केशव शरण की दो गज़लें
(1)
क्षत करता ख़ंजर चलता है
फिर ज़ख्म पे नश्तर चलता है
कच्चे फल को आंधी तोड़े
पकते पर पत्थर चलता है
मन रहता है उखड़ा - उखड़ा
दुख,संशय जमकर चलता है
भागा जाता वक्त मिलन में
फुरकत में मंथर चलता है
वो नैनों का जादू ठहरा
जो अब तक दिल पर चलता है
एक विधुर की मुश्किल है ये
घरवाली से घर चलता है
बिगड़ गया है देख रहे हैं
बंदा जो बनकर चलता है
इक- दूजे को आहत करना
यारों में अक्सर चलता है
बाहर का तो है दिख जाता
जाने क्या अंदर चलता है
(2)
प्यार जैसे गुनाह से बचना
इस तरह की सलाह से बचना
दिल लगा जब कटार काया से
किस तरह फिर कराह से बचना
सब चलेगी हसीन मनमानी
कब चलेगा निबाह से बचना
पारदर्शी वजूद से संभव
दूसरों की निगाह से बचना
बात अच्छी नहीं ज़माने में
इश्क करना विवाह से बचना
सीख लो एक बार तैराकी
फिर न होगा अथाह से बचना
चांद की चांदनी बिना मुश्किल
रात दुख की सियाह से बचना
हो न ग़म की विरल झड़ी में भी
आंसुओं के प्रवाह से बचना
ले चलेंगे खदेड़ने वाले
तुम मगर उस पनाह से बचना
एस 2/ 564 सिकरौल,वाराणसी 221002
मो - 09415295137
(1)
क्षत करता ख़ंजर चलता है
फिर ज़ख्म पे नश्तर चलता है
कच्चे फल को आंधी तोड़े
पकते पर पत्थर चलता है
मन रहता है उखड़ा - उखड़ा
दुख,संशय जमकर चलता है
भागा जाता वक्त मिलन में
फुरकत में मंथर चलता है
वो नैनों का जादू ठहरा
जो अब तक दिल पर चलता है
एक विधुर की मुश्किल है ये
घरवाली से घर चलता है
बिगड़ गया है देख रहे हैं
बंदा जो बनकर चलता है
इक- दूजे को आहत करना
यारों में अक्सर चलता है
बाहर का तो है दिख जाता
जाने क्या अंदर चलता है
(2)
प्यार जैसे गुनाह से बचना
इस तरह की सलाह से बचना
दिल लगा जब कटार काया से
किस तरह फिर कराह से बचना
सब चलेगी हसीन मनमानी
कब चलेगा निबाह से बचना
पारदर्शी वजूद से संभव
दूसरों की निगाह से बचना
बात अच्छी नहीं ज़माने में
इश्क करना विवाह से बचना
सीख लो एक बार तैराकी
फिर न होगा अथाह से बचना
चांद की चांदनी बिना मुश्किल
रात दुख की सियाह से बचना
हो न ग़म की विरल झड़ी में भी
आंसुओं के प्रवाह से बचना
ले चलेंगे खदेड़ने वाले
तुम मगर उस पनाह से बचना
एस 2/ 564 सिकरौल,वाराणसी 221002
मो - 09415295137
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