे विजानिहि । हां सर, मैं आत्मा पर ही पी.एच.डी. करना चाहती हूं।
मंय कहेंव - ऐ बिषय तो बड़ा कठिन हवै जसिन्ता यद्यपि भक्तिकाल के सब्बो कबि मन आत्मशोध करे हे तहुं कर सकत हस फेर ये उमर म तोर रूचि देख के मोला आश्चर्य होवत हे।
लगभग जसिन्ता एक महिना तक मोर लँग पढ़े नई आइस। एक महिना बाद अचानक एक दिन एक झन सुन्दर लड़का संग मोटर साइकिल म आइस प्रनाम करे के बाद कहिस - एक झन लड़का हे सर,बड़ गुणी,बड़ सज्जन। मोला बड़ मया करथे। आपसे आज्ञा मिलतिस त मंय एकर संग धरतेंव।
मंय कहेंव - मंय कोन होथवं तोला अनुमति देवइया जसिन्ता। ऐ हर निरवा आपसी मामला आय। ऐमा ककरो सलाह काम नई करै।
जसिन्ता चुप होगे त ओ लड़का ह कहिस - मोर नाव लखिलेश शर्मा हे सर, मंय हर कम्प्यूटर इंजीनियर हंव। मंय जसिन्ता के व्यक्तिव ले बड़ प्रभावित हंव। बड़ चाहाथौ पर जसिन्ता आपके अनुमति के बिना मोला जुग जोड़ी बनाए बर तियार नई हे। तभे आप लँग आए हन।
मंय एक क्षण हक्का - बक्का रहि गेंव। इहां मोर निहोरा काबर करत हे ? लड़का कहिस - बात ए ह सर, के जसिन्ता कथे - मया असक्ति विहीन होये चाही फेर आपे बताऔ जसिन्ता के चिन्मय आत्मा ल मंय अखिलेश कइसे जानिहौ। जानय बर तो रूप गुन मया दया ल माध्यम बनायेच बर परिही न ? इही बात ल लेके आज 15 दिन ले हमर चरचा होवथे आखिर म आपके शरण आये हन।
मंय कहेंव - अखिलेश, ये हर सधारन लड़की नोहे। महामाया के रूप ये। एकर अंग ल मया करहौ त जल्दी उब जाहै। लड़का कहिस - मंय ऐकर ले बड़ प्रभावित हंव सर, एकर दिव्य आभा,ध्यान साधना, मातृत्व बोध के कारन मंय ऐकर ले प्रभावित हंव। आप हमला आर्शिबाद देवव सर ...। कहिके ओहर मोर गोड़ ल धर लिस।
मंय दूनो झन ला आसीस देंव अउ कहेंव - जसिन्ता, तोर जीवन म नवा मोड़ आगू म हवय। तोर कल्यान होवय। पर मया दया धरे रहिबे ....।
ओमन मोर ले बिदा हो गिन .....
बी - 5, नेहरू नगर
बिलासपुर 6छ.ग.8
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