इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख : साहित्य में पर्यावरण चेतना : मोरे औदुंबर बबनराव,बहुजन अवधारणाः वर्तमान और भविष्य : प्रमोद रंजन,अंग्रेजी ने हमसे क्या छीना : अशोक व्यास,छत्तीसगढ़ के कृषि संस्कृति का पर्व : हरेली : हेमलाल सहारे,हरदासीपुर दक्षिणेश्वरी महाकाली : अंकुुर सिंह एवं निखिल सिंह, कहानी : सी.एच.बी. इंटरव्यू / वाढेकर रामेश्वर महादेव,बेहतर : मधुसूदन शर्मा,शीर्षक में कुछ नहीं रखा : राय नगीना मौर्य, छत्तीसगढ़ी कहानी : डूबकी कड़ही : टीकेश्वर सिन्हा ’ गब्दीवाला’,नउकरी वाली बहू : प्रिया देवांगन’ प्रियू’, लघुकथा : निर्णय : टीकेश्वर सिन्हा ’ गब्दीवाला’,कार ट्रेनर : नेतराम भारती, बाल कहानी : बादल और बच्चे : टीकेश्वर सिन्हा ’ गब्दीवाला’, गीत / ग़ज़ल / कविता : आफताब से मोहब्बत होगा (गजल) व्ही. व्ही. रमणा,भूल कर खुद को (गजल ) श्वेता गर्ग,जला कर ख्वाबों को (गजल ) प्रियंका सिंह, रिश्ते ऐसे ढल गए (गजल) : बलबिंदर बादल,दो ग़ज़लें : कृष्ण सुकुमार,बस भी कर ऐ जिन्दगी (गजल ) संदीप कुमार ’ बेपरवाह’, प्यार के मोती सजा कर (गजल) : महेन्द्र राठौर ,केशव शरण की कविताएं, राखी का त्यौहार (गीत) : नीरव,लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की नवगीत,अंकुर की रचनाएं ,ओ शिल्पी (कविता ) डॉ. अनिल कुमार परिहार,दिखाई दिये (गजल ) कृष्ण कांत बडोनी, कैलाश मनहर की ग़ज़लें,दो कविताएं : राजकुमार मसखरे,मंगलमाया (आधार छंद ) राजेन्द्र रायपुरी,उतर कर आसमान से (कविता) सरल कुमार वर्मा,दो ग़ज़लें : डॉ. मृदुल शर्मा, मैं और मेरी तन्हाई (गजल ) राखी देब,दो छत्तीसगढ़ी गीत : डॉ. पीसी लाल यादव,गम तो साथ ही है (गजल) : नीतू दाधिच व्यास, लुप्त होने लगी (गीत) : कमल सक्सेना,श्वेत पत्र (कविता ) बाज,.

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

डे केयर

विद्या सिंह

     मीटिंग के बीच में वाइब्रेटर पर पड़ा सेल फ़ोन थरथराया, तो जया के मन में आया, कॉल इग्नोर कर दे, किंतु नंबर देखने के बाद वह ऐसा न कर सकी। कॉल बेबी के डे केयर से था। अचानक आये फ़ोन से वह विचलित हो उठी। नौ बजे तो बेबी डे केयर पहुंचा ही होगा। लगता है फिर चोट - चाट लगा लिया है। अभी तो दस ही बजे हैं। इस समय दिशा भी फ़ोन कर के उसे डिस्टर्ब नहीं करती। वह खुद बेबी का हाल जानने के लिए अपनी सुविधा देख कर फ़ोन कर लिया करती है। ज़रूर कोई ऐसी बात है जिसे बताना दिशा के लिए ज़रूरी हो गया है। 'एक्स्क्यूज़ मी' कहती हुई, फ़ोन ले कर, वह बाहर आ गयी। उसने कॉल ऑन कर दिया। दूसरे सिरे पर दिशा थी।
- हॅलो जया, मैं दिशा बोल रही हूँ।''
- हाँ बोलो दिशा।'' जया ने खीझ भरे स्वर में जवाब दिया।
     उसे मीटिंग के बीच से उठ कर आना अच्छा नहीं लगा था। पराए देश में वैसे भी अपने को हर समय प्रूव करना पड़ता है।
- बेबी खेलते - खेलते गिर गयी। होंठ से ख़ून आ रही है, मेरे ख़्याल से दाँत गड़ गयी होगी। बहुत रो रही है।''        
     दक्षिण भारतीय दिशा स्त्री लिंग - पुल्लिंग के बीच का अंतर नहीं जानती। अभी वह आगे कुछ कहने ही जा रही थी कि जया ने उसे टोक दिया, ''विकास को जल्दी से फ़ोन कर दो। मेरी एक ज़रूरी मीटिंग चल रही है।'' और उसने फ़ोन खटाक् से काट दिया।
     फ़ोन तो उसने काट दिया, किंतु अपने को उस ख़बर से नहीं काट पाई। कहीं विकास भी किसी मीटिंग में बिजी न हों! इस ख़्याल से जया का सर भन्नाने लगा। घबराहट में हथेलियाँ पसीजने लगीं। उस समय वह कहीं बैठ जाना चाहती थी। लगा देर तक खड़ी रही तो चक्कर खा कर गिर जाएगी। उसने तुरंत विकास को फ़ोन मिलाया। मालूम हुआ उन्हें भी बेबी की चोट की जानकारी हो चुकी थी, और वह, ऑफ़िस से वहीं के लिए निकल रहे थे। उसकी चिंता कुछ कम हुई, यों बेबी के मामले में विकास पर वह कम भरोसा करती है। उनके अंदर धैर्य तो नाम मात्रा को भी नहीं है। बेबी जहाँ थोड़ी देर रोया, कि झल्ला पड़ते हैं। कहते हैं-''ज़िद करता है।'' कितना समझाती हूँ सभी बच्चे रोते हैं।
- देेसी बच्चे रोते हैं। यहाँ के बच्चों को रोते सुना है? यह तो अच्छा है पड़ोसी ठीक - ठाक हैं, नहीं तो हमारी कम्प्लेंट कर देता और हमारे पास अपार्टमेंट छोड़ने के अलावा कोई चारा न बचता। इसे गोद में रहने की आदत हो गयी है। कितनी बार कहा था अमेरिकन डे केयर में बात करते हैं।''
     उनकी बातें भी ग़लत नहीं हैं। नर्स भी यही कहती थी, दूध पिलाने के बाद अगर बच्चा रोता है, तो रोने दो, धीरे - धीरे वह अपने आप नहीं रोएगा, लेकिन जया उसके साथ इतनी कठोर नहीं हो पाती। उसने देखा है, कैसे  अपने यहाँ बच्चा इस गोद से उस गोद में पलता है।
     वह दुबारा 'एक्स्क्यूज़ मी'' कहती हुई, वापस अपनी जगह पर आ कर बैठ गयी। जब से बेबी को इसके यहाँ रखा है, महीने में यह दूसरी बार है, जब उसे चोट लगी है। जाने कैसे रखती है? इससे तो लाख दर्जे अच्छीे रिया थी। छह महीने उसके यहाँ रही, मज़ाल जो कभी इस तरह का फोन आया हो। उसे इंडिया न जाना होता, तो बेबी का डे केयर बदलती ही क्यों? बच्चे को भी तो नयी जगह पर नये लोगों से हिलने में टाइम लगता है। बार - बार डे केयर बदलना कोई अच्छी बात थोड़े ही है। जया की मानसिक उलझन कम होने का नाम नहीं ले रही थी। बेबी दो महीने का भी नहीं हुआ था, जब दिशा को नौकरी ज्वाइन करनी पड़ी थी। उसकी कंपनी में स्थाई नौकरी में चार महीने का मातृत्व अवकाश मिलता, जबकि कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर काम करने वाली महिलाओं के लिए कोई नियम नहीं था। उनके लिए कंपनी अपने हिसाब से अवकाश की अवधि तय करती। जया को जब आठ सप्ताह का अवकाश मिला था उसने सोचा वह डिलिवरी के दिन तक ऑफिस का काम करेगी और सारे  अवकाश डिलिवरी के बाद लेगी, लेकिन बाद - बाद के दिनों में पैरों में इतनी सूजन आ गयी थी, कि घर से काम करना भी मुश्किल हो गया। ड्यू डेट से एक सप्ताह पहले ही उसे लीव लेनी पड़ी। दुबारा नौकरी पर जाने से पहले जया ने खुद से कितनी जद्दोजहद की थी! वह बेबी का मासूम चेहरा देखती और उसकी आँखों में पानी फैल जाता। इस बच्चे का क्या अपराध है, कि माँ के होते हुए, इसे माँ की गोद नसीब न हो। उसने सोचा था, यदि विकास खुद मना कर दें, तो वह दुबारा नौकरी ज्वाइन नहीं करेगी, लेकिन विकास ने इस मामले में कुछ भी राय देने से साफ़  मना कर दिया था, ''जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं कुछ नहीं कहूँगा, वरना कल को कहोगी मैंने तुम्हारा कॅरियर खराब किया।'' जया बचपन से कॅरियर माइंडेड थी, इसीलिए उसने कम्प्यूटर वाली लाइन का चुनाव किया था, ताकि नौकरी आसानी से मिल जाए। उसका अकाडमिक रिकॉर्ड अच्छा था और उसने एम.सी.ए. में भी अच्छा परफॉर्म किया था, तभी तो कैम्पस इंटरव्यू में उसे अच्छे वेतन पर ख्याति प्राप्त कंपनी में नौकरी मिल गयी। उसके विवाह में भी उसकी योग्यता वर्तमान साहित्य काम आई। विकास के घर वालों ने इश्तहार निकलवाया था और जब उसके पिता ने उनके पास जया का प्रस्ताव भेजा, तो एक ही कंपनी देख कर वे लोग फौरन राजी हो गए थे।
     विवाह के बाद विकास के प्रोजेक्ट में वह भी शामिल होना चाहती थी, ताकि बाहर जाने का अवसर मिले तो दोनों साथ - साथ जा सकें, लेकिन ऐसा न हो सका। दोनों अलग - अलग प्रोजेक्ट में काम करते रहे। इसी कारण विकास के साथ जाने के लिए उसे नौकरी से अवकाश लेना पड़ा। लेकिन उसने अमेरिका जाने से पहले ही विकास को बता दिया था कि यदि वहाँ उसकी नौकरी लग जाती है, तभी वह उनके साथ रह पाएगी अन्यथा वह वापस इंडिया आ जाएगी। कॅरियर में व्यवधान न आ जाए इस बात की उसे हर समय चिंता सताती। इस नौकरी को हथियानेे के लिए उसने क्या - क्या पापड़ नहीं बेले। कितने ही महीने बिना वेतन के काम किया। कितनों का एहसान लिया। तब उसे क्या मालूम था यही नौकरी एक दिन गले की हड्डी बन जाएगी, जिसे न निगलते बनेगा न उगलते। माँ बनते ही प्राथमिकताएँ बदल जाएँगी यह भी कहाँ मालूम था!
     जया उन लोगों पर बहुत खीझती, जो मौका लगते ही अपने बच्चों के किस्से शुरू कर देते। कोई आकर बैठा नहीं कि बताओ बेटा-नोज़ कहाँ है, माउथ कहाँ है। जैसे उनका बच्चा ही दूसरा आइंस्टीन बनने वाला हो। अब उसे मालूम हुआ दीदी को कितना बुरा लगता होगा जब थक जाने पर, नींद में कंधे पर सो रहे उनके बेटे को वह जमीन पर खड़ा कर देती। दीदी का परेशान चेहरा उसे बार - बार याद आता है।
     किसी भी फैसले से विकास के तटस्थ हो जाने पर वह खुद कशमकश में जूझती रही। जैसे - जैसे उसकी छुट्टियाँ समाप्ति की ओर आ रही थीं उसके भीतर का झंझावात और तेज हो रहा था। जितने लोग उतनी तरह की राय। जया की माँ कहतीं हिम्मत से काम करो, सब हो जाता है। सास कहतीं थोड़े कम में गुज़ारा कर लेना। वह क्या करे - जया कुछ सोच नहीं पाती थी। उसके $फैसले में निर्णायक भूमिका में सहायता की उसकी अपनी सहकर्मियों ममता, मणि ने। उन्हें याद कर वह अपने मन को समझाती, वे भी तो हैं। उनके साथ भी उनकी माँ या सास नहीं रहतीं। उनके बच्चे भी तो डे केयर में ही रहते हैं। और दुबारा नौकरी पर जाने के लिए उसने अपने आप को तैयार कर लिया था।
     कितना चाहा था उसने, इंडिया से माँ या सास में से कोई एक आ कर बेबी को कुछ महीने संभाल दे, लेकिन दोनों ही अपने - अपने कारणों से नहीं आ सकीं। उलटे यह जरूर कहतीं - तुम यहीं आ जाओ, हम संभाल देंगे। यहाँ की सुविधा नहीं देखी है न, इसीलिए इस तरह की बातें करती हैं। वे लोग तो यह भी नहीं चाहते, हम यहाँ नौकरी करें। चाहते थे प्रोजेक्ट पूरा हो और हम वापस चले जाएँ। वह तो हमारी किस्मत अच्छी थी कि विकास को एक प्रोजेक्ट के बाद , दूसरा मिल गया और मुझे भी अच्छी नौकरी मिल गयी, तो हमें यहाँ रुकने का बहाना मिल गया।
''ओ.के.। वी हैव टू फिनिश द टास्क टिल फ्राइ डे।'' कहती हुई टीम लीडर ने मीटिंग समाप्त की। लेकिन दिशा का फोन सुनने के बाद से जया के कानों ने कुछ भी सुनना बंद कर दिया था। वहाँ हो कर भी, जैसे वह वहाँ नहीं थी। उसके भीतर उथल पुथल मची थी। उसकी आँखों के सामने बेबी का बिसूरता चेहरा बार - बार नमूदार होता रहा। हड़बड़ी में वह दिशा को बताना भूल गयी कि बेबी के मुँह में थोड़ी चीनी डाल देती तो खून एकदम बंद हो जाता। मीटिंग से निकल कर वह सीधी वॉशरूम गयी। कक्ष वातानुकूलित होने के बावजूद उसे गर्मी महसूस होने लगी थी। उसने बैग से टिशू पेपर निकाला और सामने शीशे में देखते हुए माथे तथा कनपटी पर उभर आये पसीने की बूंदों को थपथपा कर सुखा दिया। उसने दिशा को फोन मिलाया। ''हॅलो दिशा, मैं जया, अब बेबी कैसा है?'' उसने घबराए स्वर में पूछा।
- बेबी अब एकदम ठीक है। ब्लड तो तभी बंद हो गयी थी। विकास आई थी। डोन्ट वरी। ''
- हुंह! तुमने कहा और मेरी वरी ख़त्म हुई।'' जया फोन बंद कर बड़बड़ाई।
     बेबी के जन्म के बाद से चकरघिन्नी बन कर रह गयी है जया। इसीलिए तो वे लोग बेबी प्लान करना ही नहीं चाहते थे। जब ज़रूरत होगी देख लेंगे। किन्तु बातें इतनी आसान होती हैं क्या? भले ही वे सात समुंदर पार रहते हों, नाल तो यू.पी. के अदना से गाँव से ही जुड़ी है। एक ओर  दादी, मम्मी को कोंचती रहतीं, '' बुढ़ापे में बच्चा करेगी क्या? समझाओ उसे।'' दूसरी ओर उसकी सास, विकास को जब न तब टोकती रहतीं- '' तीस की होने जा रही है कब करेगी बच्चा? मैं तो चालीस की उम्र तक, सास भी बन गयी थी।'' अब हो गया है बच्चा, अब कोई क्यों नहीं आ कर संभालता? दूर से तो कोई भी लाड़ दिखा देगा। माँ की समझाइश जया के कानों में अब भी गूँजती है - '' एक बच्चा तो होना ही चाहिए। मातृत्व का कोना कुदरत ने हर स्त्री को बख्शा है। उसकी अनदेखी करके औरत एक बहुत बड़ी खुशी से वंचित रह जाएगी। अपने भीतर से एक नये प्राणी को जन्म देने का चमत्कार एक स्त्री ही कर सकती है।''
- सब समझती हूँ माँ, पर मेरी जगह अपने को रख कर देखो।'' जवाब देने में तड़प जाती जया। जानती है, माँ ने भी नौकरी के साथ-साथ ही बच्चे पाले हैं। रचना उससे सिर्फ  डेढ़ साल छोटी है, उसकी तो याद नहीं, किंतु भाई, जो जया से सात साल छोटा है, उसकी जया को ख़ूब याद है। माँ के पास दादी बराबर बनी रहतीं। घर-बच्चों की पूरी ज़िम्मेदारी दादी हरिया की मदद से उठातीं, माँ एकदम बेफिक्री से नौकरी करतीं। सुबह आठ से शाम के पाँच बजे की फैक्टरी की नौकरी माँ आराम से कर लेती थीं। दादी की याद से जया को हँसी आ गयी। अपने जमाने के वह ऐसे-ऐसे किस्से सुनातीं, जिसे सुन कर जया हँसते - हँसते लोटपोट हो जाती। ''वह ज़माना अच्छा था, लड़कियों पर पढ़ाई का बोझ नहीं था। घर के कामकाज सीख लो, चिट्ठी पत्री के लायक पढ़ाई कर लो, बस! डॉक्टर से शादी हो गयी तो डाक्टरनी बन गयी, वकील से हुई तो वकीलनी बन गयी। इस जमाने की तरह नहीं कि डाक्टर को लड़की भी डाक्टर चाहिए। यह भी कोई बात हुई!''
     दादी भाई को बोतल से दूध पिलाने के एकदम खिलाफ  थीं। माँ सोचती कटोरी चम्मच का झंझट कौन पाले? बड़ी मुश्किल से माँ भाई को बोतल लगा पाई थी। ''मेरे बच्चों ने बोतल से दूध नहीं पिया, तो क्या वे कोई कमजोर रह गए? '' दादी चाहतीं माँ कटोरी चम्मच से भाई को दूध पिलाएँ।  माँ बहुत चाहतीं, भाई को घड़ी देख कर समय से दूध पिलाएँ, लेकिन दादी के सामने उनकी एक न चलती। वह जब रोता, दादी का आदेश होता, ''दूध बना लाओ हरिया।'' कई बार तो ज्यादा दूध पी लेने के कारण उसका पेट चलने लगता। जब दादी गाँव गयी होतीं तो उतने दिन के लिए माँ अपने मायके से किसी को बुला लेतीं। माँ मेरी मुश्किलें समझ ही नहीं सकती। वह अंत में इसी निष्कर्ष पर पहुँचती। जया वापस अपने चैंबर में अपनी सीट पर आई तो मणि ने पूछ लिया - ''परेशान दिख रही है। कुछ बात है क्या?'' दिशा के फोन के बारे में बताते - बताते जया की आँखों में पानी भर गया, उसकी आवाज भर्रा गयी ''मालूम नहीं बेबी कैसा है, कहीं दिशा ने झूठमूठ ही न कह दिया हो, वह ठीक है। कह रही थी विकास बेबी को ले गए। अब उनका फोन ही नहीं उठ रहा है, मुझे तो बड़ी फिक्र हो रही है।'' जया ने अपनी चिंता मणि पर प्रकट की।
- विकास ले गए तब क्यों परेशान है ? इतनी सी बात पर रो रही है। अभी तो न जाने कितना गिरेगा - पड़ेगा। तू तो लकी है, घर जैसा डे केयर मिला है। रोता होगा तो कम से कम गोद तो मिलती होगी। हमारी पलक को देखो, हर समय उसके मुँह में पैसिफायर ठूँसेे रहते हैं।'' मणि ने उसे तसल्ली दी।
- इस समय उसे मेरी जरूरत है मणि। कई बार वह विकास से भी चुप नहीं होता, डे केयर की तो बात ही जाने दो।'' 
- बॉस को मेल लिख कर, तू आज जल्दी घर क्यों नहीं चली जाती ? '' मणि की सलाह में सहानुभूति थी।
     बॉस को मेल लिखते हुए जया की उंगलियाँ कई बार ठिठकीं। इससे तो अच्छा होता वह बेबी को इंडिया में ही छोड़ देती। यह सब तो आये दिन लगा रहेगा, पर अगले ही क्षण उसे अपने ऊपर आश्चर्य हुआ, वह ऐसा सोच भी कैसे सकती है? यहाँ बेबी कम से कम सुबह शाम तो साथ रहता है। फिर शनिवार, रविवार भी मिल जाते हैं। इंडिया भेजने का तो मतलब है, साल - छह महीने बाद कहीं उसे देखना हो पाएगा। डे केयर भी ठीक ही मिल गया है। अमेरिकन डे केयर के एक तो चाज़ेर्ज़ बहुत ज़्यादा हैं, ऊपर से उनका तरीका भी अजीबोगरीब लगता है। बच्चे के साथ भी इतने कायदे कानून लगाते हैं, जैसे बच्चा नहीं, किसी मशीन का पुर्जा तैयार कर रहे हों। तभी तो यहाँ के बच्चों का अपने माता - पिता से अधिक जुड़ाव नहीं होता। जन्म के बाद से ही अलग सुलाने लगेंगे,तो और क्या होगा। यहाँ कम से कम इंडियन्स के बीच में तो है। जैसे - तैसे दिशा के यहाँ एक महीना और रखूंगी, तब तक तो रिया आ ही जाएगी। उसकी दोनों बेटियाँ तो बेबी को सगा भाई समझती हैं। वे तो वीकएन्ड में भी उसे अपने घर रखने की जिद करती हैं। रिया ने तो बेबी के जन्म से पहले ही संभालने का ऑफर कर दिया था 'मैं बच्चा रख लूंगी।' जया ने खुद को तसल्ली दी।
     चार बजे वह ऑफिस छोड़ कर निकल पड़ी। मेट्रो में समय काटे नहीं कट रहा था। जब एनाउन्समेंट होता 'द नेक्स्ट स्टेशन इज़...'उसे बहुत गुस्सा आता-'उफ़  यह टेन इतनी जल्दी - जल्दी रुकती क्यों है?''
     उसे अनायास अपनी मम्मी के मुहल्ले की मदान आंटी की याद आ गयी। एम.ए. करने के लिए, अपने छह महीने के बेटे को मायके छोड़ कर, उन्होंने कॉलेज में भूगोल में रेगुलर एडमिशन लिया था। अचानक एक दिन टैक्सी में उनकी माँ और भाई बच्चे का शरीर ले कर आये। न जाने किस बीमारी में वह चटपट चल बसा। उन दिनों फोन की सुविधा तो थी नहीं, अत: मिसेज मदान को तो बेटे की बीमारी की खबर भी नहीं लग पाई। जया एकबारगी काँप गयी। वह मन ही मन बेबी के दीर्घायु होने की प्रार्थना ईश्वर से करने लगी। आखिर उसका अपना स्टॉपेज आ गया। मिल्कबैग, टिफिन बॉक्स उसने पहले से ही उठा लिया था किंतु सीट के पीछे टंगी जैकेट, वह सीट पर ही भूल गयी। यह तो अच्छा था, उसे तुरंत जैकेट की याद आ गयी। वह फुर्ती से पीछे मुड़ी और जैकेट ले आई।
     बेबी को ले कर, वह फिर अपराध बोध से भर उठी। शाम को ऑफिस से जब वह डे केयर पहुँचती है, उसे देख कर बेबी जोर - जोर से पैर पटकने लगता है। उसकी आँखों की चमक बढ़ जाती है। अब तो वह उसे देखते ही बाँहें फैला कर उं - उं करने लगा है। घर आने पर वह एक मिनट के लिए जया को छोड़ना नहीं चाहता। उसे क्रिब में लिटा कर वह जब रसोई में जाने लगती है, तो गरदन टेढ़ी कर नज़रों से उसका पीछा करने लगता है। इंडिया में होता तो अब तक घुटनों के बल सरकने लगा होता। यहाँ कालीन पर सरकना बहुत आसान भी नहीं है। सास हर बार पूछती हैं - ''अभी घुटनों के बल चलता है कि नहीं...'' और सच्चाई जानने पर अपने बच्चों की तारीफ  करने लगती हैं । 'विकास तो पाँच महीने में ही घुटनों चलने लगा था। नौ महीने में वह चलने भी लगा था।'' उसे सास की बातों से बड़ी चिढ़ होती है, किंतु जवाब देना ठीक नहीं लगता। वह क्यों ऐसा मानती हैं कि वह कोई काम अच्छी तरह कर ही नहीं सकती। उसके और विकास के बीच काम का अघोषित बँटवारा जरूरतों ने कर दिया। शुरू - शुरू में समय और जरूरत के हिसाब से पति - पत्नी के बीच परेशानी जरूर आई, पर धीरे - धीरे एक रुटीन बन गया। चाहे यह बहुत अच्छा न हो, पर इसका विकल्प नहीं मिलता। सुबह - सुबह जया जब ऑफिस के लिए निकलती है, बेबी सो रहा होता है। वह उसे सोते - सोते एक बोतल दूध पिला देती है। फिर अपना और विकास का टिफिन लगाती है। अपना टिफिन ले कर वह ऑफिस के लिए निकल पड़ती है। पीछे से विकास बेबी को डे केयर में छोड़ते हैं और अपने ऑफिस जाते हैं। विकास देर से ऑफिस जाते हैं और देर से घर लौटते हैं। जया पहले जाती है,पहले लौटती है। लौटती हुई वह डे केयर से बेबी को लेती हुई घर जाती है। वह घर पहुँच कर थोड़ा बहुत शाम के खाने की तैयारी करती है, तब तक विकास आ जाते हैं। उनके हवाले बेबी को कर,वह डिनर तैयार करने रसोई में चल देती है। विकास के पास वह रहना नहीं चाहता। उसका दिल बहुत दुखता है जब विकास जबरन उसे उससे छीनते हैं, यह कहते हुए कि, 'तुम जाओ मैं सँभाल लूँगा '' और फिर उसके ऊपर चिल्लाने लगते हैं। उसके दिल में आता है बेबी उनके पास नहीं रुक रहा है, तो वही रसोई का काम देख लें, लेकिन नहीं। वह तो उल्टा उसी पर झल्लाने लगते हैं बाहर से खाना नहीं मंगाओगी तो झेलो। ''विकास कई बार फ्रोज़ेन परांठे खाकर सोने का आग्रह करते हैं, लेकिन जया नहीं मानती। जब किसी काम में कटौती नहीं होती, तो खाना तो सबसे मुख्य काम है। उसी में कटौती क्यों हो? कभी ऐसा करना पड़ जाए, वह अलग बात है। सुबह का नाश्ता और दोपहर का लंच भी वह रात में ही तैयार कर लेती है। खाना निबटा कर वह बेबी की मालिश करती है, फिर उसे नहला कर सुला देती है। सारा काम निबटाते - निबटाते पीठ का अच्छी तरह बैन्ड बज जाता है।
     मेट्रो से उतर कर बीस मिनट का सफर जया अपनी गाड़ी से तय करती है। हड़बड़ी में उसे याद ही नहीं आ रहा था, उसने किस मंजिल पर गाड़ी पार्क की थी। आज सुबह घर से निकलने में उसे थोड़ी देर हो गयी थी और पार्किंग में मुश्किल से जगह मिली थी। तभी उसके दिमाग में गाड़ी की जगह एक कौंध की तरह चमक गयी। पार्किंग से गाड़ी निकाल कर जया ने रफ्तार तेज करनी चाही कि उसकी नजर सामने बोर्ड पर अंकित गति सीमा पर पड़ी और उसने स्पीड बढ़ाने का इरादा बदल दिया। गाड़ी की रफ्तार के बरक्स उसका मस्तिष्क कहीं तीव्र गति से चल रहा था। उसके दिमाग में वह विजिट प्रत्यक्ष हो गया जब बेबी का रुटीन चेक अप कराने वह डॉक्टर के पास गयी थी। विकास के पास बेबी को छोड़ कर वह गाड़ी से कोई सामान लेने बाहर आई थी कि पीछे से डॉक्टर आ गया। विकास बेबी को डॉक्टर की टेबुल पर लिटा कर, नीचे बास्केट से उसका पैसिफायर निकालने के लिए झुके ही थे, कि बेबी, जो इससे पहले कभी नहीं पलटा था, पलट गया और नीचे गिर गया। जब वह कमरे में लौटी, बेबी जोर - जोर से रो रहा था। विकास उसे कन्धे से लगाए, इघर - उघर घुमा कर बहला रहे थे, लेकिन बेबी चुप होने का नाम नहीं ले रहा था। जया ने उसे तुरंत अपनी गोद में ले लिया और थोड़ी देर में बेबी चुप हो गया। परीक्षण के बाद बेबी को डे केयर छोड़ कर जया जब अपने ऑफिस पहुँची, तो थोड़ी ही देर में रिया का फोन आ गया ''बेबी न जाने क्यों बहुत रो रहा है।'' यदि रिया नहीं सँभाल पा रही है तो जरूर कोई बात है। सोचकर जया ने डॉक्टर से इमरजेन्सी अप्वाइंटमेंट ले लिया। मालूम हुआ टेबुल से गिरने के कारण बेबी के कूल्हे के ऊपरी हिस्से में एक स्थान पर हेयरक्रैक आ गया था। वहाँ प्लास्टर नहीं लग सकता था, अत: डॉक्टर ने कच्ची पट्टी बाँध दी और दो हफ्ते नहलाने से मना कर दिया। वे दो हफ्ते किसी दु:स्वप्न से कम नहीं थे। जरा भी उस जगह पर हाथ लग जाता तो बेबी बिलबिला जाता।
     वह कैसे उसके डायपर बदलती, कैसे स्पंजबाथ देती, कैसे कपड़े बदलती वही जानती है। उन दिनों वह विकास के पास भी न जाता। पूरे सत्राह दिन की लीव विदाउट पे लेकर वह घर रही। जया कई बार सोचती है नौकरी छोड़ कर पहले बेबी को अच्छी तरह पाल ले, तब नौकरी - औकरी देखेगी, किंतु जॉब मार्केट में हर दिन बढ़ती प्रतिस्पर्धा देख कर, कौन कह सकता है कि उसे फिर अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी। ऊपर से अब खर्च इतना बढ़ गया है, कि अकेले विकास की सैलरी से क्या होगा? गाड़ी पार्किंग में लगा कर जया ने बैग खोल कर दिन के समय पम्प किया हुआ दूध देखा। टेंशन में दूध भी कम बनता है। सास फोन पर हिदायत देती रहती हैं - 'दूध ख़ूब पिया करो। दूध अधिक बनेगा।'' लेकिन जया उनसे कह नहीं पाती कि सिर्फ खाने - पीने से क्या होता है? मानसिक शांति भी तो होनी चाहिए। यह बात तो उनसे वह कह भी नहीं सकती। सीधे कहेंगी-'इंडिया आ जाओ।'' अब उनसे कौन कहे वहाँ और यहाँ के जीवन स्तर में कितना अंतर है। वह यहाँ फ्री हो कर जीन्स पहनती है, खुद गाड़ी ड्राइव करती है, विकास के साथ मनमुताबिक जगहों पर घूमती है, वहाँ क्या यह सब संभव होगा? वहाँ तो इंडिया के किसी कोने में रहो, सास चाहेंगी हम हर महीने उनके पास जाएँ। मैं आज्ञाकारी बहू की तरह उनकी हर बात मानूँ और अपने रिश्तेदारों में वह अपनी शान दिखाएँ।
     सास और माँ दोनों उसके लिए परेशान रहती हैं। अभी थोड़े दिन पहले माँ वेबकैम पर उसे देख कर दुखी हो रही थीं, ''कितना मुरझाया चेहरा लग रहा है तुम्हारा? अपना ध्यान एक दम नहीं रखती हो। और बेबी को अपना दूध नहीं पिलाती हो क्या? घर में रहती हो तब तो उसे अपना दूध पिलाया करो।'' उसे बोतल से दूध पिलाते देख कर उन्होंने सोचा होगा यह ऊपर का दूध है।
- ''माँ यह मेरा ही दूध है। अपने ऑफिस में पंप किया था।''
- ''अब तक खराब नहीं हो गया होगा, और निकाला कैसे?''
- ''ऑफिस में फीडिंग मदर्स के लिए लैक्टेशन रूम में मशीन है। दूध निकाल कर आइसबैग में रख देती हूँ। मैंने घर पर भी मशीन रखी हुई है। बेबी की आदत इतनी बिगड़ गयी है, कि बोतल से दूध पीना इसे आसान लगने लगा है। मेहनत करना ही नहीं चाहता।''
- ''ठंडा दूध पी कर उसे गैस नहीं बनेगी ?''
- ''ठंडा कहाँ रहता है माँ? तेज गर्म पानी से भरे कटोरे में बॉटल रख देने से दूध का तापमान सही हो जाता है। ''
- ''गजब नयी - नयी बातें सुनाती हो तुम भी!''
- ''माँ अभी तो और न जाने क्या - क्या नया सुनोगी! डे केयर सुना था ?''
- ''नहीं भाई, विदेशों के ये सब चोंचले हैं।''
- ''विदेशों के नहीं, अब अपने यहाँ भी बड़े शहरो में डे केयर हैं। 'बच्चा घर' कहो तो अजूबा नहीं लगेगा।'' जया ने हँसते हुए माँ को बताया।
     ख्यालो में डूबी जया ने धड़कते दिल से घर के दरवाजे की घंटी बजाई। बेबी न जाने कैसा होगा!

77, प्रकाश विहार
धर्मपुर, देहरादून

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें