आत्माराम कोशा ' अमात्य'
चलो रोटी पर लिखते हैं कविता
चलो बोटी पर लिखते हैं कविता
चलो रोटी - बेटी पर लिखते हैं कविता
चलो रोती बेटी पर लिखते हैं कविता
पर / लिखने के पहले / थोड़ा सोचे...?
कविता क्या रोटी बन, पेट की आग बुझायेगी ?
कविता क्या बोटी बन, अंग की दाहकता को उकसायेगी ?
क्या कविता चुप कर सकेगी रोती हुई बेटी को
या
अनंतकाल से आ रही ..
रोटी बेटी की समस्या को सुलाझायेगी ?
नहीं !! कविता ये सब नहीं करती
वह केवल एक भ्रम पैदा करती है.
वह,चांद को रोटी बना भूखे को भुलवारती है.
भूखे की अभिष्सा को कई - कई परतों में उघारती है.
कभी लोरी की माया से सुलवा देती है रोते को
तो
कभी नये रिस्तो में नया सम्बंधाधार देती है
इसलिए क्या जरूरी है
लिखने के पहले हम सोचे
रोटी / बेटी/ बोटी या कविता
पुरानी मंडी चौंक
राजनांदगांव (छग.)
चलो रोटी पर लिखते हैं कविता
चलो बोटी पर लिखते हैं कविता
चलो रोटी - बेटी पर लिखते हैं कविता
चलो रोती बेटी पर लिखते हैं कविता
पर / लिखने के पहले / थोड़ा सोचे...?
कविता क्या रोटी बन, पेट की आग बुझायेगी ?
कविता क्या बोटी बन, अंग की दाहकता को उकसायेगी ?
क्या कविता चुप कर सकेगी रोती हुई बेटी को
या
अनंतकाल से आ रही ..
रोटी बेटी की समस्या को सुलाझायेगी ?
नहीं !! कविता ये सब नहीं करती
वह केवल एक भ्रम पैदा करती है.
वह,चांद को रोटी बना भूखे को भुलवारती है.
भूखे की अभिष्सा को कई - कई परतों में उघारती है.
कभी लोरी की माया से सुलवा देती है रोते को
तो
कभी नये रिस्तो में नया सम्बंधाधार देती है
इसलिए क्या जरूरी है
लिखने के पहले हम सोचे
रोटी / बेटी/ बोटी या कविता
पुरानी मंडी चौंक
राजनांदगांव (छग.)
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