व्ही. पी.सिंह
बेटी बनके जनमेव मंय हर तोरे दुआर ।
अरज तंय सुन ले ददा, झन बोहा आंसू के धार ।।
मुहरन हवय मनखे के, फेर रकसा के हे गुन ।
छोटे बड़े नता परेम , मरजाद नइये हे चि टकुन ।।
दया, धरम करम जानय नई कोनो ।
माते हे घमंड म जानय नई कोनो ।।
अइसन लोभी आघु म हाथ कइसे जोरंव ।
करम ल ठठावत जिनगी ल में हा बोरंव ।।
मोर बिहाव बर तंय हर कहां कहां नई भटके ।
दाईज डोर के च Oर मं गाड़ी ह अटके ।
का होगे बाबू, तोर बेटा नोहव मंय ह ।
बेटी होके बेटा ल कमती नोहव मंय ह ।।
घर दुआरी पुरखा के लाज ल मंय हर बचाहू ।
दाई -ददा भुइयां के मरजादा ल राखहूं ।।
बेटी - बेटा म फरक ये रीत कोन च लाइस ।
चानी - चानी मया के भेद ल बताइस ।।
दुलौरिन बेटी मंय हर तोर गला के हार ।
अरज तंय सुन ले ददा झन भुला आंसू के धार ।।
दीया मन के जरावत च ल
हरिनाम के भरोसे, जिनगी सजावत च ल ।
भगवान परेम पगला, धुन म अपन तंय च ल ।।
हे बात ये सिरतोन, बिरबिट अंधियारी रात ।
चोरहा, लुटेरा, सबले, खुद ल बचावत च ल ।।
तंय रद्दा मं अकेला, झन कर फिकर,
गुरू ज्ञान के बरावत तंय च ल ।
संसो फिकर हे सागर, जिनगी के नाव नाजुक,
भगवान के किरपा, हांसत गावत च ल ।
दुनिया तो सिरिफ बईहा, बस चार दिन के मेला,
मन के भरम ल अपन, तंय हटावत च ल ।
बगरे हे चारों खूंट , माया मोह के ये च Oर,
भगति परेम के दीया, मन के जरावत च ल ।।
से.नि. वरिþ अंकेक्षक
लिब वाडर्, महासमुन्द
बेटी बनके जनमेव मंय हर तोरे दुआर ।
अरज तंय सुन ले ददा, झन बोहा आंसू के धार ।।
मुहरन हवय मनखे के, फेर रकसा के हे गुन ।
छोटे बड़े नता परेम , मरजाद नइये हे चि टकुन ।।
दया, धरम करम जानय नई कोनो ।
माते हे घमंड म जानय नई कोनो ।।
अइसन लोभी आघु म हाथ कइसे जोरंव ।
करम ल ठठावत जिनगी ल में हा बोरंव ।।
मोर बिहाव बर तंय हर कहां कहां नई भटके ।
दाईज डोर के च Oर मं गाड़ी ह अटके ।
का होगे बाबू, तोर बेटा नोहव मंय ह ।
बेटी होके बेटा ल कमती नोहव मंय ह ।।
घर दुआरी पुरखा के लाज ल मंय हर बचाहू ।
दाई -ददा भुइयां के मरजादा ल राखहूं ।।
बेटी - बेटा म फरक ये रीत कोन च लाइस ।
चानी - चानी मया के भेद ल बताइस ।।
दुलौरिन बेटी मंय हर तोर गला के हार ।
अरज तंय सुन ले ददा झन भुला आंसू के धार ।।
दीया मन के जरावत च ल
हरिनाम के भरोसे, जिनगी सजावत च ल ।
भगवान परेम पगला, धुन म अपन तंय च ल ।।
हे बात ये सिरतोन, बिरबिट अंधियारी रात ।
चोरहा, लुटेरा, सबले, खुद ल बचावत च ल ।।
तंय रद्दा मं अकेला, झन कर फिकर,
गुरू ज्ञान के बरावत तंय च ल ।
संसो फिकर हे सागर, जिनगी के नाव नाजुक,
भगवान के किरपा, हांसत गावत च ल ।
दुनिया तो सिरिफ बईहा, बस चार दिन के मेला,
मन के भरम ल अपन, तंय हटावत च ल ।
बगरे हे चारों खूंट , माया मोह के ये च Oर,
भगति परेम के दीया, मन के जरावत च ल ।।
से.नि. वरिþ अंकेक्षक
लिब वाडर्, महासमुन्द
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