संजय यादव
कृष्णकुमार नायक, जी हां यही नाम था, साहित्याकाश के उस उभरते हुए नक्षत्र का जो असमय ही काल कावलित हो गया। लगभग 27 -28 वर्ष के संभावनाओं ेस ओतप्रोत युवक ने नई कविता से लेकर गीत एवं $ग$जल के क्षेत्र में इतना कुछ दिया जिसे वर्तमान मेें सहेजकर रखना दुष्कर कार्य हो गया है। जिस तरह उभरकर कृष्णकुमार नायक नामक नक्षत्र लुप्त हो गया वह साहित्य जगत के लिए गंभीर हादसा था।
जी हां, कृष्ण कुमार नायक की काफी कुछ अप्रकाशित कृतियाँ उसके भाईयों के पास नष्टï होते पड़ी हुई है। प्रगतिशील लेखक संघ से लेकर संजय यादव, गणेश गुप्ता और शत्रुघनसिंह राजपूत ने यथासंभव कोशिश की कि कृष्णकुमार की अप्रकाशित कृतियों का संपादन कर उसे प्रकाशित किया जाए लेकिन नायक के परिजन कोई न कोई बहाना बनाकर रचनाएं देने के मामले को टाल दिया। वर्तमान में भी स्थिति पूर्ववत है। नायक की रचनाएं जिसमें उसकी कुछ कहानियाँ भी है, कहा नहीं जा सकता कि वह सब कुछ सुरक्षित भी है अथवा नहीं। इतना अवश्य है कि उनकी गीत, $ग$जलें एवं नई कविताओं की संख्या इतनी है कि उसे पुस्तकाकार रूप देकर उसका मूल्यांकन किया जा सकता है।
जी हां, कृष्णकुमार नायक की रचनाएं ओज से भरपूर ही नहीं अपितु विषय वस्तु की दृष्टिï से प्रयोगधर्मिता एवं शब्द प्रयोग की दृष्टिï से अनंत संभावनाओं से ओतप्रोत थी। $ग$जल के क्षेत्र में उसने सुप्रसिद्ध $ग$जलकार दुष्यंत कुमार को अपना गुरू माना था, वहीं नई कविता के क्षेत्र में गिरिजा कुमार माथुर एवं मुक्तिबोध से प्रभावित थे। इन सब के बावजूद उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाने के लिए अपना अलग शिल्प चुन लिया था। नायक की रचनाओं को मांजने एवं दिशा निर्देश देने में स्वर्गीय डॉ. नन्दूलाल चोटिया का अविस्मरणीय योगदान रहा।
उनके गीत, $ग$जल एवं नई कविताओं का प्रथम श्रोता मैं स्वयं था। लघुकथाकार, कवि, लेखक आचार्य सरोज द्विवेदी भी नायक की रचनाओं के प्रबल प्रशंसक थे उन्होंने उसे हरदम लेखन के लिए प्रोत्साहित किया। विवेचना की दृष्टिï से मैंने कई बार उसे परखने की कोशिश की और कुछ त्रुटियाँ भी निकाली लेकिन शिल्प एवं भाव संयोजन की दृष्टिï से उसकी रचनाएं अद्वितीय थी, इसे मैंने काफी गंभीरता से महसूस किया था। सरेश्वर दयाल सक्सेना की नई कविताओं ने उसे काफी प्रभावित किया था। उसने कुछ नई कविताएं उसके पास भेजी थी जिसकी सराहना करते हुए सक्सेना ने उसे अनंत संभावनाओं से ओतप्रोत बतलाया था।
आर्थिक पीड़ा उपेक्षा से आक्रांत कृष्णकुमार नायक ने भूख को आत्मसात करते हुए साहित्य सृजन किया। वह दृढ़ प्रतिज्ञ था और उसे अच्छी तरह मालूम था कि अतिशीघ्र साहित्य के क्षेत्र में उसे सम्मान मिलेगा, लेकिन अल्पायु में उसे मौत अपने पास बुलाकर उसका सब कुछ समेट लेगी, यह उसे नहीं मालूम था। उसकी रचनाएं जिसमें नवगीत, $ग$जल एवं नई कविताएं भी थी सर्वप्रथम साप्ताहिक दावा, छत्तीसगढ़ झलक, छत्तीसगढ़ युग, जनतंत्र जैसे साप्ताहिक समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई। इसके बाद सबेरा संकेत, अमृत संदेश, देशबन्धु एवं नवभारत ने उनकी रचनाओं को काफी कुछ समेटा, अमृत संदेश ने उसकी चार - पांच कविताओं को एक साथ प्रकाशित किया जिससे नायक की रचनाधर्मिता, शिल्प एवं भाव संयोजन की काफी चर्चा हुई। नायक ने कुछ समय तक छत्तीसगढ़ झलक का संपादन भी किया।
नायक यदि कुछ वर्ष और जी लेते तो डां. बल्देवप्रसाद मिश्र, डां. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एवं गजानन माधव मुक्तिबोध की यह नगरी निश्चय ही अटूट रचनाधर्मिता की साक्षी बनती। यह काफी कष्टïप्रद है कि राजनांदगांव के रचना शिल्पियों ने उसे भूला दिया। बेरोजगारी भोग रहे नायक को तब एक ठौर मिला जब उसे शिक्षक की नौकरी मिल गई लेकिन आदिवासी अंचल में हुई नियुक्ति को वे पचा इसलिए नहीं पाए कि वहां सतत अध्ययन, मनन एवं लेखन की सुविधा नहीं मिल रही थी। ले देकर उसने डोंगरगांव में अपना तबादला कराया। इसके कुछ समय बाद मोतीपुर रेल्वे पर चलते हुए अपनी सोच को केन्द्रित रखने के कारण रेल दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई। भाई सर्वेद स्वर्गीय कृष्णकुमार नायक के विस्मृत साहित्यिक अवदान को रेखांकित करना चाहते हैं, उनके आग्रह पर कृष्णकुमार नायक को मेरी विनम्र संस्मरण - शोकांजलि।
सृजन आवास, ग्राम - बोरी
राजनांदगांव 6 छग. 8
कृष्णकुमार नायक, जी हां यही नाम था, साहित्याकाश के उस उभरते हुए नक्षत्र का जो असमय ही काल कावलित हो गया। लगभग 27 -28 वर्ष के संभावनाओं ेस ओतप्रोत युवक ने नई कविता से लेकर गीत एवं $ग$जल के क्षेत्र में इतना कुछ दिया जिसे वर्तमान मेें सहेजकर रखना दुष्कर कार्य हो गया है। जिस तरह उभरकर कृष्णकुमार नायक नामक नक्षत्र लुप्त हो गया वह साहित्य जगत के लिए गंभीर हादसा था।
जी हां, कृष्ण कुमार नायक की काफी कुछ अप्रकाशित कृतियाँ उसके भाईयों के पास नष्टï होते पड़ी हुई है। प्रगतिशील लेखक संघ से लेकर संजय यादव, गणेश गुप्ता और शत्रुघनसिंह राजपूत ने यथासंभव कोशिश की कि कृष्णकुमार की अप्रकाशित कृतियों का संपादन कर उसे प्रकाशित किया जाए लेकिन नायक के परिजन कोई न कोई बहाना बनाकर रचनाएं देने के मामले को टाल दिया। वर्तमान में भी स्थिति पूर्ववत है। नायक की रचनाएं जिसमें उसकी कुछ कहानियाँ भी है, कहा नहीं जा सकता कि वह सब कुछ सुरक्षित भी है अथवा नहीं। इतना अवश्य है कि उनकी गीत, $ग$जलें एवं नई कविताओं की संख्या इतनी है कि उसे पुस्तकाकार रूप देकर उसका मूल्यांकन किया जा सकता है।
जी हां, कृष्णकुमार नायक की रचनाएं ओज से भरपूर ही नहीं अपितु विषय वस्तु की दृष्टिï से प्रयोगधर्मिता एवं शब्द प्रयोग की दृष्टिï से अनंत संभावनाओं से ओतप्रोत थी। $ग$जल के क्षेत्र में उसने सुप्रसिद्ध $ग$जलकार दुष्यंत कुमार को अपना गुरू माना था, वहीं नई कविता के क्षेत्र में गिरिजा कुमार माथुर एवं मुक्तिबोध से प्रभावित थे। इन सब के बावजूद उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाने के लिए अपना अलग शिल्प चुन लिया था। नायक की रचनाओं को मांजने एवं दिशा निर्देश देने में स्वर्गीय डॉ. नन्दूलाल चोटिया का अविस्मरणीय योगदान रहा।
उनके गीत, $ग$जल एवं नई कविताओं का प्रथम श्रोता मैं स्वयं था। लघुकथाकार, कवि, लेखक आचार्य सरोज द्विवेदी भी नायक की रचनाओं के प्रबल प्रशंसक थे उन्होंने उसे हरदम लेखन के लिए प्रोत्साहित किया। विवेचना की दृष्टिï से मैंने कई बार उसे परखने की कोशिश की और कुछ त्रुटियाँ भी निकाली लेकिन शिल्प एवं भाव संयोजन की दृष्टिï से उसकी रचनाएं अद्वितीय थी, इसे मैंने काफी गंभीरता से महसूस किया था। सरेश्वर दयाल सक्सेना की नई कविताओं ने उसे काफी प्रभावित किया था। उसने कुछ नई कविताएं उसके पास भेजी थी जिसकी सराहना करते हुए सक्सेना ने उसे अनंत संभावनाओं से ओतप्रोत बतलाया था।
आर्थिक पीड़ा उपेक्षा से आक्रांत कृष्णकुमार नायक ने भूख को आत्मसात करते हुए साहित्य सृजन किया। वह दृढ़ प्रतिज्ञ था और उसे अच्छी तरह मालूम था कि अतिशीघ्र साहित्य के क्षेत्र में उसे सम्मान मिलेगा, लेकिन अल्पायु में उसे मौत अपने पास बुलाकर उसका सब कुछ समेट लेगी, यह उसे नहीं मालूम था। उसकी रचनाएं जिसमें नवगीत, $ग$जल एवं नई कविताएं भी थी सर्वप्रथम साप्ताहिक दावा, छत्तीसगढ़ झलक, छत्तीसगढ़ युग, जनतंत्र जैसे साप्ताहिक समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई। इसके बाद सबेरा संकेत, अमृत संदेश, देशबन्धु एवं नवभारत ने उनकी रचनाओं को काफी कुछ समेटा, अमृत संदेश ने उसकी चार - पांच कविताओं को एक साथ प्रकाशित किया जिससे नायक की रचनाधर्मिता, शिल्प एवं भाव संयोजन की काफी चर्चा हुई। नायक ने कुछ समय तक छत्तीसगढ़ झलक का संपादन भी किया।
नायक यदि कुछ वर्ष और जी लेते तो डां. बल्देवप्रसाद मिश्र, डां. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एवं गजानन माधव मुक्तिबोध की यह नगरी निश्चय ही अटूट रचनाधर्मिता की साक्षी बनती। यह काफी कष्टïप्रद है कि राजनांदगांव के रचना शिल्पियों ने उसे भूला दिया। बेरोजगारी भोग रहे नायक को तब एक ठौर मिला जब उसे शिक्षक की नौकरी मिल गई लेकिन आदिवासी अंचल में हुई नियुक्ति को वे पचा इसलिए नहीं पाए कि वहां सतत अध्ययन, मनन एवं लेखन की सुविधा नहीं मिल रही थी। ले देकर उसने डोंगरगांव में अपना तबादला कराया। इसके कुछ समय बाद मोतीपुर रेल्वे पर चलते हुए अपनी सोच को केन्द्रित रखने के कारण रेल दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई। भाई सर्वेद स्वर्गीय कृष्णकुमार नायक के विस्मृत साहित्यिक अवदान को रेखांकित करना चाहते हैं, उनके आग्रह पर कृष्णकुमार नायक को मेरी विनम्र संस्मरण - शोकांजलि।
सृजन आवास, ग्राम - बोरी
राजनांदगांव 6 छग. 8
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