व्ही. पी. सिंह
धरती के कण - कण में
करूणा बन लेटी हूं मैं
बाबूजी तुम्हारी प्यारी
बेटी हूं मैं
मुझे जन्मने का हक दो
बेटा सा रहने का हक दो
अन्तर में सृष्टिï समेटी हूं मैं
बाबूजी तुम्हारी प्यारी
बेटी हूं मैं
कभी बहन, पत्नी बनती
मुझसे घर गृहस्थी सजती
माता बन वात्सल्य देती हूं
बाबूजी तुम्हारी प्यारी
बेटी हूं मैं
बेटे - बेटी का क्यों करते अंतर
दहेज बलि चढ़ाते क्यों कर
ममता की लहलहाती खेती हूं मैं
बाबूजी तुम्हारी प्यारी
बेटी हूं मैं
सेवानिवृत वरिष्ठï अंकेक्षण
क्लब पारा,
महासमुन्द ( छ.ग.)
धरती के कण - कण में
करूणा बन लेटी हूं मैं
बाबूजी तुम्हारी प्यारी
बेटी हूं मैं
मुझे जन्मने का हक दो
बेटा सा रहने का हक दो
अन्तर में सृष्टिï समेटी हूं मैं
बाबूजी तुम्हारी प्यारी
बेटी हूं मैं
कभी बहन, पत्नी बनती
मुझसे घर गृहस्थी सजती
माता बन वात्सल्य देती हूं
बाबूजी तुम्हारी प्यारी
बेटी हूं मैं
बेटे - बेटी का क्यों करते अंतर
दहेज बलि चढ़ाते क्यों कर
ममता की लहलहाती खेती हूं मैं
बाबूजी तुम्हारी प्यारी
बेटी हूं मैं
सेवानिवृत वरिष्ठï अंकेक्षण
क्लब पारा,
महासमुन्द ( छ.ग.)
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