इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख : साहित्य में पर्यावरण चेतना : मोरे औदुंबर बबनराव,बहुजन अवधारणाः वर्तमान और भविष्य : प्रमोद रंजन,अंग्रेजी ने हमसे क्या छीना : अशोक व्यास,छत्तीसगढ़ के कृषि संस्कृति का पर्व : हरेली : हेमलाल सहारे,हरदासीपुर दक्षिणेश्वरी महाकाली : अंकुुर सिंह एवं निखिल सिंह, कहानी : सी.एच.बी. इंटरव्यू / वाढेकर रामेश्वर महादेव,बेहतर : मधुसूदन शर्मा,शीर्षक में कुछ नहीं रखा : राय नगीना मौर्य, छत्तीसगढ़ी कहानी : डूबकी कड़ही : टीकेश्वर सिन्हा ’ गब्दीवाला’,नउकरी वाली बहू : प्रिया देवांगन’ प्रियू’, लघुकथा : निर्णय : टीकेश्वर सिन्हा ’ गब्दीवाला’,कार ट्रेनर : नेतराम भारती, बाल कहानी : बादल और बच्चे : टीकेश्वर सिन्हा ’ गब्दीवाला’, गीत / ग़ज़ल / कविता : आफताब से मोहब्बत होगा (गजल) व्ही. व्ही. रमणा,भूल कर खुद को (गजल ) श्वेता गर्ग,जला कर ख्वाबों को (गजल ) प्रियंका सिंह, रिश्ते ऐसे ढल गए (गजल) : बलबिंदर बादल,दो ग़ज़लें : कृष्ण सुकुमार,बस भी कर ऐ जिन्दगी (गजल ) संदीप कुमार ’ बेपरवाह’, प्यार के मोती सजा कर (गजल) : महेन्द्र राठौर ,केशव शरण की कविताएं, राखी का त्यौहार (गीत) : नीरव,लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की नवगीत,अंकुर की रचनाएं ,ओ शिल्पी (कविता ) डॉ. अनिल कुमार परिहार,दिखाई दिये (गजल ) कृष्ण कांत बडोनी, कैलाश मनहर की ग़ज़लें,दो कविताएं : राजकुमार मसखरे,मंगलमाया (आधार छंद ) राजेन्द्र रायपुरी,उतर कर आसमान से (कविता) सरल कुमार वर्मा,दो ग़ज़लें : डॉ. मृदुल शर्मा, मैं और मेरी तन्हाई (गजल ) राखी देब,दो छत्तीसगढ़ी गीत : डॉ. पीसी लाल यादव,गम तो साथ ही है (गजल) : नीतू दाधिच व्यास, लुप्त होने लगी (गीत) : कमल सक्सेना,श्वेत पत्र (कविता ) बाज,.

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध

मनोज कुमार शुक्‍ल

पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
पतझर से झरतेहैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
हारों की मुस्कानें सूखकर झरी
आशाएँ सपनों के सेज पर सजी
         पतझर से झरते हैं सारे अनुबंध
         लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
यादों की झोली में दुबिया सौगात
माटी की खुशबू और फूल की बहार
बगिया के माली ने तोड़ा विश्वास
बिछुड़ गई माझी से आशा पतवार
         पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
         लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
आगत के स्वागत में अभिनंदन गीत
पुष्पों की मालाएँ प्रियतम संगीत
रोम - रोम पुलकित था आंगन उल्हास
मन में उमंगों का सुन्दर मधुमास
         पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
         लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
डाल - डाल कोयल की गूंगी थी कूक
अमराईया झूमी थी मस्ती में खूब
टेसू की मुस्कानें कह गयी संदेश
आरती की थाल को सजाओ रे देश
         पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
         लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
मौसम के आँचल में मुरझाय फूल
राहों में काँटे और उड़ती है धूल
पैरों में शूल चुभे रिसते से घाव
चेहरों में छायी उदासी के भाव
         पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
         लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
जाति - धर्म - भाषा की उठती दीवार
उग्रवाद आतंक का आया सैलाब
लपटों और छपकों में झुलसा परिवेश
प्रगति और एकता से भटका ये देश
         पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
         लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
टूट रहे बांध सभी नदी के उफान
पुरवाई से झरते हैं सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
कौन सी दिशा है ये कौन सा मुकाम
         पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
         लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
पता
आशीष दीप, 58, उत्तर मिलौनीगंज,
जबलपुर(म.प्र.)
मोबाईल : 09425862550

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