रमेश कुमार सिंह चौहान
काला कहि संत रे, आसा गे सब टूट ।
ढोंगी ढ़ोंगी साधु हे, धरम करम के लूट ।।
धरम करम के लूट, लूट गे राम कबीरा ।
ढोंगी मन के खेल, देख होवत हे पीरा ।।
जानी कइसे संत, लगे अक्कल मा ताला ।
चाल ढाल हे एक, संत कहि हम काला।।
होथे कइसे संत हा, हमला कोन बताय।
रूखवा डारा नाच के, संत ला जिबराय।।
संत ला जिबराय, फूल फर डारा लहसे।
दीया के अंजोर, भेद खोलय गा बिहसे ।।
कह रमेश समझाय, जेन सुख शांति बोथे ।
पर बर जिथे ग जेन, संत ओही हा होथे ।
http://www.gurturgoth.com
काला कहि संत रे, आसा गे सब टूट ।
ढोंगी ढ़ोंगी साधु हे, धरम करम के लूट ।।
धरम करम के लूट, लूट गे राम कबीरा ।
ढोंगी मन के खेल, देख होवत हे पीरा ।।
जानी कइसे संत, लगे अक्कल मा ताला ।
चाल ढाल हे एक, संत कहि हम काला।।
होथे कइसे संत हा, हमला कोन बताय।
रूखवा डारा नाच के, संत ला जिबराय।।
संत ला जिबराय, फूल फर डारा लहसे।
दीया के अंजोर, भेद खोलय गा बिहसे ।।
कह रमेश समझाय, जेन सुख शांति बोथे ।
पर बर जिथे ग जेन, संत ओही हा होथे ।
http://www.gurturgoth.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें