नरेश टॉक 'अनय'
वे तमाम ख़त
जो कभी अपने पते पर नही पहुंच पाए
उनका एक मुस्तकबिल तुम हो
न जाने
क्या - क्या कहा मैंने तुम्हें
न जाने क्या - क्या कहे से तुम
क्या - क्या समझी।
मैं अब कुछ नहीं कहता
न कहने से भी
तुम क्या समझती हो
कहूं तो
कहती हो कि -
तुम तो कहते हो,
चुप न सहते हो।
खामोश जो रह हूं तो कहती हो-
क्या मैंने कह दिया तुम्हें,
सुन रहे हो
मैं क्या कह रही हूं
तुमने जो कहा
वो सुना मैंने और वो भी ...
जो कहने - सुनने में
लफ़्ज तक आते - आते
आ न सका
उस बात
उस चाह
उस कहने का मैं तलबगार हूं
न जाने तुम कब कहोगी
और जब कहोगी
तब सुनुंगा मैं
पर तुम कुछ न भी कहो
कुछ - कुछ तो सुना हैं
मैंने तुम्हें
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मो. 9871576455
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