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सपना मांगलिक |
( 1 )
समेट रहा है हर कोई
दे रहा है तड़ातड़ हाथों की थाप
उसके नाजुक बदन पर
कोई कुल्लड़ बनाना चाहता है
तो कोई गमला या सुराही
कोई खिलौने वाला सिपाही
मगर उसे तो भाता है
रिमझिम बूंदों संग बहना
खुली हवा में सांस लेना
और उसी के संग उड़ना
उड़ते - उड़ते लपकना कुछ बीज
उन्हीं से सीखना जीने की तमीज
मगर उसे बनाया जा रहा है
एक बनावटी सामान
जो बिकेगा एक दिन
किसी ऊंची सी दुकान
दिलाएगा पैसा, रुतवा,सम्मान
वो सहम रहा है,टूट रहा है
उसके नैसर्गिक विकास में
आ रही है अड़चन
क्योंकि उसका होते हुए भी
नहीं हो पा रहा है उसका
कच्ची माटी सा बचपन।
( 2 )
कभी ओस तो कभी बन बादल
उड़ता फिरे बिन पंख ही पागल महल बनाये कैसे . कैसे
गिरें जो पल में पत्ते जैसे
दहकाये कभी शक की ज्वाला
कभी पिलाता प्रेम की हाला
कभी बंधन एकभी यह लगे चन्दन
मन ये मेरा एपागल सा मन।
एफ. 659, कमला नगर ,आगरा 282005
मो.न.09548509508
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