चन्द्रधर शर्मा ' गुलेरी '
एक गांव में बारात जीमने बैठी । उस समय स्त्रियां समधियों को गालियां गाती हैं, पर गालियां न गाई जाती देख नागरिक सुधारक बाराती को बड़ा हर्ष हुआ । वह ग्राम के एक वृद्ध से कह बैठा - ' बड़ी खुशी की बात है कि आपके यहाँ इतनी तरक्की हो गई है।'
बुड्डा बोला- ' हाँ साहब, तरक्की हो रही है । पहले गलियों में कहा जाता था ... फलाने की फलानी के साथ और अमुक की अमुक के साथ। लोग - लुगाई सुनते थे। हँस देते थे । अब घर - घर में वे ही बातें सच्ची हो रही हैं । अब गालियां गाई जाती हैं तो चोरों की दाढ़ी में तिनके निकलते हैं । तभी तो आंदोलन होते हैं कि गालियां बंद करो, क्योंकि वे चुभती हैं ।
बुड्डा बोला- ' हाँ साहब, तरक्की हो रही है । पहले गलियों में कहा जाता था ... फलाने की फलानी के साथ और अमुक की अमुक के साथ। लोग - लुगाई सुनते थे। हँस देते थे । अब घर - घर में वे ही बातें सच्ची हो रही हैं । अब गालियां गाई जाती हैं तो चोरों की दाढ़ी में तिनके निकलते हैं । तभी तो आंदोलन होते हैं कि गालियां बंद करो, क्योंकि वे चुभती हैं ।
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