
इस अवसर पर अंचल की विभूतियों को उनके विशिष्ट यॊगदान के लिये विभूति सम्मान से सम्मानित किया गया। आंचलिका जिले की बड़ी पुरानी साहित्यिक संस्था है जिसका प्रारंभ 1992 से हुआ था। वर्तमान अध्यक्ष रवींद्र नीलम और कार्यकारी अध्यक्ष शिवशंकर शुक्ल लाल के अथक प्रयासों से से संस्था ने अपनी अलग पहचान जिला एवं प्रदेश स्तर पर बनाई है। संस्था ने जिले भर के तीन पीढी के साहित्यकारों को एक ही माला में पिरोकर उसे धरोहर रूप में सजाकर एक सराहनीय कार्य किया है जो स्वागत योग्य है।
पुस्तक में नई पुरानी और मध्य पीढ़ी के चौहत्तर साहित्यकारों की कविताओं का समावेश है। 'कितना बड़ा मजाक है ये जिंदगी के साथ,चाहा किसी और को उम्र गुज़ारी किसी के साथ'। शफक अकोटवीइ सरीखे कई वरिष्ठ गज़लकारो की रचनायें भाव विभोर करने के लिये बहुत हैं। धृतराष्ट्र हो गया न्याय आज,दुर्योधन करते शासन हैं । आज़ादी का चीर हरण,नित करते यहां दु शासन हैं। शिवशंकर शुक्ल ने देश की पीड़ा बड़े मार्मिक शब्दों में व्यक्त की है।
पुस्तक के लोकार्पण के बाद विभूति सम्मान पारंपरिक ढंग से किया गया।
[1]आशिक अली आशिक उर्दू अदब
[2] ,राम कुमार शर्मा साहित्य
[3] शफक अकोटवी उर्दू अदब
{4] जयशंकर शुक्ल[लॊक सेवा
[5] सालकराम यादव जन सेवा
[6] हनुमंत मनगटे कहानी
[7] प्रभुदयाल श्रीवास्तव बाल कविता
[8]विलास मेहता समाज सेवा
[9]गुरुदास राउत खेल
[ 10] कौशलकिशॊर श्रीवास्तव व्यंग
[11]हबीब शैदाउर्दू अदब
[12] गुलाब चंद वात्सल्य साहित्य
[13] आनंद बक्षी कला संस्कृति
[14] पदमा नरेन्द्र सिंह गायन
[15] पंकज सोनी नाट्य विधा और
[16] उमादीप शिखा गीत गज़ल
को उनके योगदान के लिये शाल श्रीफल प्रदान कर और शाल ओढ़ाकर सम्मान किया गया। उन्हें स्मृति चिन्ह भी प्रदान किये गये।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री विमलकांत येंडे सेवा नि.महानिदेशक आकाशवाणी मध्यक्षेत्र थे। विशिष्ठ अथिथि मधुकर राव ठेंगे थे। अध्यक्षता दैनिक भास्कर छिंदवाड़ा के संपादक संजय गौतम ने की। कार्यक्रम का सफल संचालन शिवशंकर लाल ने किया। संस्था के अध्यक्ष रवींद्र नीलम सचिव रामलाल सराठे वरिष्ठ उपाध्यक्ष रमाकांत पांडे और कोषाध्यक्ष गुलाम मध्य प्रदेशी के प्रयासों से कार्यक्रम सफलता पूर्वक समपन्न हुआ।
राजनीति रह गई सिमटकर अम्मा और हवाला तक, मज़हब के झगड़े पहुंचे हैं,घर से अल्ला ताला तक।
अहले अदब की परिभाषायें,कुछ पंकज ऐसी बदली हैं, शेरो सुखन की दुनिया पहुंची,गालिब से खंडाला तक।
पंकज सक्सेनाजी की ये पंक्तियां पुस्तक के स्तर का बयान कर रहीं हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें