डां. नथमल ''झँवर ''
बचपन से ही कविता लिखने का शौक पता नहीं कैसे चर्राया। विद्यार्थी जीवन से ही कविता लिखने का धुन सवार।पढ़ाई - लिखाई गई चूल्हें में, लिखते थे तो केवल कविता। जैसे हम शक्सपीयर बन जायेंगे। फिर उन कविताओं को प्रकाशनार्थ भेजना। शुरू के दो - तीन साल तक तो सभी रचनाएं च्च् संपादक के अभिवादन व खेद सहित ज्ज् लौट आई। फिर भी हम हिम्मत कहां हारने वाले थे। मां - बाप की गाढ़ी कमाई फूँके जाने की हमें तनिक भी चिन्ता नहीं थी। और एक दिन ऐसा आया कि स्थानीय पत्र - पत्रिकाओं में छपना शुरू हो गए। बस फिर क्या था,चर्चित हो गए निर्मोही जी। उन दिनों हम अपना उपनाम च्च् निर्मोही ज्ज् ही लिखा करते। हमें क्या पता था - यह शौक हमें एक दिन जेल तक ले जाएगा। हम तो अपने में ही मगन थे। कोई यदि हमारी कविता की तारीफ कर देता, तो तुरंत चाय - नाश्ता मंगा देते। लोगों ने हमारी इस कमजोरी को भांप लिया था। यदा - कदा पहुंच जाते। उनके लिए तो हम नि:शुल्क रेस्टारेंट बन गए थे। ये तो बहुत बाद में हमें पता चला, तब तक न मालूम कितना गंवा चुके थे ?
हाँ, तो अब हम असली वाक्या पर आयें। बात उन दिनों की है जब हमारे देश में पहली बार इमरजेंसी लगी थी। सब भयाक्रांत। एक - एक शब्द बोलने से पहले सोचते। उन्हीं दिनों एक कवि सम्मेलन हो गया। देश के नामी - गिरामी वीर रस के ओजस्वी कवि मंगाए गए। मंच सज गया था। स्थानीय होने के नाते हमको नहीं बक्शा उन्होंने। उन ओजस्वी कवियों को सुनकर हमारी भुजाएं भी फड़कने लगी, आँखें लाल हो गई। संचालक ने हमारी स्थिति को भाँप लिया था। तुरंत हमारे नाम का गोला दाग दिया। बस फिर क्या था, हमने भी आव देखा न ताव, बरसा दीं दनादन गोलियाँ। वहां प्रशासनिक अमला भी मौजूद था। सरकार की तौहीन उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं थी। वे आपस में गुफ्तगू करने लगे। आयोजक ने स्थिति को भाँप लिया था। उन्होंने आमंत्रित कविगणों को एक - एक कर चाय के बहाने खिसकाना शुरू किया। इसके पहले उन पर कोई कार्यवाही होती या गिरफ्तार किये जाते, आयोजन स्थल से ही कार में बिठाकर स्टेशन रवाना कर दिए गए। प्रशासन हरकत में आये तब तक सब रफू - चक्कर हो गए। सपड़ा गए हम। लग गई हाथों में हथकड़ियाँ। बिठा दिए गए थाने में।
सुबह तक बात तूफान की तरह फैल गई। उस समय हम थाने की शोभा बढ़ा रहे थे। खबर सुन हमारे पड़ोसी गुप्ताजी तुरंत आये - ये क्या हो गया निर्मोही साहब,आपको क्या पड़ी थी, इस दल - बल में फँसने की ? खैर, चिन्ता मत कीजिए,हमारे रहते। हम बचा लेगें आपको। चाहे दस - बीस लाख खर्च हो जाए। गोया हमने किसी का मर्डर किया हो या बैंक डकैती। तभी टपक पड़े मिश्रा जी। बोले - क्या निर्मोही साहब, बिलकुल मत डरिए आप। हथकड़ी और जेल तो मर्दों के लिए ही होता है। आप चिन्ता न करें। हमारा दस - पाँच एकड़ खेत भले बिक जाए आपको छुड़ा कर रहेंगे। बेफिक्र रहे। तभी बाइक की आवाज सुन हम चौकन्ने रह गये। हमारे अनन्य मित्र जैन साहब उतर रहे थे। हमारे पास आते ही बोल पड़े - अभी - अभी हमने सुना, तो भई रह नहीं गया। दौड़ते चले आए। जेल में हमारे लायक कोई काम हो तो जरूर बताइए। वैसे नाश्ते के लिए हम एक पैकेट मिठाई रोज भेज दिया करेंगे।हमको समझ नहीं आ रहा था,यह सब क्या हो रहा है? हमको सिर्फ थाने लाकर बिठाया गया है, इसमें जेल जाने वाली बात कहाँ से आ गई। हमारा दीमाग चकरा रहा था। तभी हमने वैद्यराज जी को लाठी टेकते आते देखा। लाठी नीचे रख, लिपट पड़े - बेटा,तेरे लिए कुछ दवाइयाँ लाया हूं। कुछ ऊँचा - नीचा हो तो ले लिया करना। वैसे ये दवाइयाँ जेल में कहाँ मिलेगी। चिन्ता न करो, वैसे भी दस - पाँच साल में तो छूट ही जाओगे।शुभचिंतकों का ताँता ऐसा बन गया था कि टूटने का नाम ही नहीं ले रहा था। तभी श्रीमती शर्मा को आते देख मुझे आश्चर्य हुआ - एक महिला का थाने में क्या काम ? आते ही मेरे सिर पर हाथ रखा। कहा - घबरा मत बेटा,ये तेरे लिए गीता की पुस्तक लाई हूं। और ये रूद्राक्ष की माला। हाँ, ये प्रसाद खा ले, पुरी का है। ये सब जेल में शंाति प्रदान करेगा। मेरा माथा फटा जा रहा था। मैंने घबराकर आँखें बंद कर ली। तभी किसी ने मेरी पीठ पर हाथ रखा। आँखें खोल बेटा, भगवान को स्मरण कर। उसको यही मंजूर था। राम का नाम ले ... जैसे हमारी अंतिम साँसें चल रही हो। काफी देर बाद हमने आँखें खोली। सामने धोती - कुर्ता, लंबा तिलक लगाए हुए चतुर्वेदी जी आते दिखे। उनके आते ही मैंने चरण स्पर्श किया। आर्शिवाद प्रदान करते हुए उनने कहा - आयुष्मान भव:,भगवान जेल में भी तुम्हारी रक्षा करें। यह कह पास वाली कुर्सी में विराजमान हो गए। हमारी ओर मुखातिब हो वे बोले - बेटा, अभी- अभी मैं पंचाग देखकर आ रहा हूं। कल से साढ़े साती शनि लगी है। मंगल की दशा वक्री है। राहू - केतु एक ही स्थान पर है। गुरू शत्रु के स्थान पर बैठा है। सूरज निस्तेज हो गया है। भाग्य के स्थान पर काल बैठा है। ऐसे में आदमी का बचना बहुत मुश्किल होता है। फिर भी मैं पूरा - पूरा प्रयास करूंगा। मैंने महामृत्युंजय की तैयारी पूरी कर ली है, ताकि मृत्युदंड आजीवन कारावास में बदल जाए।
प्रवचन सुन मैं दंग रह गया। सब ग्रह एक साथ कैसे विपरीत हो गए ? पंडित जी मुझे साक्षात मसीहा नजर आ रहे थे, तारण हार। अब सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो चुकी थी। हमारी समिति के अन्य सदस्य भी पहुंच चुके थे। सबकी आँखों में गंगा - जमुना बह, थाने की भूमि को पवित्र कर रही थी। चारों तरफ नजर उठाकर देखा - लोग ही लोग, जैसे मेरी अंतिम बिदाई को आये हो या अंतिम दर्शन। इतना गमगीन वातावरण तो हमने कभी श्मशान घाट पर भी नहीं देखा। तभी लालबत्ती की एक गाड़ी आयी। उसमें से एस.पी. को उतरते देख सभी पुलिस वालों ने सैल्यूट दागा। थानेदार की ओर देख वे गरजे - बेवकूफ कहीं के, निर्मोही जी को क्यों रोक रखा है? जिन्हें रोकना था वे सब भाग गए .... मेरे तरफ मुखातिब होते हुए बोले - जाइए निर्मोही साहब, आपको निर्थक परेशान किया गया। जाइए, घर वाले चिंतित हो रहे होंगे ......।
झँवर निवास,
मेनरोड, सिमगा
जिला - रायपुर (छ.ग.)
बचपन से ही कविता लिखने का शौक पता नहीं कैसे चर्राया। विद्यार्थी जीवन से ही कविता लिखने का धुन सवार।पढ़ाई - लिखाई गई चूल्हें में, लिखते थे तो केवल कविता। जैसे हम शक्सपीयर बन जायेंगे। फिर उन कविताओं को प्रकाशनार्थ भेजना। शुरू के दो - तीन साल तक तो सभी रचनाएं च्च् संपादक के अभिवादन व खेद सहित ज्ज् लौट आई। फिर भी हम हिम्मत कहां हारने वाले थे। मां - बाप की गाढ़ी कमाई फूँके जाने की हमें तनिक भी चिन्ता नहीं थी। और एक दिन ऐसा आया कि स्थानीय पत्र - पत्रिकाओं में छपना शुरू हो गए। बस फिर क्या था,चर्चित हो गए निर्मोही जी। उन दिनों हम अपना उपनाम च्च् निर्मोही ज्ज् ही लिखा करते। हमें क्या पता था - यह शौक हमें एक दिन जेल तक ले जाएगा। हम तो अपने में ही मगन थे। कोई यदि हमारी कविता की तारीफ कर देता, तो तुरंत चाय - नाश्ता मंगा देते। लोगों ने हमारी इस कमजोरी को भांप लिया था। यदा - कदा पहुंच जाते। उनके लिए तो हम नि:शुल्क रेस्टारेंट बन गए थे। ये तो बहुत बाद में हमें पता चला, तब तक न मालूम कितना गंवा चुके थे ?
हाँ, तो अब हम असली वाक्या पर आयें। बात उन दिनों की है जब हमारे देश में पहली बार इमरजेंसी लगी थी। सब भयाक्रांत। एक - एक शब्द बोलने से पहले सोचते। उन्हीं दिनों एक कवि सम्मेलन हो गया। देश के नामी - गिरामी वीर रस के ओजस्वी कवि मंगाए गए। मंच सज गया था। स्थानीय होने के नाते हमको नहीं बक्शा उन्होंने। उन ओजस्वी कवियों को सुनकर हमारी भुजाएं भी फड़कने लगी, आँखें लाल हो गई। संचालक ने हमारी स्थिति को भाँप लिया था। तुरंत हमारे नाम का गोला दाग दिया। बस फिर क्या था, हमने भी आव देखा न ताव, बरसा दीं दनादन गोलियाँ। वहां प्रशासनिक अमला भी मौजूद था। सरकार की तौहीन उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं थी। वे आपस में गुफ्तगू करने लगे। आयोजक ने स्थिति को भाँप लिया था। उन्होंने आमंत्रित कविगणों को एक - एक कर चाय के बहाने खिसकाना शुरू किया। इसके पहले उन पर कोई कार्यवाही होती या गिरफ्तार किये जाते, आयोजन स्थल से ही कार में बिठाकर स्टेशन रवाना कर दिए गए। प्रशासन हरकत में आये तब तक सब रफू - चक्कर हो गए। सपड़ा गए हम। लग गई हाथों में हथकड़ियाँ। बिठा दिए गए थाने में।
सुबह तक बात तूफान की तरह फैल गई। उस समय हम थाने की शोभा बढ़ा रहे थे। खबर सुन हमारे पड़ोसी गुप्ताजी तुरंत आये - ये क्या हो गया निर्मोही साहब,आपको क्या पड़ी थी, इस दल - बल में फँसने की ? खैर, चिन्ता मत कीजिए,हमारे रहते। हम बचा लेगें आपको। चाहे दस - बीस लाख खर्च हो जाए। गोया हमने किसी का मर्डर किया हो या बैंक डकैती। तभी टपक पड़े मिश्रा जी। बोले - क्या निर्मोही साहब, बिलकुल मत डरिए आप। हथकड़ी और जेल तो मर्दों के लिए ही होता है। आप चिन्ता न करें। हमारा दस - पाँच एकड़ खेत भले बिक जाए आपको छुड़ा कर रहेंगे। बेफिक्र रहे। तभी बाइक की आवाज सुन हम चौकन्ने रह गये। हमारे अनन्य मित्र जैन साहब उतर रहे थे। हमारे पास आते ही बोल पड़े - अभी - अभी हमने सुना, तो भई रह नहीं गया। दौड़ते चले आए। जेल में हमारे लायक कोई काम हो तो जरूर बताइए। वैसे नाश्ते के लिए हम एक पैकेट मिठाई रोज भेज दिया करेंगे।हमको समझ नहीं आ रहा था,यह सब क्या हो रहा है? हमको सिर्फ थाने लाकर बिठाया गया है, इसमें जेल जाने वाली बात कहाँ से आ गई। हमारा दीमाग चकरा रहा था। तभी हमने वैद्यराज जी को लाठी टेकते आते देखा। लाठी नीचे रख, लिपट पड़े - बेटा,तेरे लिए कुछ दवाइयाँ लाया हूं। कुछ ऊँचा - नीचा हो तो ले लिया करना। वैसे ये दवाइयाँ जेल में कहाँ मिलेगी। चिन्ता न करो, वैसे भी दस - पाँच साल में तो छूट ही जाओगे।शुभचिंतकों का ताँता ऐसा बन गया था कि टूटने का नाम ही नहीं ले रहा था। तभी श्रीमती शर्मा को आते देख मुझे आश्चर्य हुआ - एक महिला का थाने में क्या काम ? आते ही मेरे सिर पर हाथ रखा। कहा - घबरा मत बेटा,ये तेरे लिए गीता की पुस्तक लाई हूं। और ये रूद्राक्ष की माला। हाँ, ये प्रसाद खा ले, पुरी का है। ये सब जेल में शंाति प्रदान करेगा। मेरा माथा फटा जा रहा था। मैंने घबराकर आँखें बंद कर ली। तभी किसी ने मेरी पीठ पर हाथ रखा। आँखें खोल बेटा, भगवान को स्मरण कर। उसको यही मंजूर था। राम का नाम ले ... जैसे हमारी अंतिम साँसें चल रही हो। काफी देर बाद हमने आँखें खोली। सामने धोती - कुर्ता, लंबा तिलक लगाए हुए चतुर्वेदी जी आते दिखे। उनके आते ही मैंने चरण स्पर्श किया। आर्शिवाद प्रदान करते हुए उनने कहा - आयुष्मान भव:,भगवान जेल में भी तुम्हारी रक्षा करें। यह कह पास वाली कुर्सी में विराजमान हो गए। हमारी ओर मुखातिब हो वे बोले - बेटा, अभी- अभी मैं पंचाग देखकर आ रहा हूं। कल से साढ़े साती शनि लगी है। मंगल की दशा वक्री है। राहू - केतु एक ही स्थान पर है। गुरू शत्रु के स्थान पर बैठा है। सूरज निस्तेज हो गया है। भाग्य के स्थान पर काल बैठा है। ऐसे में आदमी का बचना बहुत मुश्किल होता है। फिर भी मैं पूरा - पूरा प्रयास करूंगा। मैंने महामृत्युंजय की तैयारी पूरी कर ली है, ताकि मृत्युदंड आजीवन कारावास में बदल जाए।
प्रवचन सुन मैं दंग रह गया। सब ग्रह एक साथ कैसे विपरीत हो गए ? पंडित जी मुझे साक्षात मसीहा नजर आ रहे थे, तारण हार। अब सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो चुकी थी। हमारी समिति के अन्य सदस्य भी पहुंच चुके थे। सबकी आँखों में गंगा - जमुना बह, थाने की भूमि को पवित्र कर रही थी। चारों तरफ नजर उठाकर देखा - लोग ही लोग, जैसे मेरी अंतिम बिदाई को आये हो या अंतिम दर्शन। इतना गमगीन वातावरण तो हमने कभी श्मशान घाट पर भी नहीं देखा। तभी लालबत्ती की एक गाड़ी आयी। उसमें से एस.पी. को उतरते देख सभी पुलिस वालों ने सैल्यूट दागा। थानेदार की ओर देख वे गरजे - बेवकूफ कहीं के, निर्मोही जी को क्यों रोक रखा है? जिन्हें रोकना था वे सब भाग गए .... मेरे तरफ मुखातिब होते हुए बोले - जाइए निर्मोही साहब, आपको निर्थक परेशान किया गया। जाइए, घर वाले चिंतित हो रहे होंगे ......।
झँवर निवास,
मेनरोड, सिमगा
जिला - रायपुर (छ.ग.)
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