विनय शरण सिंह
बूढ़े माँ . बाप का होता जहाँ सम्मान नहीं
जहाँ पर बेटियों के होंठों पे मुस्कान नहीँ
जिसकी दीवारों से लग के सिसकते हैं रिश्ते
वो किसी और का होगा ए मेरा मकान नहीं
हम तो रिश्तों को तौलते नहीं हैं पैसों से
ये मेरा घर है दोस्तो कोई दुकान नहीं
आओ मिल बैठ के फुरसत से बात करते हैं
कोई मसला नहीं है जिसका समाधान नहीं
अब के इस दौर में ख़ुश रह के बसर कर लेना
है तो मुश्किल नहीँ पर इतना भी आसन नहीं
करके देखिए तो मुहब्बत में बड़ी ताक़त है
जिसको पिघला न दे ऐसी कोई चट्टान नहीं
खैरागढ़
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बूढ़े माँ . बाप का होता जहाँ सम्मान नहीं
जहाँ पर बेटियों के होंठों पे मुस्कान नहीँ
जिसकी दीवारों से लग के सिसकते हैं रिश्ते
वो किसी और का होगा ए मेरा मकान नहीं
हम तो रिश्तों को तौलते नहीं हैं पैसों से
ये मेरा घर है दोस्तो कोई दुकान नहीं
आओ मिल बैठ के फुरसत से बात करते हैं
कोई मसला नहीं है जिसका समाधान नहीं
अब के इस दौर में ख़ुश रह के बसर कर लेना
है तो मुश्किल नहीँ पर इतना भी आसन नहीं
करके देखिए तो मुहब्बत में बड़ी ताक़त है
जिसको पिघला न दे ऐसी कोई चट्टान नहीं
खैरागढ़
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