डाँ. महेन्द्र प्रतापसिंह चौहान
जिसके ऊपर जो भी बीता
जैसा बीता जब भी बीता
का बीता को स‚े दिल से
सबके सम्मुख सहज भाव से
प्रगट कराने बनती कविता ।
जो कुछ कभी न कह सकते है,
कहने में भय में दिखते हैं,
उसको सबसे मधुर रूप में,
अपनी बात बताती कविता ।
देश कभी भी संकट में हो,
देश की जनता जो व्याकुल हो
सबको हिम्मत दे सुख देने,
सबको एक बनाती कविता ।
कविता सबसे प्रेम कराती
देश प्रेम को पास बुलाती
कितने भी जब दूर रहे तब
उनको पास बुलाती कविता
कविता सबकी, कविता में सब
कविता कहते सुनते भी सब,
सबके दिल को एक बनाती
सबके अन्तर भाव मिटाती कविता ।
सलिया पारा, भानुप्रतापपुर, जिला - को·डा (छ.ग.)
जिसके ऊपर जो भी बीता
जैसा बीता जब भी बीता
का बीता को स‚े दिल से
सबके सम्मुख सहज भाव से
प्रगट कराने बनती कविता ।
जो कुछ कभी न कह सकते है,
कहने में भय में दिखते हैं,
उसको सबसे मधुर रूप में,
अपनी बात बताती कविता ।
देश कभी भी संकट में हो,
देश की जनता जो व्याकुल हो
सबको हिम्मत दे सुख देने,
सबको एक बनाती कविता ।
कविता सबसे प्रेम कराती
देश प्रेम को पास बुलाती
कितने भी जब दूर रहे तब
उनको पास बुलाती कविता
कविता सबकी, कविता में सब
कविता कहते सुनते भी सब,
सबके दिल को एक बनाती
सबके अन्तर भाव मिटाती कविता ।
सलिया पारा, भानुप्रतापपुर, जिला - को·डा (छ.ग.)
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