ब्रजभूषण चतुर्वेदी '' बजेश ''
डगमग- डगमग डोले नैया, पार लगाये कौन
यह अंधों की नगरी भैया, राह दिखाये कौन
कोई यहाँ काम में अंधा, कोई मद में फूला
कोई हुआ क्रोध में पागल, अपने पथ को भूला
मची हर तरफ ता - ता भैया, हाथ बढ़ाये कौन
यह अंधों की नगरी भैया, राह दिखाये कौन
सूख गई भावों की सरिता, अपनापन हे खोया
खुदगर्जी का बीज हवा ने, जाने कैसा बोया
जीवन लगता भूल भूलैया,दीप जलाये कौन
यह अंधों की नगरी भैया, राह दिखाये कौन
सबकी अपनी-अपनी ढपली, अपने-अपने राग
चारों तरफ खड़े फुफकारें, शंकाओं के नाग
अफरा - तफरी का मौसम है, धीर बंधाये कौन
यह अंधों की नगरी भैया, राह दिखाये कौन
श्री रघुनाथ मंदिर के पास,
धाकड़पारा, बारां - 325 205
डगमग- डगमग डोले नैया, पार लगाये कौन
यह अंधों की नगरी भैया, राह दिखाये कौन
कोई यहाँ काम में अंधा, कोई मद में फूला
कोई हुआ क्रोध में पागल, अपने पथ को भूला
मची हर तरफ ता - ता भैया, हाथ बढ़ाये कौन
यह अंधों की नगरी भैया, राह दिखाये कौन
सूख गई भावों की सरिता, अपनापन हे खोया
खुदगर्जी का बीज हवा ने, जाने कैसा बोया
जीवन लगता भूल भूलैया,दीप जलाये कौन
यह अंधों की नगरी भैया, राह दिखाये कौन
सबकी अपनी-अपनी ढपली, अपने-अपने राग
चारों तरफ खड़े फुफकारें, शंकाओं के नाग
अफरा - तफरी का मौसम है, धीर बंधाये कौन
यह अंधों की नगरी भैया, राह दिखाये कौन
श्री रघुनाथ मंदिर के पास,
धाकड़पारा, बारां - 325 205
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