सुरेश सर्वेद
सत्येन्द्र ने सुन रखा था कि पैदल यात्रा से शंाति के साथ बड़ा पु·य मिलता है.आवागमन के साधन होने के बावजूद वह ईश्वर - दशर्न के लिए पैदल ही निकल पड़ा कई दिनों च लने के बाद आखिरकार वह देवस्थान पर पहुंंच गया.
देवस्थान का पुजारी अभी - अभी पट बंद कर रहा था.सत्येन्द्र ने उससे कहा - मैं ईश्वर का दशर्न करने आया हूं. मुझे ईश्वर का दशर्न करने दें...।
पुजारी ने साफ इंकारते हुए कहा - भइया, ईश्वर से मैं नहीं मिला सकता.य दि ईश्वर से मिलने लालायि त हो तो मैनेजर से संपकर् करो.
- मैनेजर से यिों संपकर् करूं ?ईश्वर - पुजारी तो तुम हो न ?
- पुजारी हूं तो यिा हुआ.य हां का सवेर्सवार् ट¬स्ट का अध्य क्ष होता है.हम ठहरे कमर्चारी.य दि बिना अनुमति ईश्वर का दशर्न करा दिया तो मुझे नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा.तब तो तुम नहीं आओगे मेरे बाल - ब‚े के पेट पालने..।
सत्येन्द्र , मैनेजर के पास गया.मैनेजर ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा.उसके वेशभूषा को देखकर समझ गया कि य ह फटेहाल है.सत्येन्द्र ने उसके समक्ष ईश्वर दशर्न की ईच्छा व्य I किया. मैनेजर ने उसे देवस्थानम के अध्य क्ष के समक्ष ले गया.अध्य क्ष ने सत्येन्द्र से पूछा -तुम्हारा परिच य , य दि ईश्वर का दशर्न करना चाहते हो तो च ढ़ौत्री करने यिा लाये हो. हीरा - सोना - चांदी ?
सत्येन्द्र ने अपना रोना रोया. कहा - मैं एक छोटा कृषक हूं.मेरे पास थोड़ी सी जमीन है. मुश्किल से परिवार का भरण पोषण हो पाता है तब भला कहां से सोना - चांदी ला पाता.
- तब फिर यिों समय बे समय पट खुलवाना चाहते हो. बेहतर है आमजन की तरह जब देवस्थान का पट खुलेगा, दशर्न कर लेना और च लता बनना.
- मैं ईश्वर के समक्ष कुछ क्षण बैठकर पूजा अच र्ना करना चाहता हूं.
- खाली हाथ य ह संभव नहीं है.
- मगर यिों ?
- महज ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखने भर से हम य दि सबको ईश्वर के समक्ष बैठकर पूजा - अच र्ना करने दिया तब तो आम और खास में अंतर ही यिा रह जायेगा.ईश्वर की पूजा कई प्रकार से किया जाता है.य ह पूजा सूची है.इसमें से तुम्हें कुछ न कुछ करना होगा तभी तुम ईश्वर के समक्ष जाकर पूजा पाठ कर सकते हो.
अध्य क्ष ने एक सूची दे दी.सत्येन्द्र ने सूची देखी.सूची देखकर सत्येन्द्र का गला सूख गया.बड़ी मुश्किल से थूंक निगल कर बोला - यिा ईश्वर के समक्ष बैठकर पूजा करना बिना खच र् के बिलकुल संभव नहीं ?
- हां...।
- मगर हमने जो सुन रखा था कि ईश्वर श्रद्धा से दशर्न देता है. जो कोई उसे मन से पूजता है ईश्वर उसे अपने पास बुला लेता है. अपनी च रण कमल में स्थान दे देता है.ईश्वर को रूपये पैसे की आवश्य कता नहीं होती. स्वच्छ आत्मा और उसके प्रति निþा ही बहुत है. यिा ये सारी बातें असत्य है ?
अध्य क्ष ने हंसकर कहा - असत्य , य ह असत्य ही नहीं दिग्भ्रमित करने वाले वायि है.तुम्हारा भला इसी में है कि तुम व्य थर् समय मत गंवाओं और हृदय की बात हृदय में रखकर आम जन की तरह दशर्न करो और चुपचाप च ला जाओ..।
- ऐसे कैसे लौट जाऊं !मैं ईश्वर के समक्ष दशर्न करते हुए कुछ क्षण बिताने आया हूं.य ह काम हुए बिना मेरा लौटना संभव नहीं.
- य ह धाक कहीं और जमाना हम पर नहीं.हम तुम्हारी श्रद्धा और ईश्वर के प्रति तुम्हारे मन में महज स‚ी लगन के कारण ही निय म नहीं तोड़ सकते.
सत्येन्द्र परास्त नहीं हुआ.वह बाहर आ अनशन पर बैठ गया.
देवालय में स्थापित ईश्वर ने अध्य क्ष और सत्येन्द्र के मध्य हुए संवाद को सुन लिया.उसे य ह अच्छी तरह ज्ञात था कि सत्येन्द्र उसका अनन्य भI है.और उसके भI का अपमान हुआ था.ईश्वर छटपटा उठा.पर उसका देवालय से बाहर निकलना मुश्किल था.दरबान थे. पुजारी थे.उनसे छिपकर निकलना आसान नहीं था.पर देखे Òश्य ने उसमें इतनी शIि भर दी थी कि वह बाहर निकलने लगा.जैसे ही उसने देवालय से निकलना चाहा कि अध्य क्ष उसके च रणों पर था.अध्य क्ष ने कहा - ईश्वर, आप ये अधमर् करने यिों च ले ?हमसे ऐसी यिा गलती हो गई कि आप उसे भिखारी के पीछे जाने पर उतारूं हैं ?
- वह मेरा परम भI है और भIों से मिलना मेरा परम धमर् है .
- मैंने कब कहा कि भIों से भेंट न करें , पर ऐसे भIों से मिलने से यिा फाय दा ? ये लोग तो अपने और अपने परिवार का देखभाल नहीं कर पाते.ये लोग दिन - रात मिuी से सने रहते हैं.बरसात के पानी की तरह इनके शरीर से पसीना टपकते रहता है जिससे दुगYध आती है.दिन - रात कमाकर भी ये भरपेट भोजन नहीं कर पाते.तब फिर इनसे भIि यिा होगी.ये काम च लाऊ भIि करके आपको प्रभावित करते रहते हैं ...।असली भI तो हम हैं.देखिए, आपके समक्ष कौन खड़ा है.य ह वही व्यापारी है जिसने पांच टीन शुद्ध घी य ज्ञ के अSिकुंड में झोंक दिया था.य ह अब उद्योगपति बन गया है.इसकी इच्छा आपके रहने के स्थान को सुन्दर और वैभवशाली बनाने का है.
ईश्वर पर अध्य क्ष के बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा.उसने कहा - इससे मुझे कोई सरोकार नहीं.मैं अपने उस दीन - हीन भI से मिलना चाहता हूं.
- आपकी य ह इच्छा भी पूणर् होगी मगर इस भI की इच्छा पूणर् होने के बाद ही...।
ईश्वर ने अध्य क्ष का कहना मान लिया.उद्योगपति ने पूरे देवस्थान को संगमरमर से जड़वा दिया.वाकई देवस्थान का रूप ही बदल गया.उद्योगपति ने हीरे - जवाहरत जड़ित माला पहनाई.ईश्वर को इससे कोई मतलब नहीं था.वह तो उस भI से मिलने को अधीर था जो उसे आत्मा से मानता था.उसे सत्येन्द्र के पास जाने की जल्दी थी.उसने च ौखट पर पैर रखा था कि अध्य क्ष जिÛ की तरह उपक्स्थत हुआ और ईश्वर के च रणों की वंदना करने लगा.
ईश्वर का य शगान हो रहा था मगर ईश्वर तटस्थ रहा.अध्य क्ष ने कहा - ईश्वर, हम आपको प्रसÛ रखने सदैव तत्पर रहते हैं पर आप हमसे नाराज रहते हैं.देखिए, आपके समक्ष कौन खड़ा है.
अध्य क्ष के संकेत की ओर ईश्वर ने Òýि डाली.सामने सƒन की तरह दिखने वाला एक व्य Iि खड़ा था.उसके मुख पर शांति छाई हुई थी.वह मंद - मंद मुस्करा रहा था.
विगत माह से ईश्वर सुनते आया था कि कोई विशिý व्य Iि आने वाला है.समाचार पत्र, आकाशवाणी, दूरदशर्न उसके आगमन का समाचार प्रतिदिन बिखेर रहे थे.ईश्वर समझ गया कि आगंतुक मंत्री है.
अध्य क्ष ने आगे कहा - ईश्वर, य ह च ढ़ौत्री करने एक लाख रूपये नकद लाया है.इसे स्वीकारिये और इसे मंत्री पद पर चि रस्थायी रहने का आशिर्वाद दीजिए. इसकी इच्छा है कि आप एक वषर् तक इसका ही अÛ ग्रहण करें.सुबह - शाम छप्पन प्रकार के व्यंजन परोसे जायेंगे.
ईश्वर चुप रहा.इससे अध्य क्ष समझ गया कि ईश्वर ने स्वीकृति दे दी है.
जब भी धनी या नामी गिरामी व्य Iि ईश्वर के पास आता.पूजा पाठ करता तो ईश्वर क्रोध से तमतमा जाता.उस पर पानी का छिंटा पड़ता तो वह कंपकंपा जाता.मेवा - मिþाÛ की सुगंध से उसे उबकाई आने लगती. गुंगुल - अगरबक्त्तयों के धुओं से उसका दम घुंटने लगता.न चाहते हुए भी उसे सब स्वीकारना पड़ रहा था.उस पर जबरदस्ती का राज किया जा रहा था.
आखिर जब सहनशIि ने जवाब दे दिया तब ईश्वर क्रांति पर उतर आया.उसके दरवाजा तोड़कर बाहर कदम रखते ही अध्य क्ष उसके समक्ष हाथ जोड़े खड़ा हो गया.उसे देख ईश्वर झ„ाया - यिों, यिा और कोईविशिष्ट लोग आये हैं... ?
- नहीं...।
- फिर इस तरह हाथ जोड़ने का तात्पय र् ?
ईश्वर तमतमाया था.अध्य क्ष की आंखें डबडबा आयी थीं.ईश्वर का क्रोध शंात हो गया.धीरे से पूछा - सदैव प्रसÛ रहने वाले अध्य क्ष की आंखों में आंसू.. आखिर यिों...?
- आप अपने भI सत्येन्द्र से मिलना चाहते थे न. आप तो सवर्ज्ञाता कहलाते है पर यिा आपको य ह मालूम है कि आपका परम भI अब आपसे कभी नहीं मिल सकते, कभी नहीं...? हां, बेचारे सत्येन्द्र ने आपसे भेंट करने की ठानी थी.इसलिए वह भूखा -प्यासा आपके इंतजार में बैठ गया.वह भूख - प्यास से मर गया पर आपने उसकी सुध लेने की आवश्य कता ही नहीं समझी.ऐसा यिों.....?
सुनकर ईश्वर की सारी शIि क्षीण हो गई.वह जहां का तहां जड़वत् खड़ा रहा.उसे जोरदार झटका य ह सोच कर लगा कि जिस अध्य क्ष के कारण वह सत्येन्द्र से नहीं मिल सका. उसे दशर्न नहीं दे सका वही प्रश्न कर रहा है.सारा दोष अध्य क्ष का है और पूरा दोषारोपण मुझ पर कर रहा है.उसे अनुभव हुआ - वास्तव में मैं न अंतर्यामी हूं, न भIवत्सल, न दीन हीनों का रक्षक. मैं तो एक बंदी हूं.... सिफर् बंदी.. उसके सिवा कुछ नहीं....।
सत्येन्द्र ने सुन रखा था कि पैदल यात्रा से शंाति के साथ बड़ा पु·य मिलता है.आवागमन के साधन होने के बावजूद वह ईश्वर - दशर्न के लिए पैदल ही निकल पड़ा कई दिनों च लने के बाद आखिरकार वह देवस्थान पर पहुंंच गया.
देवस्थान का पुजारी अभी - अभी पट बंद कर रहा था.सत्येन्द्र ने उससे कहा - मैं ईश्वर का दशर्न करने आया हूं. मुझे ईश्वर का दशर्न करने दें...।
पुजारी ने साफ इंकारते हुए कहा - भइया, ईश्वर से मैं नहीं मिला सकता.य दि ईश्वर से मिलने लालायि त हो तो मैनेजर से संपकर् करो.
- मैनेजर से यिों संपकर् करूं ?ईश्वर - पुजारी तो तुम हो न ?
- पुजारी हूं तो यिा हुआ.य हां का सवेर्सवार् ट¬स्ट का अध्य क्ष होता है.हम ठहरे कमर्चारी.य दि बिना अनुमति ईश्वर का दशर्न करा दिया तो मुझे नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा.तब तो तुम नहीं आओगे मेरे बाल - ब‚े के पेट पालने..।
सत्येन्द्र , मैनेजर के पास गया.मैनेजर ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा.उसके वेशभूषा को देखकर समझ गया कि य ह फटेहाल है.सत्येन्द्र ने उसके समक्ष ईश्वर दशर्न की ईच्छा व्य I किया. मैनेजर ने उसे देवस्थानम के अध्य क्ष के समक्ष ले गया.अध्य क्ष ने सत्येन्द्र से पूछा -तुम्हारा परिच य , य दि ईश्वर का दशर्न करना चाहते हो तो च ढ़ौत्री करने यिा लाये हो. हीरा - सोना - चांदी ?
सत्येन्द्र ने अपना रोना रोया. कहा - मैं एक छोटा कृषक हूं.मेरे पास थोड़ी सी जमीन है. मुश्किल से परिवार का भरण पोषण हो पाता है तब भला कहां से सोना - चांदी ला पाता.
- तब फिर यिों समय बे समय पट खुलवाना चाहते हो. बेहतर है आमजन की तरह जब देवस्थान का पट खुलेगा, दशर्न कर लेना और च लता बनना.
- मैं ईश्वर के समक्ष कुछ क्षण बैठकर पूजा अच र्ना करना चाहता हूं.
- खाली हाथ य ह संभव नहीं है.
- मगर यिों ?
- महज ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखने भर से हम य दि सबको ईश्वर के समक्ष बैठकर पूजा - अच र्ना करने दिया तब तो आम और खास में अंतर ही यिा रह जायेगा.ईश्वर की पूजा कई प्रकार से किया जाता है.य ह पूजा सूची है.इसमें से तुम्हें कुछ न कुछ करना होगा तभी तुम ईश्वर के समक्ष जाकर पूजा पाठ कर सकते हो.
अध्य क्ष ने एक सूची दे दी.सत्येन्द्र ने सूची देखी.सूची देखकर सत्येन्द्र का गला सूख गया.बड़ी मुश्किल से थूंक निगल कर बोला - यिा ईश्वर के समक्ष बैठकर पूजा करना बिना खच र् के बिलकुल संभव नहीं ?
- हां...।
- मगर हमने जो सुन रखा था कि ईश्वर श्रद्धा से दशर्न देता है. जो कोई उसे मन से पूजता है ईश्वर उसे अपने पास बुला लेता है. अपनी च रण कमल में स्थान दे देता है.ईश्वर को रूपये पैसे की आवश्य कता नहीं होती. स्वच्छ आत्मा और उसके प्रति निþा ही बहुत है. यिा ये सारी बातें असत्य है ?
अध्य क्ष ने हंसकर कहा - असत्य , य ह असत्य ही नहीं दिग्भ्रमित करने वाले वायि है.तुम्हारा भला इसी में है कि तुम व्य थर् समय मत गंवाओं और हृदय की बात हृदय में रखकर आम जन की तरह दशर्न करो और चुपचाप च ला जाओ..।
- ऐसे कैसे लौट जाऊं !मैं ईश्वर के समक्ष दशर्न करते हुए कुछ क्षण बिताने आया हूं.य ह काम हुए बिना मेरा लौटना संभव नहीं.
- य ह धाक कहीं और जमाना हम पर नहीं.हम तुम्हारी श्रद्धा और ईश्वर के प्रति तुम्हारे मन में महज स‚ी लगन के कारण ही निय म नहीं तोड़ सकते.
सत्येन्द्र परास्त नहीं हुआ.वह बाहर आ अनशन पर बैठ गया.
देवालय में स्थापित ईश्वर ने अध्य क्ष और सत्येन्द्र के मध्य हुए संवाद को सुन लिया.उसे य ह अच्छी तरह ज्ञात था कि सत्येन्द्र उसका अनन्य भI है.और उसके भI का अपमान हुआ था.ईश्वर छटपटा उठा.पर उसका देवालय से बाहर निकलना मुश्किल था.दरबान थे. पुजारी थे.उनसे छिपकर निकलना आसान नहीं था.पर देखे Òश्य ने उसमें इतनी शIि भर दी थी कि वह बाहर निकलने लगा.जैसे ही उसने देवालय से निकलना चाहा कि अध्य क्ष उसके च रणों पर था.अध्य क्ष ने कहा - ईश्वर, आप ये अधमर् करने यिों च ले ?हमसे ऐसी यिा गलती हो गई कि आप उसे भिखारी के पीछे जाने पर उतारूं हैं ?
- वह मेरा परम भI है और भIों से मिलना मेरा परम धमर् है .
- मैंने कब कहा कि भIों से भेंट न करें , पर ऐसे भIों से मिलने से यिा फाय दा ? ये लोग तो अपने और अपने परिवार का देखभाल नहीं कर पाते.ये लोग दिन - रात मिuी से सने रहते हैं.बरसात के पानी की तरह इनके शरीर से पसीना टपकते रहता है जिससे दुगYध आती है.दिन - रात कमाकर भी ये भरपेट भोजन नहीं कर पाते.तब फिर इनसे भIि यिा होगी.ये काम च लाऊ भIि करके आपको प्रभावित करते रहते हैं ...।असली भI तो हम हैं.देखिए, आपके समक्ष कौन खड़ा है.य ह वही व्यापारी है जिसने पांच टीन शुद्ध घी य ज्ञ के अSिकुंड में झोंक दिया था.य ह अब उद्योगपति बन गया है.इसकी इच्छा आपके रहने के स्थान को सुन्दर और वैभवशाली बनाने का है.
ईश्वर पर अध्य क्ष के बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा.उसने कहा - इससे मुझे कोई सरोकार नहीं.मैं अपने उस दीन - हीन भI से मिलना चाहता हूं.
- आपकी य ह इच्छा भी पूणर् होगी मगर इस भI की इच्छा पूणर् होने के बाद ही...।
ईश्वर ने अध्य क्ष का कहना मान लिया.उद्योगपति ने पूरे देवस्थान को संगमरमर से जड़वा दिया.वाकई देवस्थान का रूप ही बदल गया.उद्योगपति ने हीरे - जवाहरत जड़ित माला पहनाई.ईश्वर को इससे कोई मतलब नहीं था.वह तो उस भI से मिलने को अधीर था जो उसे आत्मा से मानता था.उसे सत्येन्द्र के पास जाने की जल्दी थी.उसने च ौखट पर पैर रखा था कि अध्य क्ष जिÛ की तरह उपक्स्थत हुआ और ईश्वर के च रणों की वंदना करने लगा.
ईश्वर का य शगान हो रहा था मगर ईश्वर तटस्थ रहा.अध्य क्ष ने कहा - ईश्वर, हम आपको प्रसÛ रखने सदैव तत्पर रहते हैं पर आप हमसे नाराज रहते हैं.देखिए, आपके समक्ष कौन खड़ा है.
अध्य क्ष के संकेत की ओर ईश्वर ने Òýि डाली.सामने सƒन की तरह दिखने वाला एक व्य Iि खड़ा था.उसके मुख पर शांति छाई हुई थी.वह मंद - मंद मुस्करा रहा था.
विगत माह से ईश्वर सुनते आया था कि कोई विशिý व्य Iि आने वाला है.समाचार पत्र, आकाशवाणी, दूरदशर्न उसके आगमन का समाचार प्रतिदिन बिखेर रहे थे.ईश्वर समझ गया कि आगंतुक मंत्री है.
अध्य क्ष ने आगे कहा - ईश्वर, य ह च ढ़ौत्री करने एक लाख रूपये नकद लाया है.इसे स्वीकारिये और इसे मंत्री पद पर चि रस्थायी रहने का आशिर्वाद दीजिए. इसकी इच्छा है कि आप एक वषर् तक इसका ही अÛ ग्रहण करें.सुबह - शाम छप्पन प्रकार के व्यंजन परोसे जायेंगे.
ईश्वर चुप रहा.इससे अध्य क्ष समझ गया कि ईश्वर ने स्वीकृति दे दी है.
जब भी धनी या नामी गिरामी व्य Iि ईश्वर के पास आता.पूजा पाठ करता तो ईश्वर क्रोध से तमतमा जाता.उस पर पानी का छिंटा पड़ता तो वह कंपकंपा जाता.मेवा - मिþाÛ की सुगंध से उसे उबकाई आने लगती. गुंगुल - अगरबक्त्तयों के धुओं से उसका दम घुंटने लगता.न चाहते हुए भी उसे सब स्वीकारना पड़ रहा था.उस पर जबरदस्ती का राज किया जा रहा था.
आखिर जब सहनशIि ने जवाब दे दिया तब ईश्वर क्रांति पर उतर आया.उसके दरवाजा तोड़कर बाहर कदम रखते ही अध्य क्ष उसके समक्ष हाथ जोड़े खड़ा हो गया.उसे देख ईश्वर झ„ाया - यिों, यिा और कोईविशिष्ट लोग आये हैं... ?
- नहीं...।
- फिर इस तरह हाथ जोड़ने का तात्पय र् ?
ईश्वर तमतमाया था.अध्य क्ष की आंखें डबडबा आयी थीं.ईश्वर का क्रोध शंात हो गया.धीरे से पूछा - सदैव प्रसÛ रहने वाले अध्य क्ष की आंखों में आंसू.. आखिर यिों...?
- आप अपने भI सत्येन्द्र से मिलना चाहते थे न. आप तो सवर्ज्ञाता कहलाते है पर यिा आपको य ह मालूम है कि आपका परम भI अब आपसे कभी नहीं मिल सकते, कभी नहीं...? हां, बेचारे सत्येन्द्र ने आपसे भेंट करने की ठानी थी.इसलिए वह भूखा -प्यासा आपके इंतजार में बैठ गया.वह भूख - प्यास से मर गया पर आपने उसकी सुध लेने की आवश्य कता ही नहीं समझी.ऐसा यिों.....?
सुनकर ईश्वर की सारी शIि क्षीण हो गई.वह जहां का तहां जड़वत् खड़ा रहा.उसे जोरदार झटका य ह सोच कर लगा कि जिस अध्य क्ष के कारण वह सत्येन्द्र से नहीं मिल सका. उसे दशर्न नहीं दे सका वही प्रश्न कर रहा है.सारा दोष अध्य क्ष का है और पूरा दोषारोपण मुझ पर कर रहा है.उसे अनुभव हुआ - वास्तव में मैं न अंतर्यामी हूं, न भIवत्सल, न दीन हीनों का रक्षक. मैं तो एक बंदी हूं.... सिफर् बंदी.. उसके सिवा कुछ नहीं....।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें