डॉ.पीसीलाल यादव

बिरो पाही कइसे ओहा, जेन बंधाय हे खूँटा म।
अंजोरी बर भटकट मूरख, सुरुज धरे मूठा म।।
गुलामी के गेरवा गर म,
सकीरन सोच विचार सेती।
अवसर जिनगी ले निकलत,
जइसे हाथ ले कुधरी रेती।।
छइंहा कइसे मिलही बतावव, कटे रुख के ठूँठा म।
बिरो कइसे पाही ओहा, जेन बंधाय हे खूँटा म।।
सभिमान ल सऊॅहे बेच के,
हाथ उठा करे जी हुजुरी।
तन - मन दूनो हे गहना,
सइघो लास जीये मजबूरी।
आजादी कइसे पाही ओहा, जे जीयत पर के जुठा म।
बिरो कइसे पाही ओहा, जेन बंधाय हे खूँटा म।।
लोकतंत्र के भाव भर हे,
लोक तो इहॉ बरबाद हे।
तारा टोरय गुलामी के,
मनखे तभे आजाद हे।
लोक के तन चिथरा - गोंदरा, तंत्र लदाये गहना गूँठा म।
बिरो कइसे पाही ओहा, जेन बंधाय हे खूँटा म।।
पता
साहित्य कुटीर
गंडई
जिला - राजनांदगांव

बिरो पाही कइसे ओहा, जेन बंधाय हे खूँटा म।
अंजोरी बर भटकट मूरख, सुरुज धरे मूठा म।।
गुलामी के गेरवा गर म,
सकीरन सोच विचार सेती।
अवसर जिनगी ले निकलत,
जइसे हाथ ले कुधरी रेती।।
छइंहा कइसे मिलही बतावव, कटे रुख के ठूँठा म।
बिरो कइसे पाही ओहा, जेन बंधाय हे खूँटा म।।
सभिमान ल सऊॅहे बेच के,
हाथ उठा करे जी हुजुरी।
तन - मन दूनो हे गहना,
सइघो लास जीये मजबूरी।
आजादी कइसे पाही ओहा, जे जीयत पर के जुठा म।
बिरो कइसे पाही ओहा, जेन बंधाय हे खूँटा म।।
लोकतंत्र के भाव भर हे,
लोक तो इहॉ बरबाद हे।
तारा टोरय गुलामी के,
मनखे तभे आजाद हे।
लोक के तन चिथरा - गोंदरा, तंत्र लदाये गहना गूँठा म।
बिरो कइसे पाही ओहा, जेन बंधाय हे खूँटा म।।
पता
साहित्य कुटीर
गंडई
जिला - राजनांदगांव
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