1
अलग रहना उसे मंजूर क्यों।
हक़ीक़त मुझसे कोसों दूर क्यों है।।
ये मुख़्तारे जहां से कोई पूछे,
कि इंसां इस क़दर मजबूर क्यों है।
हज़ारों इन्क़लाब आए हैं लेकिन,
मुहब्बत का वही दस्तूर क्यों है।
जवानी चांदनी है चार दिन की,
वो अपने हुस्न पर मग़रुर क्यों है।
उतर जाएगा इक झटके में नश्शा,
वो दौलत के नशे में चूर क्यों है।
वहां हर रुख़ पे ताबानी है लेकिन,
हर इक चेहरा यहां बेनूर क्यों है।
' मयंक ' इतना मसीहाओं से पूछो,
इक हर ज़ख़्में - जिगर नासूर क्यों है।
2
तेरी बस्ती में लगता मन नहीं है।
यहां लोगों में अपनापन नहीं है।।
किधर से आ रहे हैं घर में पत्थर,
पड़ोसी से मेरा अनबन नहीं है।
खिलौने कब कहां थे खेलने को,
खिलौने है तो अब बचपन नहीं है।
लगाए हम कहां तुलसी का पौधा,
हमारे घर मे अब आंगन नहीं है।
धड़कने को ये अब भी है धड़कते
दिलों में प्यार की धड़कन नहीं है।
करो मत अपने जिस्मों की नुमाइश,
ये भारत है, कोई लन्दन नहीं है।
' मयंक ' आसान जीवन जी रहा हूं,
तिजोरी में क़लम है, धन नहीं है।
3
समय का तकाजा है, जि़न्दाबाद कहो
मदारियों का तमाशा है जि़न्दाबाद कहो
मेरी ज़बान अभी तक नहीं बिकी लेकिन
तुम्हें किसी ने खरीदा है, जि़न्दाबाद कहो
जो चाहते हो कि इज्जत बची रहे जग में
तो सिर्फ एक तरीका है, जि़न्दाबाद कहो
नदी की बाढ़ से बच जाएं तो कहें हम कुछ
तुम्हारे गाँव में सूखा है, जि़न्दाबाद कहो
बहुत से ख्वाब दिखाए चुनाव से पहले
चुनाव का ये नतीजा है, जि़न्दाबाद कहो
अमीर लोगों के कदमों पे सर झुकाते रहे
यही हमारा सलीका है, जि़न्दाबाद कहो
' मयंक' आँखें उठाओ वो देखो रात गई
गगन पे भोर का तारा है, जि़न्दाबाद कहा
4
देखिए दावों की भाषा, लनतरानी हो गई
बाढ़ आई तो हुकूमत पानी पानी हो गई
मेरे दादा जान का कद सात फीट था इसलिए
कोट उनकी मेरे तन पर शेरवानी हो गई
कौन कहता है बुढ़ापा जा के आता ही नहीं
बाल रंगिए, क्रीम मलिए, नौजवानी हो गई
ढेर सारी उनकी दौलत मिल गई आखिर मुझे
मर गये अब्बा तो मेरी जि़न्दगानी हो गई
कोट और पतलून को सैल्यूट देते हैं सभी
इन दिनों धोती गुलामी की निशानी हो गई
खेतों में कालोनियां, शापिंग सेन्टर और मॉल
कैद गमलों में यहां खेती किसानी हो गई
प्यार में घर की सफाई मेरे जि़म्मे है ' मयंक'
काम वाली बाई घर की राजरानी हो गई
पता
ग़ज़ल - 5:/597 विकास खण्ड
गोमती नगर, लखनउ - 226010
मोबाईल - 09415418569
अलग रहना उसे मंजूर क्यों।
हक़ीक़त मुझसे कोसों दूर क्यों है।।
ये मुख़्तारे जहां से कोई पूछे,
कि इंसां इस क़दर मजबूर क्यों है।
हज़ारों इन्क़लाब आए हैं लेकिन,
मुहब्बत का वही दस्तूर क्यों है।
जवानी चांदनी है चार दिन की,
वो अपने हुस्न पर मग़रुर क्यों है।
उतर जाएगा इक झटके में नश्शा,
वो दौलत के नशे में चूर क्यों है।
वहां हर रुख़ पे ताबानी है लेकिन,
हर इक चेहरा यहां बेनूर क्यों है।
' मयंक ' इतना मसीहाओं से पूछो,
इक हर ज़ख़्में - जिगर नासूर क्यों है।
2
तेरी बस्ती में लगता मन नहीं है।
यहां लोगों में अपनापन नहीं है।।
किधर से आ रहे हैं घर में पत्थर,
पड़ोसी से मेरा अनबन नहीं है।
खिलौने कब कहां थे खेलने को,
खिलौने है तो अब बचपन नहीं है।
लगाए हम कहां तुलसी का पौधा,
हमारे घर मे अब आंगन नहीं है।
धड़कने को ये अब भी है धड़कते
दिलों में प्यार की धड़कन नहीं है।
करो मत अपने जिस्मों की नुमाइश,
ये भारत है, कोई लन्दन नहीं है।
' मयंक ' आसान जीवन जी रहा हूं,
तिजोरी में क़लम है, धन नहीं है।
3
समय का तकाजा है, जि़न्दाबाद कहो
मदारियों का तमाशा है जि़न्दाबाद कहो
मेरी ज़बान अभी तक नहीं बिकी लेकिन
तुम्हें किसी ने खरीदा है, जि़न्दाबाद कहो
जो चाहते हो कि इज्जत बची रहे जग में
तो सिर्फ एक तरीका है, जि़न्दाबाद कहो
नदी की बाढ़ से बच जाएं तो कहें हम कुछ
तुम्हारे गाँव में सूखा है, जि़न्दाबाद कहो
बहुत से ख्वाब दिखाए चुनाव से पहले
चुनाव का ये नतीजा है, जि़न्दाबाद कहो
अमीर लोगों के कदमों पे सर झुकाते रहे
यही हमारा सलीका है, जि़न्दाबाद कहो
' मयंक' आँखें उठाओ वो देखो रात गई
गगन पे भोर का तारा है, जि़न्दाबाद कहा
4
देखिए दावों की भाषा, लनतरानी हो गई
बाढ़ आई तो हुकूमत पानी पानी हो गई
मेरे दादा जान का कद सात फीट था इसलिए
कोट उनकी मेरे तन पर शेरवानी हो गई
कौन कहता है बुढ़ापा जा के आता ही नहीं
बाल रंगिए, क्रीम मलिए, नौजवानी हो गई
ढेर सारी उनकी दौलत मिल गई आखिर मुझे
मर गये अब्बा तो मेरी जि़न्दगानी हो गई
कोट और पतलून को सैल्यूट देते हैं सभी
इन दिनों धोती गुलामी की निशानी हो गई
खेतों में कालोनियां, शापिंग सेन्टर और मॉल
कैद गमलों में यहां खेती किसानी हो गई
प्यार में घर की सफाई मेरे जि़म्मे है ' मयंक'
काम वाली बाई घर की राजरानी हो गई
पता
ग़ज़ल - 5:/597 विकास खण्ड
गोमती नगर, लखनउ - 226010
मोबाईल - 09415418569
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