पर्वतों के साये में वादियों की बाहों में।
छोटा सा प्यारा सा एक मेरा गाँव था।।
अल सुबह गूंजती चिडिय़ों की बोलियां
मस्ती में घूमती हिरणों की टोलियां
इठलाती फिरती थी नाजुक जवानियां
गीत - ग़ज़ल सी लगे उनकी नादानियां
झरनों के झर - झर में हवाओं के सर - सर में
मदहोश धुन सा उतार और चढ़ाव था।
थी घाटियों में फूलों की सुंदर छटायें,
पर्वतों की चोटियों को चूमती घटाये,
लगता था रोज जहां बादलों का मेला,
सूरज ठुमकता बन छैला अलबेला,
नदियों के लहरों में सांझ और दुपहरों में,
मदमाता यौवन सा झूमता बहाव था।।
जाने कहां से एक जलजला सा आ गया
जो वादियों की धरती और आसमां पे छा गया,
समां गई थी बारुदी गंध अब बागो में,
बस धूऑ - धूऑ ही बाकी था घर के चिरागों में,
तब रोशनी भी लूट गई जिंदगी बिखर गई,
बेवक्त बचपन में आ गया भटकाव था।
आस की एक किरण न जाने कब आयेगी,
जो धरती और अंबर में दूर तलक छायेगी,
जीवन के आंगन में रंग उभर आएगा,
हर कोई झूम - झूम गीत गुनगुनायेगा,
याद जो कभी करें तो बात हम यही कहें,
सपनों में आया वो कोई धूप छांव था।
पर्वतों के साये में वादियों की बाहों में,
छोटा सा प्यारा सा एक मेरा गाँव था।
पता
स्टेशन रोड, महासमुंद (छ.ग.) 493 445
मोबाईल : 089827 33227
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