मनोज कुमार शुक्ल
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
पतझर से झरतेहैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
हारों की मुस्कानें सूखकर झरी
आशाएँ सपनों के सेज पर सजी
पतझर से झरते हैं सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
यादों की झोली में दुबिया सौगात
माटी की खुशबू और फूल की बहार
बगिया के माली ने तोड़ा विश्वास
बिछुड़ गई माझी से आशा पतवार
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
आगत के स्वागत में अभिनंदन गीत
पुष्पों की मालाएँ प्रियतम संगीत
रोम - रोम पुलकित था आंगन उल्हास
मन में उमंगों का सुन्दर मधुमास
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
डाल - डाल कोयल की गूंगी थी कूक
अमराईया झूमी थी मस्ती में खूब
टेसू की मुस्कानें कह गयी संदेश
आरती की थाल को सजाओ रे देश
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
मौसम के आँचल में मुरझाय फूल
राहों में काँटे और उड़ती है धूल
पैरों में शूल चुभे रिसते से घाव
चेहरों में छायी उदासी के भाव
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
जाति - धर्म - भाषा की उठती दीवार
उग्रवाद आतंक का आया सैलाब
लपटों और छपकों में झुलसा परिवेश
प्रगति और एकता से भटका ये देश
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
टूट रहे बांध सभी नदी के उफान
पुरवाई से झरते हैं सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
कौन सी दिशा है ये कौन सा मुकाम
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
पता
आशीष दीप, 58, उत्तर मिलौनीगंज,
जबलपुर(म.प्र.)
मोबाईल : 09425862550
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
पतझर से झरतेहैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
हारों की मुस्कानें सूखकर झरी
आशाएँ सपनों के सेज पर सजी
पतझर से झरते हैं सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
यादों की झोली में दुबिया सौगात
माटी की खुशबू और फूल की बहार
बगिया के माली ने तोड़ा विश्वास
बिछुड़ गई माझी से आशा पतवार
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
आगत के स्वागत में अभिनंदन गीत
पुष्पों की मालाएँ प्रियतम संगीत
रोम - रोम पुलकित था आंगन उल्हास
मन में उमंगों का सुन्दर मधुमास
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
डाल - डाल कोयल की गूंगी थी कूक
अमराईया झूमी थी मस्ती में खूब
टेसू की मुस्कानें कह गयी संदेश
आरती की थाल को सजाओ रे देश
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
मौसम के आँचल में मुरझाय फूल
राहों में काँटे और उड़ती है धूल
पैरों में शूल चुभे रिसते से घाव
चेहरों में छायी उदासी के भाव
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
जाति - धर्म - भाषा की उठती दीवार
उग्रवाद आतंक का आया सैलाब
लपटों और छपकों में झुलसा परिवेश
प्रगति और एकता से भटका ये देश
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
टूट रहे बांध सभी नदी के उफान
पुरवाई से झरते हैं सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
कौन सी दिशा है ये कौन सा मुकाम
पतझर से झरते हैं, सारे अनुबंध
लौट गया देहरी से प्यारा बसंत
पता
आशीष दीप, 58, उत्तर मिलौनीगंज,
जबलपुर(म.प्र.)
मोबाईल : 09425862550
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें