मंगत रवीन्द्र
साहित्यकार शब्दों का एक शिल्पकार होता है। वह शब्दु श्रुति एवं छन्द के माध्यम से भावों का सुन्दर भूषण तैयार करता है। जिसकी आभा पाठकों को लालायित करती है। भावों का संकलन महती गुलदस्ता है तो उसमें रोपे गये छन्दों का पौधा, रस रुपी सुमन से सह साहित्यकार द्वारा रसास्वादन किया जाता है। विचार मंथन, योग मंथन, दधिमंथन, समुद्रमंथन की श्रेणी में मौन मंथन भी है। किसी अभिकेन्द्रित बिन्दु पर मौन होकर अन्दर ही अन्दर चिंतन ही मौन मंथन है। यह आलोचना और भटकाव से दूर शांति, शोध और परमसुख की आंतरिक प्रक्रिया है। चाहे आसपास शोरगुल हो, बाहर तूफान चले, सड़कों पर गाड़ियों की आवाजाही हो, गरज के साथ झमाझम बारिश हो,वृक्षों की झुरमुट में पक्षियों की शोरभरी चहचहाट हो परन्तु एक साधक का ङ्क्षचतन मौन मंथन ही होगा। भाई श्री टीकेश्वर जी सिन्हा ने इसी बिन्दु पर अपनी कविताओं का तह जमाया है। खोलने पर विविध विषय के पर्त खुलते हैं।
चाहे सामाजिक समस्या हो, राजनीति,पर्यावरण या प्रदूषण जैसी समस्या ... सभी विषयों पर अन्दर ही अन्दर चिंतन कर विषाद से उबरने का निदान की खोज में एक योगाचार्य की भांति निरत होने को प्रेरित करता है। चांदनी रात का प्रतिनिधित्व, चन्द्रमा करता है और अपने साथ अरबों चमकते तारों को लेकर चलता है। कहीं - कहीं रात का अर्धतम, निशा स्वभाव को अभिव्यक्त करता है। वायु की शीतलता, नियति का शाश्वत शांत स्वभाव एवं स्व क्रियाएँ होती रहती है। नीरव वातावरण में जगत का कुछ हिस्सा निंद्रा में विश्रांति पाता है तो पानी का भाव, जीवन की परिभाषा एवं दीया द्वारा विपरीत व्यवहारों का उद्धरण निम्न पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्ति दी गई है :-
घड़े का पानी बचाने के चक्कर में अपना पानी छलका डालेगी
बस सांसों पे महक गब्दीवाला, बिलते चमन का उल्लास है जिन्दगी।
मैं भी तो जलता हूं पर मुझे जलना नहीं आता
अफसोस तिमिर संग - मुझे रहना नहीं आता ....।
घी और तेल मिलकर जलते हैं परन्तु दीपक का यश या नाम होता है। ऐसा इसलिए कि छोटा सा दीपक दोनों को सहारा देता है। यह जगत की प्रवृति है। इस तरह गब्दीवाला का मौन चिंतन रुपी सरिता विषय प्रांत के सभी तटों को स्पर्श करती हुई अनवरत प्रवाह में निरत है। उर्मियों की रजत चमक के साथ अठखेलियाँ खेलती श्री टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला की लेखनी पूर्णत: सफल है। रस, अलंकार छन्दों के सौन्दर्य अभिवृद्धि में सहायक है। नि:संदेह साहित्य जगत में श्री सिन्हा जी की पहचान है। नील गगन, धरा मगन, खेतों में कंचन धान की बाली है, तब दीवाली है ऐसी पंक्तियों के साथ श्री सिन्हा जी की सफलता का सुनहरा दीपक रहेगा ....।
चाहे सामाजिक समस्या हो, राजनीति,पर्यावरण या प्रदूषण जैसी समस्या ... सभी विषयों पर अन्दर ही अन्दर चिंतन कर विषाद से उबरने का निदान की खोज में एक योगाचार्य की भांति निरत होने को प्रेरित करता है। चांदनी रात का प्रतिनिधित्व, चन्द्रमा करता है और अपने साथ अरबों चमकते तारों को लेकर चलता है। कहीं - कहीं रात का अर्धतम, निशा स्वभाव को अभिव्यक्त करता है। वायु की शीतलता, नियति का शाश्वत शांत स्वभाव एवं स्व क्रियाएँ होती रहती है। नीरव वातावरण में जगत का कुछ हिस्सा निंद्रा में विश्रांति पाता है तो पानी का भाव, जीवन की परिभाषा एवं दीया द्वारा विपरीत व्यवहारों का उद्धरण निम्न पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्ति दी गई है :-
घड़े का पानी बचाने के चक्कर में अपना पानी छलका डालेगी
बस सांसों पे महक गब्दीवाला, बिलते चमन का उल्लास है जिन्दगी।
मैं भी तो जलता हूं पर मुझे जलना नहीं आता
अफसोस तिमिर संग - मुझे रहना नहीं आता ....।
घी और तेल मिलकर जलते हैं परन्तु दीपक का यश या नाम होता है। ऐसा इसलिए कि छोटा सा दीपक दोनों को सहारा देता है। यह जगत की प्रवृति है। इस तरह गब्दीवाला का मौन चिंतन रुपी सरिता विषय प्रांत के सभी तटों को स्पर्श करती हुई अनवरत प्रवाह में निरत है। उर्मियों की रजत चमक के साथ अठखेलियाँ खेलती श्री टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला की लेखनी पूर्णत: सफल है। रस, अलंकार छन्दों के सौन्दर्य अभिवृद्धि में सहायक है। नि:संदेह साहित्य जगत में श्री सिन्हा जी की पहचान है। नील गगन, धरा मगन, खेतों में कंचन धान की बाली है, तब दीवाली है ऐसी पंक्तियों के साथ श्री सिन्हा जी की सफलता का सुनहरा दीपक रहेगा ....।
मु. पो. - कापन (अकलतरा),
जिला - जांजगीर - चाम्पा (छ.ग.), 495552
मोबा: 09827880682
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