निरंजन
दिल के कुछ जज्वात छलक उठे स्याही में।
चलो फिर आज कुछ कागज को स्याह करते हैं।।
रह न जाय दिल में कोई शिकवा रुखसत तक।
अपने उन जज्वातों को तुम से बयां करते हैं।।
नई बोतल देख लगा अपने मर्ज की दवा होगी।
बोतल खुली तो निकली वही पुरानी शराब।।
आशा बंधीं थी इलाज - ए - मर्ज हो जाए शायद।
पर जालिम ने दबा की जगह पिला दी शराब।।
हसरत थी शायद कुछ और सुबहा देख पाऊँगा।
अपनो ने शाम होने से पहले ही बुझा दी चिराग।।
एक अनसुलझा सवाल लिये जलता रहा उम्र भर।
वो कौन सी घड़ी थी जब आशियाँ रोशन की मैंने।।
अपनी राहों को इस कदर ना भटकाओ यारों।
कि खुद साहिल भी अपनी मंजिल से भटक जाये।।
क्या रास्ते यही थे तेरे सफर - ए - मंजिल की।
जिस रास्ते से हम अभी गुजरते हैं।।
क्यों भटकता है शराब की ख्वाहिश में यारो?
तू कभी भी उसे हासिल ना कर पायेगा?
बस थाम ले डोर उसी मालिक की एकबार।
जो इस जहाँ को अपनी डोर पे नचाता है।।
चलो फिर आज कुछ कागज को स्याह करते हैं।।
रह न जाय दिल में कोई शिकवा रुखसत तक।
अपने उन जज्वातों को तुम से बयां करते हैं।।
नई बोतल देख लगा अपने मर्ज की दवा होगी।
बोतल खुली तो निकली वही पुरानी शराब।।
आशा बंधीं थी इलाज - ए - मर्ज हो जाए शायद।
पर जालिम ने दबा की जगह पिला दी शराब।।
हसरत थी शायद कुछ और सुबहा देख पाऊँगा।
अपनो ने शाम होने से पहले ही बुझा दी चिराग।।
एक अनसुलझा सवाल लिये जलता रहा उम्र भर।
वो कौन सी घड़ी थी जब आशियाँ रोशन की मैंने।।
अपनी राहों को इस कदर ना भटकाओ यारों।
कि खुद साहिल भी अपनी मंजिल से भटक जाये।।
क्या रास्ते यही थे तेरे सफर - ए - मंजिल की।
जिस रास्ते से हम अभी गुजरते हैं।।
क्यों भटकता है शराब की ख्वाहिश में यारो?
तू कभी भी उसे हासिल ना कर पायेगा?
बस थाम ले डोर उसी मालिक की एकबार।
जो इस जहाँ को अपनी डोर पे नचाता है।।
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