
शिवपुरी। डॉ. इकबाल को इसलिए याद नहीं किया जाता कि वह अपने समय के चर्चित शायर थे अपितु इसलिए भी याद किया जाता है कि देश-प्रेम और राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ समकालीन मानव उनकी शायरी के केन्द्र में था जिसके उत्थान के लिए वह निरंतर रचनात्मक संघर्ष करते रहे. वह वस्तुत: मानवतावादी शायर थे. अपने समय के मनुष्य को जाग्रत करना ही उनका लेखकीय धर्म था. उक्त उद्गार साहित्य अकादमी के निदेशक प्रो. त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने म.प्र. संस्कृति परिषद के अललामा इक़बाल प्रभाग द्वारा डॉ. इकबाल के कलाम, हयात, फ़न और शख्सियत पर स्थानीय संस्था श्री रामकिशन सिंहल फाउण्डेशन के सहयोग से दुर्गामठ में आयोजित व्याख्यानमाला का शुभांरभ करते हुए व्यक्त किये. इस अवसर पर अकादमी की उप निदेशक नुसरत मेहदी ने बताया कि इस तरह के कार्यक्रम डॉ. इकबाल के मुहब्बत के पैगाम को लोगों तक पहुंचाने के लिए किये जा रहे हैं ताकि जनमानस में व्याप्त उनसे संबंधित भ्रांतियों का निवारण हो सके.
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. परशुराम विरही के मत में डॉ. इकबाल की रचनायें ब्रिटिश शासन के खिलाफ थी. उन्हें फारसी का विशद ज्ञान था. उनकी फारसी शायरी के कारण ही विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुए. युसुफ अहमद कुरेशी ने कहा कि डॉ. इकबाल का संदेश सारे इन्सानों, समस्त भारतीयों के लिए था. उन्हें मुसलमान अपना समझने की भूल करते हैं. डॉ. तबस्सुम खान श्योपुर के मुताबिक उनकी दार्शनिक एवं सूफियाना शायरी ने सारी दुनिया को प्रभावित किया. डॉ. मीनाक्षी स्वामी इंदौर ने बताया कि डॉ. इकबाल अकेले भारतीय हैं जिनके कलाम का अनुवाद दुनिया की अनेक भाषाओं में हुआ है. डॉ. लखनलाल खरे के अनुसार इक़बाल का नज़रिया हिन्दुस्तानी संस्कृति का संवाहक था. वह सच्चे वतनपरस्त शायर थे.मुख्य अतिथि प्रो. विद्यानंदन राजीव ने डॉ. इकबाल को युगनिर्माता और महान चिंतक निरूपित किया.
कासिम रसा ग्वालियर, के संचालन में सम्पन्न व्याख्यानमाला के अंत में साहित्य अकादमी के निदेशक प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल व उपनिदेशक नुसरत मेंहदी ने संस्था सचिव डॉ. महेन्द्र अग्रवाल के स्वर आधारित व्यंग्य संग्रह ''स्वरों की समाजवादी संवेदनायें'' का विमोचन किया.इस अवसर पर फाउण्डेशन के सचिव डॉ. महेन्द्र अग्रवाल व अध्यक्ष अशोक मित्तल ने संस्था की ओर से उन्हें स्मृति चिन्ह भेट किये.
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में नई ग़ज़ल के लीजेंड शायर डॉ. महेन्द्र अग्रवाल की सदारत, मशहूर शायर अतुल अजनबी की निज़ामत व साहित्य अकादमी की उपनिदेशक नुसरत मेंहदी की विशेष उपस्थिति में एक मुशायरा मुनक्किद हुआ. जिसमें शायर हजरात सुकून शिवपुरी,रफीक़ इशरत,याकूब साबिर,डा.एच.पी.जैन,मनीष जैन रोशन बेकरां,राशिद गुनाबी,दीपक जैन,अतुल अजनबी,नुसरत मेंहदी,डॉ. महेन्द्र अग्रवाल ने अपना कलाम पेश कर श्रोताओं को देर रात तक बांधे रखा.
कार्यक्रम की सफलता में विनय प्रकाश नीर,अखलाक खान,प्रकाशचंद्र सेठ,जितेन्द्र गौड,शिवनारायण सेन, आशीष पटैरिया, भूपेन्द्र विकल, प्रदीप अवस्थी आदि का विशेष सहयोग रहा.
प्रेमचंद की विरासत क्यों
राजनांदगांव। प्रगतिशील लेखक संघ इकाई राजनांदगांव के तत्वावधान में दिनांक 3.08.2014 को कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती चर्चा गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में ''प्रेमचंद की विरासत क्यों '' विषय पर अपना आलेख प्रस्तुत करते हुए कथाकार श्री नरेश श्रीवास्तव ने कहा कि सामान्य जीवन में हम जहां से भी हम बात करते हैं प्रेमचंद की विरासत वही से शुरू हो जाती है। स्वाभिमान, आत्म सम्मान, कर्तव्य, संघर्ष हमारी ही नहीं यह विश्व की भी विरासत है। प्रेमचंद की विरासत असीम है।चर्चा को आगे बढ़ाते हुए श्री संजय अग्रवाल ने कहा कि सामाजिक, सांस्कृतिक दायित्य लेखक की विरासत है प्रेमचंद जी ने हासिए पर जीने वाले दबे कुचले व्यक्ति के जीवन से ही पात्रों का चयन किया और उस पर लेखन किया, लेकिन आज हासिए पर जीने वाले व्यक्ति पर चर्चा सिमट कर रह गई है। यथास्थिति बदलनी होगी, वंचितों को हासिए से बाहर लाना होगा।
प्रो. थानसिंह वर्मा ने कहा कि प्रेमचंद के समय के घिसू और माधव आज की व्यवस्था में भी बने हुए हैं। आज भी लोग अबोधता में जी रहे हैं अपने दुशमन की पहचान नहीं कर पा रहे हैं प्रेमचंद के समय सामंतवाद /साम्राज्यवाद जनता का दुशमन था आज किसानों की जमीन छिनकर कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाया जा रहा है विकास के पैमाने के विषय में फिर से सोचने की जरूरत है।
श्री कैलाश श्रीवास्तव ने प्रेमचंद की विरासत पर चर्चा करते हुए कहा कि धर्म, राजनीति और व्यापार के गठ -जोड़ ने शोषण, कालाबाजारी, टेक्स चोरी करते हुए एक-दो नंबर की दुनिया निर्मित कर चुके हैं, इस विशाल तंत्र में मोहला से लेकर शिकागो तक के पूंजीपति शामिल हैं इसके विशाल और सघन तंत्र को समझना आवश्यक है, इसके विरूद्ध संघर्ष और इस विशाल तंत्र को तोड़ना एक बड़ा काम है इसके लिए सभी जनवादी ताकतों को एकजुट होकर सतत् संघर्ष को जरूरत है और इस तथ्य को गांव-गांव, घर-घर जाकर लोगों को समझाना जरूरी है।
इस अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ राजनांदगांव इकाई के अध्यक्ष श्री प्रभात तिवारी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मुशी प्रेमचंद के संघर्षशील, ईमानदार, कर्तव्य निष्ठ पात्र हमारे गांव, शहर में आज भी उपस्थित है इनके संघर्ष को अपने कथा कहानी, रचनाओं में शामिल करना चाहिए, कमोबेश बिहार की अनपढ़ तिलिया मुंशी प्रेमचंद की ऐसी ही पात्र है जो दलित, शोषित की आवाज उठाती दिखती है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री वाई.के. तिवारी जी ने कहा कि प्रेमचंद अपने रचना संसार मेेंं पूरे सामाजिक ताने बाने को लेते हैं उनसे कोई कोना नहीं छूटता हर वर्ग का बेहतर चित्रण है प्रेमचंद की रचना में सर्व कालिकता दिखती है उनके समय जो सामाजिक ढांचा था वह आज भी है। कहानियों में मार्मिकता, दयनीयता, लाचारी, शोषण को अच्छे से रेखांकित किया गया है। कहानियां उत्सुकता जगाती है, संवेदना जगाती है, हृदय परिवर्तन करती है।
कार्यक्रम में श्री यशवंत मेश्राम ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
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