लोकनाथ साहू ' ललकार '
अजब संसार होगे, चोर भरमार होगे,
चोरहा के भोरहा म चंउकीदार उपर सक होथे।
सच बेजबान होगे, झूठ बलवान होगे,
बईमान बिल्लागे ते, ईमानदार उपर सक होथे।
मुख बोले राम - राम, पीठ पीछु छुरा थाम,
बेवफा बिल्लागे ते वफादार उपर सक होथे।
रखवार देख बाग रोथे, जंगल म काग रोथे,
वरदी म दाग देख, थानादार उपर सक होथे।
दूभर ले दू असाड़, जिनगी लगे पहाड
चोरहा के भोरहा म चंउकीदार उपर सक होथे।
सच बेजबान होगे, झूठ बलवान होगे,
बईमान बिल्लागे ते, ईमानदार उपर सक होथे।
मुख बोले राम - राम, पीठ पीछु छुरा थाम,
बेवफा बिल्लागे ते वफादार उपर सक होथे।
रखवार देख बाग रोथे, जंगल म काग रोथे,
वरदी म दाग देख, थानादार उपर सक होथे।
दूभर ले दू असाड़, जिनगी लगे पहाड
नैनन सावन - भादो, एला खार - खेती कहिथे।
पानीदार गुनाह करे, कानून पनिया भरे,
जनता जयकार करे, एला अंधेरगरदी कहिथे।
ढेकना कस चूसथे, मुसवा कस ठूंसथे,
बोहाथे घड़ियाली ऑंसू, एला नेता नीति कहिथे।
नकटा के नाक बाढ़े, दलबदलू के धाक बाढ़े,
थूक के जे चांटे, तेला राजनीति कहिथे।
पानीदार गुनाह करे, कानून पनिया भरे,
जनता जयकार करे, एला अंधेरगरदी कहिथे।
ढेकना कस चूसथे, मुसवा कस ठूंसथे,
बोहाथे घड़ियाली ऑंसू, एला नेता नीति कहिथे।
नकटा के नाक बाढ़े, दलबदलू के धाक बाढ़े,
थूक के जे चांटे, तेला राजनीति कहिथे।
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