सदानन्द सुमन
ये ज़मी, ये आसमाँ, ये सितारे सारे
तुम्हारे कल थे, आज भी तुम्हारे सारे
निज़ाम क्या खूब है इस दुनिया का देखिये
बेसहारे बेसहारे, सहारों को सहारे सारे
जिनका दावा था, रुख हवा का बदल देंगे
बुझ चुके ऐसे दहकते वे शरारे सारे
तमाश कैसा ये अज़ब,सितम सहते फिर भी
न कहीं जुबिस फकत, राम ही पुकारे सारे
तुमको खुद की है फिकर खुद की सोचो
गम ज़गाने के सुमन है हमारे सारे
रानीगंज, मेरी गंज, अररिया (बिहार)
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