हमारे पूर्वज
हमारा अभिमान है,
हमारे पूर्वज इस
देश की मूल संतान हैं,
हमारे पूर्वज कभी
शासक हुआ करते थे
इस देश के।
हमारे पूर्वजों को
गुलाम बनाकर
कराये गये घृणित कार्य
अब समय आ गया है
इन कार्यों को छोड़ने का
अपने पूर्वजों के गौरव को
आगे बढ़ाने का
बाबा साहब के दिखाए रास्तों
को अपनाते हुए,
बढ़ाने होंगे अपने कदम
उजाले की ओर।
खोखली बातें
विश्व
में
भारत का
ढंका बजाने
वालो,
वसुधैव कुटुम्बकम
का संदेश देने वालो,
विश्व पटल पर
स्वतंत्रता, समानता और
बन्धुत्व की अलख
जगाने वालो।
सुनो -
तुम्हारी ये
बाते खोखली है,
अभी भी देश के
नागरिक अमानवीय कार्य कर रहे हैं।
अफसोस !
रोज सीवरों में मर रहे हैं,
हाथ से मानव मल उठा रहे हैं।
ये कैसा राष्ट्र है?
आधुनिकता के,
वैज्ञानिकता के
नाम पर मंगल
पर जाने वालों।
अभी भी
देश के नागरिक
अपने उदर के "मंगल"
के लिए उतरते है
गंदे नालो में,
मैले की टोकरी अपने सर पर ढो रहे है।
क्या तुम्हें मालूम
नही ?
तुम्हारे इस घोर
कृत्य पर
पूरी मानवता
शर्मसार
हो रही है।
मैं कौन हूँ
हमेशा गलत कार्यो का
विरोध करने के,
अपने अधिकारों के लिए
लड़ने के
मेरे स्वभाव से
तुम बहुत भौचक्के हो
जाते हो- दोस्त
हर संभव प्रयास
करते हो तुम जानने का
कि मैं कौन हूँ ?
तो, दोस्त सुनो !
मैं महु की मिट्टी
की खुशबू हूँ।
मैं बाबा साहेब का वंशज हूँ।
जिन्होंने उखाड़ फेंके थे
तुम्हारे सब पाखण्ड
जलाया था तुम्हारे
महाराज का विधान
बीच चौराहे में।
अब समझे दोस्त
कि मैं कौन हूँ?
इसलिए-
मैं करता हूँ प्रतिरोध
हर अमानवीय काम
के खिलाफ।
यही सीखा है मैंने
अपने बाबा से !
मातादीन
जब 1857 की क्रांति
का दौर पूरे उफान पर था
तब तुमने पानी पिलाने से
किया था इनकार
देकर धर्म का वास्ता।
मैंने भी मन ही मन
चुन लिया था
प्रतिरोध का रास्ता।
तभी बो दिया था
मैंने बीज क्रांति का
बताकर तुम्हें
क्यों भरते हो दम्भ
श्रेष्ठ होने का
क्यों खोलते हो
अपने मुँह से
गाय और सुअर की
चर्बी से लेपित कारतूस।
गोरो के इस भेद को खोलने
की सज़ा के रूप में
मुझे मिला 'फांसी का फंदा'
लेकिन
मेरे गौरवशाली इतिहास
को नही लिख पाया
कोई ईमानदार बंदा।
मगर
मैं आशवस्त हूँ
मेरी आने वाली
नस्लें जरूर लिखेगी
झूठ को झूठ
सच को सच
तब तुम क्या करोगे
इस बनावटी इतिहास का?
आखिर कब तक
आखिर कब तक
करते रहोगे अमानवीय काम
ढोते रहोगे मलमूत्र
मरते रहोगे सीवरों में
निकालते रहोगे गंदी नालियाँ
ढोते रहोगे लाशें
आखिर कब तक
सहोगे ये जुल्म
कब तक रहोगे
खामोश ?
सुनो सफाईकर्मियों !
अब बजा दो
बिगुल
इन गंदे कामों के
खिलाफ,
हिला दो चूल
उन 'दिव्य सुख'
बताने वालों की,
तोड़ दो
सारे बंधन
जो-
बाधक बनते है,
तुम्हारी तरक्की के
रास्तों में।
दोहरी मानसिकता
किसी दलित से
मात्र छू भर जाने से
राम-राम चिलाने वालों।
अपने तन को
शुद्ध करने को
गौ मूत्र से नहाने वालों।
बेहरूपियों-
दलित स्त्रियों से
जोर-जबरदस्ती
या दबाव बनाकर
शारीरिक संबंध
बनाते वक्त
क्यों छूत नही मानते हो?
तब
कहाँ चले जाते हैं
तुम्हारे राम और श्याम?
कहाँ चले जाते हैं
तुम्हारे वेद और पुराण?
क्यों चकनाचूर नही हो जाता
तुम्हारे महाराज का विधान?
अरे बेहरूपियों
दोहरी मानसिकता
के साथ जीने वालों
तब कैसे आग लगाते हो
अपनी दूषित सोच को?
तब तुम्हारा सुरक्षा कवच
जनेऊ आड़े नहीं आता
तुम्हारे नीच कृत्यों में,
तब कैसे अनसुना कर
देते हो गीता का ज्ञान ?
तब छूत होने का डर
नही सताता तुम्हें।
अपनी दोहरी मानसिकता
की बीमारी में आग क्यों
नही लगा देते हो?
क्यों नही अपनाते हो
जियो और जीने दो
का मानवीय सिद्धांत।
नरेन्द्र वाल्मीकि
सहारनपुर (उ०प्र०)
मो. 9720866612
मेल narendarvalmiki@gmail.com
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