ललित साहू '' जख्मी ''
साठ बछर के धनीराम जिनगी भर किसानी करिस। अब सरीर अथक होय ल धरत हे। ओहा अपन लईका ल किसानी के बुता सीखो के मरतेंव सोचथे अऊ लइका ल कथे - बेटा हमर बखरी के जम्मों कोचई अऊ जिमी कांदा ल खनवा के बखरी ल बने जोतवा देबे अऊ फेर नवा फसल के बोवई कर लेबे। कांदा जामे बड़ दिन हो गे हवय। अइसन म जमीन बिगड़ जही। ओकर बेटा रेवा हा हव कही के चल देथे फेर ओहा बखरी के जिमी कांदा भर ल थोकुन खन के लानथे अऊ अपन ददा ल अतकी अकन भर होइस कही देथे। ओकर ददा हा अपन बीमारी अऊ लईका ऊपर भरोसा के सेतन बखरी ल देखे ल घलो नई जाय अऊ ओकर गोठ ल पतिया लेथे। रेवा के मन हा किसानी म नई लगे फेर ओहा कोचई के पान ल काट - काट के बेचे के टकराहा हो जाय रथे। ओकर अइसन करे ले कोचई अऊ जिमी कांदा हा फेर ऊपज जावय, फेर पहिली ले फसल कम होवय अऊ फसल हा पहिली असन चोखा घलो नई राहय। ओहा कोचई पान अऊ जिमी कांदा ल थोक - थोक खन के बेचे अऊ अपन नसा - जुंआ पहिरई ओढ़ई असन म खरचा ल चलावय।
अइसने करके ओहा तीन बछर पहा देथे। एको दारी ओहा जिमी कांदा अऊ कोचई ल पूरा नई खनवाय। ताहन एक झन बनिहार ल रेगहा में अपन बखरी ल कमाय बर दे देथे। ओ बनिहार घलो खेत ल बने कोड़ा पानी नई देवय अऊ जहरीला दवई छीत के फसल लेवय। भुईयां के काहीं होवय, फेर फसल अऊ कमई बने होवत रथे। फसल ले आय पइसा ह ओ बनिहार के होवय अऊ जइसन सौदा होय रथे वइसन थोक - थोक पइसा ओहा रेवा ल देवत जथे। रेवा घलो फोकट के पइसा समझ के उड़ावत रहिथे। फेर भुईयां के सिरतोन मालिक ल कुछु नई मिलय। भुईयां पथराय ल धर लेथे अब ऊपज घलो कम होवय फेर न रेगहा वाला ल चिंता रहाय न ददा के कमई ल खाने वाला रेवा ल। इही बीच म रेवा अऊ बनिहार खेत के बीजहा, खातू - कचरा अऊ पंप - पानी बर पइसा के जरूरत हवय कही के बहाना करके खेत ल गहना धर दे रहिथे।
अइसन आठ बछर बीत जाथे। धनीराम के सकेले पूंजी इलाज - पानी म सिरा जथे अऊ अब ओहा थोक - थोक रेंगे लागथे। त एक दिन धनीराम अपन खेत ल जाके देखथे, ओकर आंखी ले तरतर - तरतर आंसू बोहाय लागथे। धनीराम जुन्ना किसान रथे त बात ल समझ जथे अऊ भुईयां ल बंजर होवत देख के ओकर अंतस ह कलप जथे। ओहा जान डारथे कि मोर ले बहुत बड़ गलती होय हवय। फेर अपन लईका ल कुछु नई कही सके। ओकर लईका ह घलो उपराहा - उपराहा पइसा धरे के टकराहा हो जाय रथे अऊ बिगड़ जाय रथे।
एक दिन ओहा मुड़ धर के अपन संगवारी सियान मन करा अपन पीरा ल गोठियाथे। त सबो सियान मन बड़ गुनथे अऊ कथे तोर बखरी ल जे बोवत हे तिही ल बोवन दे फेर ऊकर कमई ल तय कर देए अऊ उपराहा कमई ल ते मांग ले करबे। तोर लईका ल घलो कहि दे कि उपराहा पइसा ल मोर करा जमा करना हे। तहंू ल तो घर चलाय बर अऊ बेवस्था बनाय बर पइसा कउड़ी लागथे अऊ बिपत बेरा बर घलो तो कुछु बचाय ल लागही! त धनीराम कहिस कि ओहा तो जम्मो फसल ल बेच के पइसा ल राख लिही अऊ मोला कम बताही त कईसे करहूं। त ओमन फेर कथे ओहा फसल ल कहां बेचही तेनो ल तय कर दे। अइसन में ओहा कतका के फसल बेचिस तेला तो जान डरबे, अऊ तोर करा पइसा आही तेमे तेहा भुईयां ल फेर सिरजा डरबे।
धनीराम ल सलाह बने लागथे ओहा वइसनेच करथे। फेर रेगहा लेवईया बनिहार अऊ ओकर बेटा रेवा चतुरा निकरथे। ओमन हा तय ले ऊपराहा फसल ल लुका के राखथे अऊ दूसर जगा बेच घलो देथे अऊ पइसा ल आपस म बांट डरथें। फेर अब ओ बनिहार ह रेवा ल कई घांव ताव देखाय ल धरथे काबर कि अब ओहा ओकर गलत बूता के संगवारी बन जाय रइथे। अब अइसन में धनीराम के हाथ म अतका पइसा नई आय कि ओहा भुईयां ल फेर संवार सके। अब धनीराम हा बनिहार ल खेदथे अऊ बखरी ल अपन देख - रेख म राखहूं कहिथे। अपन लईका के घर म लुकाय पइसा ल खोज - खोज के निकारथे अऊ भुईयां ल कई घांव जोत के कई बछर के जामे जर ल खन - खन के हेरथे। जर हा भुईयां म नंगत भीतर ले बगर जाय रइथे ते पाय के बड़ मिहनत ले तरी के जावत ले खने ल परथे। मेड़ पार मन ल घलो उझार के नवा बनाथे।
अब धनीराम हा सोंचथे कि जिमी कांदा अऊ कोचई बेचे बर तो येमन हा जगा भिड़ा के राखे हवय त मोला फसल ल बदल देना चाही अऊ खेत म नवा किसम के फसल के बोवई करथे अऊ लइका ल बईठार के कथे - देख बेटा, तोला अपन जिनगी म आघू बढना हे। अपन भुईयां ल जतन के राखना हे, अऊ अपन जमीन जायदाद ल दूसर करा जाय ले बचाना हवय त फोंक - फोंक ल काटे म बात नई बने। हर बछर खेत के फसल ल काट के खेत ल जोतत रहना घलो जरुरी होथे। ते मोर बात ल मान के अइसन करत रइते त भुईयां घलो बने रहितिस अऊ बाहिरी मनखे ह घलो तोर ऊपर ताव नई देखाय रहितिस।
हमर देस के दसा घलो अइसनेच हो गे रिहिस बाहिर के मनखे ह हमरे पइसा म हमी मन ल आंखी देखावत रिहिस हे अऊ हमन ह कभू थोक बहुत जतन करके भ्रष्टाचार, करिया पइसा ल रोके के उदीम करे घलो हन त ओमन ह जिमी कांदा अऊ कोचई असन फेर ऊपजावत रिहिस। हमरो भीतर के मनखे मन हा मतलबी हो गे रिहिस ओला अपन भुईयां अऊ देस के बिगड़त दसा हा लालच के मारे दिखत नई रिहिस। अब भारत म हजार - पांच सौ के नोट ल बंद करे गे हवय। भ्रष्टाचार अऊ करिया पइसा ल उखाने बर येहा बड़ निक उदीम आय। अइसन घलो नई हे कि कभू बेवस्था सुधारे के जतन नई करे गे हवय फेर रुपिया बदल के भ्रष्टाचार मेटाय के अतका बड़ जतन, हमर जानत म अऊ नई होय रिहिस। सिरतोन बात तो आय फोंक - फोंक ल काटे म बात नई बने रतिस।
अइसने करके ओहा तीन बछर पहा देथे। एको दारी ओहा जिमी कांदा अऊ कोचई ल पूरा नई खनवाय। ताहन एक झन बनिहार ल रेगहा में अपन बखरी ल कमाय बर दे देथे। ओ बनिहार घलो खेत ल बने कोड़ा पानी नई देवय अऊ जहरीला दवई छीत के फसल लेवय। भुईयां के काहीं होवय, फेर फसल अऊ कमई बने होवत रथे। फसल ले आय पइसा ह ओ बनिहार के होवय अऊ जइसन सौदा होय रथे वइसन थोक - थोक पइसा ओहा रेवा ल देवत जथे। रेवा घलो फोकट के पइसा समझ के उड़ावत रहिथे। फेर भुईयां के सिरतोन मालिक ल कुछु नई मिलय। भुईयां पथराय ल धर लेथे अब ऊपज घलो कम होवय फेर न रेगहा वाला ल चिंता रहाय न ददा के कमई ल खाने वाला रेवा ल। इही बीच म रेवा अऊ बनिहार खेत के बीजहा, खातू - कचरा अऊ पंप - पानी बर पइसा के जरूरत हवय कही के बहाना करके खेत ल गहना धर दे रहिथे।
अइसन आठ बछर बीत जाथे। धनीराम के सकेले पूंजी इलाज - पानी म सिरा जथे अऊ अब ओहा थोक - थोक रेंगे लागथे। त एक दिन धनीराम अपन खेत ल जाके देखथे, ओकर आंखी ले तरतर - तरतर आंसू बोहाय लागथे। धनीराम जुन्ना किसान रथे त बात ल समझ जथे अऊ भुईयां ल बंजर होवत देख के ओकर अंतस ह कलप जथे। ओहा जान डारथे कि मोर ले बहुत बड़ गलती होय हवय। फेर अपन लईका ल कुछु नई कही सके। ओकर लईका ह घलो उपराहा - उपराहा पइसा धरे के टकराहा हो जाय रथे अऊ बिगड़ जाय रथे।
एक दिन ओहा मुड़ धर के अपन संगवारी सियान मन करा अपन पीरा ल गोठियाथे। त सबो सियान मन बड़ गुनथे अऊ कथे तोर बखरी ल जे बोवत हे तिही ल बोवन दे फेर ऊकर कमई ल तय कर देए अऊ उपराहा कमई ल ते मांग ले करबे। तोर लईका ल घलो कहि दे कि उपराहा पइसा ल मोर करा जमा करना हे। तहंू ल तो घर चलाय बर अऊ बेवस्था बनाय बर पइसा कउड़ी लागथे अऊ बिपत बेरा बर घलो तो कुछु बचाय ल लागही! त धनीराम कहिस कि ओहा तो जम्मो फसल ल बेच के पइसा ल राख लिही अऊ मोला कम बताही त कईसे करहूं। त ओमन फेर कथे ओहा फसल ल कहां बेचही तेनो ल तय कर दे। अइसन में ओहा कतका के फसल बेचिस तेला तो जान डरबे, अऊ तोर करा पइसा आही तेमे तेहा भुईयां ल फेर सिरजा डरबे।
धनीराम ल सलाह बने लागथे ओहा वइसनेच करथे। फेर रेगहा लेवईया बनिहार अऊ ओकर बेटा रेवा चतुरा निकरथे। ओमन हा तय ले ऊपराहा फसल ल लुका के राखथे अऊ दूसर जगा बेच घलो देथे अऊ पइसा ल आपस म बांट डरथें। फेर अब ओ बनिहार ह रेवा ल कई घांव ताव देखाय ल धरथे काबर कि अब ओहा ओकर गलत बूता के संगवारी बन जाय रइथे। अब अइसन में धनीराम के हाथ म अतका पइसा नई आय कि ओहा भुईयां ल फेर संवार सके। अब धनीराम हा बनिहार ल खेदथे अऊ बखरी ल अपन देख - रेख म राखहूं कहिथे। अपन लईका के घर म लुकाय पइसा ल खोज - खोज के निकारथे अऊ भुईयां ल कई घांव जोत के कई बछर के जामे जर ल खन - खन के हेरथे। जर हा भुईयां म नंगत भीतर ले बगर जाय रइथे ते पाय के बड़ मिहनत ले तरी के जावत ले खने ल परथे। मेड़ पार मन ल घलो उझार के नवा बनाथे।
अब धनीराम हा सोंचथे कि जिमी कांदा अऊ कोचई बेचे बर तो येमन हा जगा भिड़ा के राखे हवय त मोला फसल ल बदल देना चाही अऊ खेत म नवा किसम के फसल के बोवई करथे अऊ लइका ल बईठार के कथे - देख बेटा, तोला अपन जिनगी म आघू बढना हे। अपन भुईयां ल जतन के राखना हे, अऊ अपन जमीन जायदाद ल दूसर करा जाय ले बचाना हवय त फोंक - फोंक ल काटे म बात नई बने। हर बछर खेत के फसल ल काट के खेत ल जोतत रहना घलो जरुरी होथे। ते मोर बात ल मान के अइसन करत रइते त भुईयां घलो बने रहितिस अऊ बाहिरी मनखे ह घलो तोर ऊपर ताव नई देखाय रहितिस।
हमर देस के दसा घलो अइसनेच हो गे रिहिस बाहिर के मनखे ह हमरे पइसा म हमी मन ल आंखी देखावत रिहिस हे अऊ हमन ह कभू थोक बहुत जतन करके भ्रष्टाचार, करिया पइसा ल रोके के उदीम करे घलो हन त ओमन ह जिमी कांदा अऊ कोचई असन फेर ऊपजावत रिहिस। हमरो भीतर के मनखे मन हा मतलबी हो गे रिहिस ओला अपन भुईयां अऊ देस के बिगड़त दसा हा लालच के मारे दिखत नई रिहिस। अब भारत म हजार - पांच सौ के नोट ल बंद करे गे हवय। भ्रष्टाचार अऊ करिया पइसा ल उखाने बर येहा बड़ निक उदीम आय। अइसन घलो नई हे कि कभू बेवस्था सुधारे के जतन नई करे गे हवय फेर रुपिया बदल के भ्रष्टाचार मेटाय के अतका बड़ जतन, हमर जानत म अऊ नई होय रिहिस। सिरतोन बात तो आय फोंक - फोंक ल काटे म बात नई बने रतिस।
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