प्रो.श्योराज सिंह ' बेचैन '
(डॉ. बी. आर . अम्बेडकर को 14 अप्रैल 1990 में भारत रत्न दिये जाने के मौके पर लिखी गयी कविता )
बयालीस बरस बीते
आज़ादी - ए - भारत को
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
आया यह गनीमत है
जम्हूरी हुकूमत में
जातों के झमेलों में
धर्मों के बखेड़ों में
वोटो के लिए चाहे
वाजिब यह इनाम आया।
अब आ के हमें
अपने बाबा का ख्याल आया।
भीष्म की तरह जिनके
गिन - गिन के तीर झेले
धृतराष्ट्र के बेटे थे
कुछ थे मनु के चेले
अफसोस कि जुल्मत पर
अब तक न विराम आया।
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
वर्णों के विभाजन में
गृहयुद्ध जातियों का
फल मिल नहीं रहा था
इंसान को मेहनत का
शोषण के सपोलों ने
था जाल - सा फैलाया
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया
तालीम से पाबन्दी,
रोटी के भी लाले थे
गोरों से कहीं ज्यादा
जालिम ये काले थे
महिलाओं के सिर पर भी
गर्दिश ही का था साया
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
सौ साल हो रहे हैं
बाबा के जन्मदिन को
आसार - ए - मुक्ति अब
दीखे किसी निर्धन को
ये कौन जिन्हें देखो
इस पर भी मलाल आया।
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
मजहूम को इज़्जत दी
अच्छा ही लगा हमको
पर दलितों पे सितम जारी
बाबा पे करम क्यों हैं?
बयालीस बरस बीते
आज़ादी - ए - भारत को
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
शिखर पर
साहित्य में घाघ
कला में कपटी सियासत में शातिर
मीडिया में मठाधीश
सिनेमा में शिखर पर हैं
संसद में मनोनीत
लोकतन्त्र के
माई - बाप
सर्वेसर्वा
अपने आप
देश के सपने
देश की सुविधाएं
देश के साधन
सब के सब
उनके घर पर हैं
वे शिखर पर हैं।
पता -
1/122,वसुन्धरा, गाजियाबाद ( उत्तरप्रदेश )201012
(डॉ. बी. आर . अम्बेडकर को 14 अप्रैल 1990 में भारत रत्न दिये जाने के मौके पर लिखी गयी कविता )
बयालीस बरस बीते
आज़ादी - ए - भारत को
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
आया यह गनीमत है
जम्हूरी हुकूमत में
जातों के झमेलों में
धर्मों के बखेड़ों में
वोटो के लिए चाहे
वाजिब यह इनाम आया।
अब आ के हमें
अपने बाबा का ख्याल आया।
भीष्म की तरह जिनके
गिन - गिन के तीर झेले
धृतराष्ट्र के बेटे थे
कुछ थे मनु के चेले
अफसोस कि जुल्मत पर
अब तक न विराम आया।
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
वर्णों के विभाजन में
गृहयुद्ध जातियों का
फल मिल नहीं रहा था
इंसान को मेहनत का
शोषण के सपोलों ने
था जाल - सा फैलाया
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया
तालीम से पाबन्दी,
रोटी के भी लाले थे
गोरों से कहीं ज्यादा
जालिम ये काले थे
महिलाओं के सिर पर भी
गर्दिश ही का था साया
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
सौ साल हो रहे हैं
बाबा के जन्मदिन को
आसार - ए - मुक्ति अब
दीखे किसी निर्धन को
ये कौन जिन्हें देखो
इस पर भी मलाल आया।
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
मजहूम को इज़्जत दी
अच्छा ही लगा हमको
पर दलितों पे सितम जारी
बाबा पे करम क्यों हैं?
बयालीस बरस बीते
आज़ादी - ए - भारत को
अब आ के हमें अपने
बाबा का ख्याल आया।
शिखर पर
साहित्य में घाघ
कला में कपटी सियासत में शातिर
मीडिया में मठाधीश
सिनेमा में शिखर पर हैं
संसद में मनोनीत
लोकतन्त्र के
माई - बाप
सर्वेसर्वा
अपने आप
देश के सपने
देश की सुविधाएं
देश के साधन
सब के सब
उनके घर पर हैं
वे शिखर पर हैं।
पता -
1/122,वसुन्धरा, गाजियाबाद ( उत्तरप्रदेश )201012
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