पं. गिरिमोहन गुरु '' नगरश्री''
मिलन के लिए स्मरण भी जरूरी
बिरह की अनोखी जलन भी जरूरी
मुझे एक दिन दार्शनिक ने बताया
जनम के लिए है मरण भी जरूरी
*
हर हवा के साथ लहराता रहा हूं
हर घटा के साथ ही गाता रहा हूं
ठोकरों ने हौसला मेरा बढ़ाया
मुश्किलों में मुस्कराता ही रहा हूं
*
सूर्य की आग में जलकर देखा
चाँद की छाँव में पलकर देखा
कहीं आराम न मिला पल भर
जाम के साथ में ढल कर देखा
*
दर्द दिल में मगर गाता है
न जबीं पर ही शिकन लाता है
वही इंसान जिया है जग में
चोट खाकर जो मुस्कराता है
*
गुन गुन करते रहते भ्रमर नहीं थकते
पिउ पिउ करते चातक मगर नहीं थकते
रोते रहने से आँखें दुखने लगती है
कितना ही मुस्काओं अधर नहीं थकते
*
शामे गम को सहर किया मैंने
पत्थरों को भी जर किया मैंने
लोग अमृत के लिए मरते हैं
जिन्दगी का जहर पिया मैंने
नर्मदा मंदिरम गृह निर्माण कालोनी
होशंगाबाद म.प्र.
मिलन के लिए स्मरण भी जरूरी
बिरह की अनोखी जलन भी जरूरी
मुझे एक दिन दार्शनिक ने बताया
जनम के लिए है मरण भी जरूरी
*
हर हवा के साथ लहराता रहा हूं
हर घटा के साथ ही गाता रहा हूं
ठोकरों ने हौसला मेरा बढ़ाया
मुश्किलों में मुस्कराता ही रहा हूं
*
सूर्य की आग में जलकर देखा
चाँद की छाँव में पलकर देखा
कहीं आराम न मिला पल भर
जाम के साथ में ढल कर देखा
*
दर्द दिल में मगर गाता है
न जबीं पर ही शिकन लाता है
वही इंसान जिया है जग में
चोट खाकर जो मुस्कराता है
*
गुन गुन करते रहते भ्रमर नहीं थकते
पिउ पिउ करते चातक मगर नहीं थकते
रोते रहने से आँखें दुखने लगती है
कितना ही मुस्काओं अधर नहीं थकते
*
शामे गम को सहर किया मैंने
पत्थरों को भी जर किया मैंने
लोग अमृत के लिए मरते हैं
जिन्दगी का जहर पिया मैंने
नर्मदा मंदिरम गृह निर्माण कालोनी
होशंगाबाद म.प्र.
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