आनन्द तिवारी पौराणिक
(1)
अंगरा कस भुइंया धंधकत हे
सरर - सरर, लू चलत हे
सुरुज के बाढ़े तेवर
गली - मोहल्ला होगे सुन्ना, कलेचुप हे घर।
(2)
तन ले चूहय अब्बड़ पछीना
मन हे बियाकुल, गरमी के महीना
रहि रहि के, लागय पियास
रद्दा रेंगइया ल हे, छइंहा के आस
(3)
रेती के समन्दर, बनगे नदिया
सुक्खा होगे, कुआँ तरिया
गगरी धरे, भटकय पनिहारिन
सुन्ना परान अधर, पानी बिन
(4)
आलस के कविता, पियास के गीत
हरर - हरर, बड़ोंरा के संगीत
हवा म घुरगे हे, पछीना के गंध
अतलंग करय गरमी, पुरवाही हे बंद
(5)
गोधुली बेला संग संझा जभे आही
जुड़ हवा चलही, त जी ह जुड़ाही
दीया बाती होही, घर म जेवन चुरही, सबो खाहीं
थके परानी ल, निंदिया, लोरी गा के सुताही
श्रीराम टाकीज मार्ग
महासमुन्द( छ.ग.)

अंगरा कस भुइंया धंधकत हे
सरर - सरर, लू चलत हे
सुरुज के बाढ़े तेवर
गली - मोहल्ला होगे सुन्ना, कलेचुप हे घर।
(2)
तन ले चूहय अब्बड़ पछीना
मन हे बियाकुल, गरमी के महीना
रहि रहि के, लागय पियास
रद्दा रेंगइया ल हे, छइंहा के आस
(3)
रेती के समन्दर, बनगे नदिया
सुक्खा होगे, कुआँ तरिया
गगरी धरे, भटकय पनिहारिन
सुन्ना परान अधर, पानी बिन
(4)
आलस के कविता, पियास के गीत
हरर - हरर, बड़ोंरा के संगीत
हवा म घुरगे हे, पछीना के गंध
अतलंग करय गरमी, पुरवाही हे बंद
(5)
गोधुली बेला संग संझा जभे आही
जुड़ हवा चलही, त जी ह जुड़ाही
दीया बाती होही, घर म जेवन चुरही, सबो खाहीं
थके परानी ल, निंदिया, लोरी गा के सुताही
श्रीराम टाकीज मार्ग
महासमुन्द( छ.ग.)
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