
छा गई घटा एक करुणा की
जल उठी हृदय मे एक ज्वाला
जिसको छू कर एक स्वप्न चला
हो गया हृदय का वो छाला ॥
जो स्नेह सिक्त जीवन बाती
दीपक उर बीच जलाती थी
छा गई घटा बन दर्द नई
प्राणों के मोह भगाती थी ।।
हो सीमा हीन अनन्त बीच
आशाएँ सब मंडराई है
मेरी पीड़ा की अमिट रेख
मम नयनन बीच समाई है ॥
माला गूँथी उच्छवासो की
पीड़ा का झीना तार मिला
टूटते थे सपने गिन गिन के
जीवन मे दर्द अपार मिला ॥
कण कण मे आँसू वेध रहे
असहाय हृदय की कोमलता
बिखरी थी व्यथा की फुलवारी
गीतों मे दुख की आहतता ॥
मन का रवि डूबा साँझ हुई
मन मे अतीत लहराया था
प्रतिबिंब घिरे धीरे धीरे
बन कोलाहल मंडराया था ॥
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