बलजीत सिंह बेनाम

उठा कर ग़म ग़रीबों के जो हरदम मुस्कुराता है
नज़र उसमें फ़रिश्तों का सभी को नूज़र आता है
मिले टी वी से गर फुर्सत तभी तो और कुछ सोचें
भला अब कौन रातों को परी किस्से सुनाता है
उसे जीने में आसानी बहुत होगी ज़माने में
अगर बेकार की बातों को इन्सां भूल जाता है
न जाने कैसी फ़ितरत का हुआ है आदमी देखो
जिसे भी प्यार करता है उसी को नोच खाता है
तेरी आँखों में जब भी डूब कर मरना मैं चाहूँ तब
किनारे पर ही क्यों मेरा यकीं दम तोड़ जाता है
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