कांशीपुरी कुंदन
जब से भिड़ाऊराम जी पदï्मश्री से विभूषित हुए हैं मेरा मन पदï्मश्री की दुनिया में ठीक उसी तरह भटक रहा है जैसे कुर्सी विहीन नेता कुर्सी के लिए। भिड़ाऊरामजी द्वारा उच्चारित अनमोल वाणी मेरे कानों में आज भी दादाजी की सीख की तरह गूंज रही है। यदि आप पदï्मश्री या पुरस्कार से मुंतजिर है तो घबराने की जरूरत नहीं है। पुरस्कार बिकता है दूल्हे जैसा जो भी पुरस्कार लेना चाहते हैं या जिसके काबिल अपने आपको समझते हैं उसकी प्राप्ति सीमा में घुसिए और उसका आनंद उठाइए।
धीरे - धीरे मेरा मन छुटका चोर की तरह जो छोटी - छोटी चोरियों के हुनर जानने आजमाने के बाद डाका डालने की कला में महारत हासिल कर लेता है। उसी प्रकार छोटी - छोटी पुरस्कार हड़पने के गुर जानने से लेकर बड़े - बड़े पुरस्कार हथियाने का हसीन ख्वाब देखने लगा। इस हसीन ख्वाब का आनंद शुरू - शुरू में मैं रात्रि में लेता था। कहते हैं जिस किसी शरीफजादा को इसकी चस्का लग जाए तो ड्रग से भी खतरनाक लत साबित होती है। इसीलिए मैं आजकल केजुवल लीव लेकर खूबसूरत सपने देखत हंू। फिर भी मन नहीं भरता है।
इसी सिलसिले में दिन के बारह बजे मुंगेरीलाल की हसीन सपने की तरह हम भी देखने लगे कि राष्टï्रपति भवन का सील लगा हुआ लिफाफा लिए डाकिया मेरे द्वार खड़ा है। उसके हाथ से मैं लिफाफा झटक लेता हूं। आनन फानन में उसके अन्दर चमकदार कागज में मुद्रित इबारत बांचते ही मेरे मुंह से अनायस सीटी बजने लगती है। सुरीली सीटी को सुनकर मेरी श्रीमती की निद्रा भंग हो जाती है। निंद्रा भंग होने पर वह ऐसे गुर्राती है जैसे कोई मंत्री संसद भंग हो जाने पर। लेकिन मेरे हाथ में शानदार चमकदार लिफाफा देखकर अपने क्रोध को जब्त कर मुझे बच्चों सा भुलावा देकर लिफाफा मेरे हाथ से झपट लेती है। चूकि धोखे से प्राथमिक विद्यालय की शोभा बढ़ा चुकी है अस्तु वह ऐसे खुश होती जैसे किसी कंजूस को रास्ते में पड़ा पैसा मिल जाए। या कोई दावत का न्यौता दे जाए। बेचारी बमुश्किल रात बिताई इतनी खुशी उसे मुझसे शादी करने पर नहीं हुई थी। तड़के चार बजे इस धमाकेदार समाचार को पड़ोस में प्रसारित करने के लिए वायरलेस को भी पीछे नहीं छोड़ गई। बच्चे औकात से लम्बी फेहरिस्त बनाने में मशगूल हो गए। कुंदनजी पदï्मश्री से विभूषित होने वाले हैं। खबर दावानल की तरह मुहल्ले से होते हुए समूचे शहर में फैल गई। तमाम शुभचिंतकों की हम तेरे हैं तेरे ही रहेंगे की मुद्रा में घर के सामने लम्बी लाइन लगने लगी। अखबार वाले जो मेरी रचनाओं को कूड़ेदान को सादर समर्पित कर देते हैं वे मोटे अक्षरों में प्रख्यात व्यंग्यकार कुंदनजी पुरस्कृत मुख्यपृष्ठï पर छापकर गौरवान्वित होने लगे। इन्टरव्यूह के लिए पत्रकार दल पहुंचने लगे मेरे चित्र कई पोज में उतारी जाने लगी।
सबसे अनोखी बात यह हुई उधारी लेने वालों के डर से मैं सन्यास लेने की मानसिकता बना चुका था वे मेरे खुशामद करने लगे। पुन: उधारी देने के लिए घर के चक्कर मारने लगे। श्रीमती वक्त हाथ से जाने नहीं दी। इस प्रकार के जितने भी हितैषी, सेवाभावी विचारधारा के प्राणी थे सबको उन्होंने जी भर के अवसर दी। सभी हितैषियों ने सामानों से घर को लबालब भर दिए।
मुझे बाजे गाजेे के साथ स्थानीय रेल्वे प्लेटफार्म पर राष्टï्रपति भवन यानि दिल्ली जाने के लिए छोड़ा गया। इतनी आत्मीय स्वागत सत्कार मेरी शादी के समय नहीं हुआ था। इस प्रभावशाली स्वागत को देखकर मेरा मूड फिर शादी करने का बन रहा था कि श्रीमती जी आदतन आदेश मार दी - सुनो जी, पुरस्कार की धन प्राप्त होते ही तत्काल बैंक ड्राफ्ट से भेज देना। आजकल हमारे देश में चोर उच्चकों की कमी नहीं है। कब किसको कंगाल बना दे, दूसरी बात साथ में रूपये लेकर इतनी लम्बी यात्रा करना भी विश्वसनीय नहीं रह गया है। रेलों, बसों का भी कोई भरोसा नहीं रहता। कब किस नदी में समा जाए। भगवान करे ऐसी वैसी बात न हो पर भविष्य को कौन जानता है। दूसरी बात आजकल मुआवजे में दम नहीं रह गया है। हवाई यात्रा करते तो कुछ और बात थी। श्रीमती जी के बातों से मेरा विश्वास पुख्ता हो चला था कि उसे मेरे पुरस्कृत होने या मुझे मान मिलने की खुशी नहीं थी वरन पुरस्कार की धन राशि प्राप्त होने पर थी जिससे वह अपनी मनपसंद की वस्तुएं खरीद सके जिसके लिए लम्बी सीख मुझे दे रही थी।
खैर, साहब भारतीय रेल का सुख भोगने प्रभु की याद करते या कभी जोर से हनुमान चालिसा पढ़ते हुए हम दिल्ली की सुहाना सफर तय करने लगे। स्टेशनों के स्वास्थ्यवर्धक छोले - भटुरे गटकने के साथ ही मुफ्त में हिचकोले खाते यानि व्यायाम करते हुए हम रेल परम्परानुसार सिर्फ तीन घंटे विलम्ब से दिल्ली प्लेटफार्म पर उतरने की गरज से सर्व - सुविधा युक्त रेलगाड़ी को छोड़ने का मूड बनाने लगे। गजगामिनी सी रेंगती हुई रेल प्लेटफार्म पर खड़ी हो गई। सह यात्री एक - एक कर अतिक्रमण किए सीटों को छोड़ने लगे गोया अतिक्रमण हटाओ श्ुारू हो गया हो हमने भी अपने सामानों की सुधि ली। हमारे होश उड़ गए। घिग्घी बंध गई। किस्मत फूटी निकली। उठाईगिरी से खानदानी ताल्लुकात रखने वाले जरूरतमंद चोर भाई ने मित्रों से काम चलाऊ सरकार की तरह उधार ली गई अटैची, कपड़े, राष्ट्रपति भवन का आमंत्रण पत्र आदि पर हाथ साफ कर गया था। मेरे पास राष्टï्रपति भवन जाने के बदले रेल पटरियों में लेटकर मुफ्त में स्वर्ग जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। परन्तु एक टिकिट कलेक्टर यमराज की तरह सामने ही खड़ा था। लाख स्पष्टïीकरण देने के बावजूद टी.टी. आई ने मेरी एक न सुनी और मुझे बिना टिकट यात्रा करने के जुर्म मेंं रेलयात्री से जेलयात्री होने का सुअवसर प्रदान किया।
सलाखों के बीच पदमï्श्री से अलंकृत होने का हसीन सपने देखने के बदले हकीकत के आंसू बहाने लगा। दिमाग में अनेकों विचार आने जाने लगे। जैसे कर्ज लेने के बाद नहीं पटाने पर कर्जदारों का आना - जाना जारी हो जाता है। कभी मन ही मन डाक वालों को कोसने लगता कि डाक परम्परानुसार डाके के डाकू इस लिफाफे को भी डकार गये होते तो आज चुल्लू भर पानी में डूबने की नौबत नहीं आती। दूसरी बात जब तक कि लार्ड डलहौजी के वंशज, साहित्य के मठाधीश व्यवस्था पर कुंडली मारे हुए बैठे रहेंगे तब तक प्रतिभाओं की हत्या होती रहेगी और हमारे जैसे प्रतिभा सम्पन्न निरीह साहित्यकार सिर्फ हसीन सपने देखते और बेचते रहेंगे। जैसे पुख्ता विचार जोर मारने ही वाला था कि मेरे सात वर्षीय बालक ने यह कह कर मुझे जगा दिया कि पापा उठो, फीस नहीं भरने के कारण मेरा नाम स्कूल से कट गया .....।
मातृछाया
मेला मैदान, राजिम
जिला - रायपुर6छ.ग.8
जब से भिड़ाऊराम जी पदï्मश्री से विभूषित हुए हैं मेरा मन पदï्मश्री की दुनिया में ठीक उसी तरह भटक रहा है जैसे कुर्सी विहीन नेता कुर्सी के लिए। भिड़ाऊरामजी द्वारा उच्चारित अनमोल वाणी मेरे कानों में आज भी दादाजी की सीख की तरह गूंज रही है। यदि आप पदï्मश्री या पुरस्कार से मुंतजिर है तो घबराने की जरूरत नहीं है। पुरस्कार बिकता है दूल्हे जैसा जो भी पुरस्कार लेना चाहते हैं या जिसके काबिल अपने आपको समझते हैं उसकी प्राप्ति सीमा में घुसिए और उसका आनंद उठाइए।
धीरे - धीरे मेरा मन छुटका चोर की तरह जो छोटी - छोटी चोरियों के हुनर जानने आजमाने के बाद डाका डालने की कला में महारत हासिल कर लेता है। उसी प्रकार छोटी - छोटी पुरस्कार हड़पने के गुर जानने से लेकर बड़े - बड़े पुरस्कार हथियाने का हसीन ख्वाब देखने लगा। इस हसीन ख्वाब का आनंद शुरू - शुरू में मैं रात्रि में लेता था। कहते हैं जिस किसी शरीफजादा को इसकी चस्का लग जाए तो ड्रग से भी खतरनाक लत साबित होती है। इसीलिए मैं आजकल केजुवल लीव लेकर खूबसूरत सपने देखत हंू। फिर भी मन नहीं भरता है।
इसी सिलसिले में दिन के बारह बजे मुंगेरीलाल की हसीन सपने की तरह हम भी देखने लगे कि राष्टï्रपति भवन का सील लगा हुआ लिफाफा लिए डाकिया मेरे द्वार खड़ा है। उसके हाथ से मैं लिफाफा झटक लेता हूं। आनन फानन में उसके अन्दर चमकदार कागज में मुद्रित इबारत बांचते ही मेरे मुंह से अनायस सीटी बजने लगती है। सुरीली सीटी को सुनकर मेरी श्रीमती की निद्रा भंग हो जाती है। निंद्रा भंग होने पर वह ऐसे गुर्राती है जैसे कोई मंत्री संसद भंग हो जाने पर। लेकिन मेरे हाथ में शानदार चमकदार लिफाफा देखकर अपने क्रोध को जब्त कर मुझे बच्चों सा भुलावा देकर लिफाफा मेरे हाथ से झपट लेती है। चूकि धोखे से प्राथमिक विद्यालय की शोभा बढ़ा चुकी है अस्तु वह ऐसे खुश होती जैसे किसी कंजूस को रास्ते में पड़ा पैसा मिल जाए। या कोई दावत का न्यौता दे जाए। बेचारी बमुश्किल रात बिताई इतनी खुशी उसे मुझसे शादी करने पर नहीं हुई थी। तड़के चार बजे इस धमाकेदार समाचार को पड़ोस में प्रसारित करने के लिए वायरलेस को भी पीछे नहीं छोड़ गई। बच्चे औकात से लम्बी फेहरिस्त बनाने में मशगूल हो गए। कुंदनजी पदï्मश्री से विभूषित होने वाले हैं। खबर दावानल की तरह मुहल्ले से होते हुए समूचे शहर में फैल गई। तमाम शुभचिंतकों की हम तेरे हैं तेरे ही रहेंगे की मुद्रा में घर के सामने लम्बी लाइन लगने लगी। अखबार वाले जो मेरी रचनाओं को कूड़ेदान को सादर समर्पित कर देते हैं वे मोटे अक्षरों में प्रख्यात व्यंग्यकार कुंदनजी पुरस्कृत मुख्यपृष्ठï पर छापकर गौरवान्वित होने लगे। इन्टरव्यूह के लिए पत्रकार दल पहुंचने लगे मेरे चित्र कई पोज में उतारी जाने लगी।
सबसे अनोखी बात यह हुई उधारी लेने वालों के डर से मैं सन्यास लेने की मानसिकता बना चुका था वे मेरे खुशामद करने लगे। पुन: उधारी देने के लिए घर के चक्कर मारने लगे। श्रीमती वक्त हाथ से जाने नहीं दी। इस प्रकार के जितने भी हितैषी, सेवाभावी विचारधारा के प्राणी थे सबको उन्होंने जी भर के अवसर दी। सभी हितैषियों ने सामानों से घर को लबालब भर दिए।
मुझे बाजे गाजेे के साथ स्थानीय रेल्वे प्लेटफार्म पर राष्टï्रपति भवन यानि दिल्ली जाने के लिए छोड़ा गया। इतनी आत्मीय स्वागत सत्कार मेरी शादी के समय नहीं हुआ था। इस प्रभावशाली स्वागत को देखकर मेरा मूड फिर शादी करने का बन रहा था कि श्रीमती जी आदतन आदेश मार दी - सुनो जी, पुरस्कार की धन प्राप्त होते ही तत्काल बैंक ड्राफ्ट से भेज देना। आजकल हमारे देश में चोर उच्चकों की कमी नहीं है। कब किसको कंगाल बना दे, दूसरी बात साथ में रूपये लेकर इतनी लम्बी यात्रा करना भी विश्वसनीय नहीं रह गया है। रेलों, बसों का भी कोई भरोसा नहीं रहता। कब किस नदी में समा जाए। भगवान करे ऐसी वैसी बात न हो पर भविष्य को कौन जानता है। दूसरी बात आजकल मुआवजे में दम नहीं रह गया है। हवाई यात्रा करते तो कुछ और बात थी। श्रीमती जी के बातों से मेरा विश्वास पुख्ता हो चला था कि उसे मेरे पुरस्कृत होने या मुझे मान मिलने की खुशी नहीं थी वरन पुरस्कार की धन राशि प्राप्त होने पर थी जिससे वह अपनी मनपसंद की वस्तुएं खरीद सके जिसके लिए लम्बी सीख मुझे दे रही थी।
खैर, साहब भारतीय रेल का सुख भोगने प्रभु की याद करते या कभी जोर से हनुमान चालिसा पढ़ते हुए हम दिल्ली की सुहाना सफर तय करने लगे। स्टेशनों के स्वास्थ्यवर्धक छोले - भटुरे गटकने के साथ ही मुफ्त में हिचकोले खाते यानि व्यायाम करते हुए हम रेल परम्परानुसार सिर्फ तीन घंटे विलम्ब से दिल्ली प्लेटफार्म पर उतरने की गरज से सर्व - सुविधा युक्त रेलगाड़ी को छोड़ने का मूड बनाने लगे। गजगामिनी सी रेंगती हुई रेल प्लेटफार्म पर खड़ी हो गई। सह यात्री एक - एक कर अतिक्रमण किए सीटों को छोड़ने लगे गोया अतिक्रमण हटाओ श्ुारू हो गया हो हमने भी अपने सामानों की सुधि ली। हमारे होश उड़ गए। घिग्घी बंध गई। किस्मत फूटी निकली। उठाईगिरी से खानदानी ताल्लुकात रखने वाले जरूरतमंद चोर भाई ने मित्रों से काम चलाऊ सरकार की तरह उधार ली गई अटैची, कपड़े, राष्ट्रपति भवन का आमंत्रण पत्र आदि पर हाथ साफ कर गया था। मेरे पास राष्टï्रपति भवन जाने के बदले रेल पटरियों में लेटकर मुफ्त में स्वर्ग जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। परन्तु एक टिकिट कलेक्टर यमराज की तरह सामने ही खड़ा था। लाख स्पष्टïीकरण देने के बावजूद टी.टी. आई ने मेरी एक न सुनी और मुझे बिना टिकट यात्रा करने के जुर्म मेंं रेलयात्री से जेलयात्री होने का सुअवसर प्रदान किया।
सलाखों के बीच पदमï्श्री से अलंकृत होने का हसीन सपने देखने के बदले हकीकत के आंसू बहाने लगा। दिमाग में अनेकों विचार आने जाने लगे। जैसे कर्ज लेने के बाद नहीं पटाने पर कर्जदारों का आना - जाना जारी हो जाता है। कभी मन ही मन डाक वालों को कोसने लगता कि डाक परम्परानुसार डाके के डाकू इस लिफाफे को भी डकार गये होते तो आज चुल्लू भर पानी में डूबने की नौबत नहीं आती। दूसरी बात जब तक कि लार्ड डलहौजी के वंशज, साहित्य के मठाधीश व्यवस्था पर कुंडली मारे हुए बैठे रहेंगे तब तक प्रतिभाओं की हत्या होती रहेगी और हमारे जैसे प्रतिभा सम्पन्न निरीह साहित्यकार सिर्फ हसीन सपने देखते और बेचते रहेंगे। जैसे पुख्ता विचार जोर मारने ही वाला था कि मेरे सात वर्षीय बालक ने यह कह कर मुझे जगा दिया कि पापा उठो, फीस नहीं भरने के कारण मेरा नाम स्कूल से कट गया .....।
मातृछाया
मेला मैदान, राजिम
जिला - रायपुर6छ.ग.8
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें