विवेक चतुर्वेदी
आज फिर अजनबी सायों की ज़रुरत है तुम्हें
वक्त पे अपने परायों की ज़रुरत है तुम्हें
हम तो सू$फी है कहीं रात बिता लेंगे पर,
तुम मुसा$िफर हो सरायों की ज़रुरत है तुम्हें
हि$फाज़त ढंग से करते अगर तुम क्यारियों की
तो ऐसी दुर्दशा होती नहीं फुलवारियों की
हरे पेड़ों को जंगल में भी अब खतरे बहुत है
दरख्तों से पुरानी दुश्मनी है आरियों की
दिल से फूलों की मोहब्बत बिसार आयी है
$िखजाँ को साथ में लेकर बहार आयी है
मेरी बर्बादियों को देखने की हसरत में
शर्म आँखों से ये दुनिया उतार आयी है
दर्द की रोशनी देने लगी एहसास की लौ
जला न दे कहीं पानी के लिए प्यास की लौ
अटूट होता है रिश्ता दीए से बाती का
जन्म लेती है इसी रिश्ते से विश्वास की लौ
हो जाओ बलिदान देश में कुर्बानी इतिहास रचेगी
परिवर्तन की हर मशाल में चिन्गारी से आग लगेगी
तन- मन अर्पित, प्राण समर्पित कर देना मिट्टी की खातिर
यही शहादत भारत माँ के स्वाभिमान की लाज रखेगी
वक्त पे अपने परायों की ज़रुरत है तुम्हें
हम तो सू$फी है कहीं रात बिता लेंगे पर,
तुम मुसा$िफर हो सरायों की ज़रुरत है तुम्हें
हि$फाज़त ढंग से करते अगर तुम क्यारियों की
तो ऐसी दुर्दशा होती नहीं फुलवारियों की
हरे पेड़ों को जंगल में भी अब खतरे बहुत है
दरख्तों से पुरानी दुश्मनी है आरियों की
दिल से फूलों की मोहब्बत बिसार आयी है
$िखजाँ को साथ में लेकर बहार आयी है
मेरी बर्बादियों को देखने की हसरत में
शर्म आँखों से ये दुनिया उतार आयी है
दर्द की रोशनी देने लगी एहसास की लौ
जला न दे कहीं पानी के लिए प्यास की लौ
अटूट होता है रिश्ता दीए से बाती का
जन्म लेती है इसी रिश्ते से विश्वास की लौ
हो जाओ बलिदान देश में कुर्बानी इतिहास रचेगी
परिवर्तन की हर मशाल में चिन्गारी से आग लगेगी
तन- मन अर्पित, प्राण समर्पित कर देना मिट्टी की खातिर
यही शहादत भारत माँ के स्वाभिमान की लाज रखेगी
म.नं. 164/10-2,महल्ला बाजार कला,
उझानी (बदायूँ)उ.प्र. 243 639,मोबा.09997833538
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