प्रो. डॉ. जयजयराम आनन्द
जीवन की आधार शिला है
सचमुच में बचपन
बचपन कोरा कागज जैसा
जो चाहो सो लिख दो
लेकर रंग - बिरंगी कूँची
मनमाने रँग भर दो।
जग को जैसे भोर मिला है
घर - घर को बचपन।
बचपन निर्मल - निर्झर जैसा
आता जिसे न थमना
पंख लगाकर आसमान में
आता उसको उड़ना
चमन में जैसे फूल खिला है
खिलता है बचपन
बीज पड़ा कीचड़ में जैसे
सरसिज बनकर खिलता
धूल - धूसरित बचपन वैसे
हीरा मोती बनता
कूल कदम्म बीच खेला है
गिरधर का बचपन।
आनंद प्रकाशन प्रेम निकेतन
ई 7/70 अशोका सोसाइटी
अरेरा कालोनी, भोपाल [म.प्र.]
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