
कभी अक्षर की खेती करता
कभी अक्षर की खेती करता
कभी वस्त्र शब्दों के बुनता
बाग लगाता स्वर - व्यंजन के
मात्राओं की कलियां चुनता
मैं कवि, कृषक के जैसा
करता खेती कविताओं की
और कभी बुनकर बन करके
ढकता आब नर - वनिताओं की
भूत - भविष्य - वर्तमान सभी
तीनों काल मिले कविता में
बर्फ के मानिंद ठंडक मिलती
ताप मिलेगा जो सविता में
मैं भविष्य का वक्ता मुझको
सूझे तीनों काल की बातें
मेरी ही कविता को गायक
कैसे - कैसे स्वर में गाते
वेद पुराण गीता और बाईबल
ये सब मेरे कर्म के फल है
डरते मुझसे राजे - महाराजे
कलम में मेरी इतना बल है...
कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी, स.मा. (राज.)22201
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