दीपिका गहलोत ( मुस्कान )

फिर कुछ साल बाद जॉब और रहने की जगह दोनों ही बदल गए । कुछ साल बाद उसी जगह से गुजरते वक़्त फिर वही चाय कि स्टॉल को देखकर मेरे पैर अपने आप थम गए। अभी भी वो आंटी वही चाय की स्टॉल चला रही थी। मैं, मेरे पति के साथ उनसे मिलने चल पड़ी। मेरे मन की हिचक उनके द्वारा ना पहचाने जाने की उस वक़्त दूर हो गयी, जब उन्होंने दौड़ कर खुशी से मुझे गले लगा लिया।.
कुछ देर बात करके चाय पीने के बाद हम निकलने लगे और मेरे पति ने उन्हें चाय के पैसे देने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। बदले में उनका जवाब सुन कर मेरी आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए - " ये तो मेरी बेटी है, और बेटी से कोई चाय के पैसे लेता हैं " . उल्टा उन्होंने हम दोनों को शादी के बाद पहली बार मिलने के अवसर पर नेक दिया।. उनकी इस बात ने और रिश्ते निभाने के
अंदाज़ ने हम दोनों का दिल छू लिया . .।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें