शलिनी सिंह
लुटी - पिटी सी अर्द्धनग्न वह।
भस्मभूत से अटी हुई थी।।
लिए दुशाला फटा - चिटा सा।
तन को अपने ढके हुए थी।।
मन मलीन तन जर्जर उसका।
भूखी मानों जन्मों की वह।।
बोल फुटते न कुछ मुखसे।
लज्जा से वह गड़ी हुई थी।।
मैंने पूछा अरे कौन तुम?
क्या परिचय है कुछ तो बोलो?
कवि सखी हूं, मैं अदनी सी।
व्यथा गांठ कुछ अपनी खोलो।।
मैं तड़प रही हूं देख दशा यह।
क्या आफत तुझ पर आई है?
क्या गरीब की लज्जा आज।
उतर यूं सड़कों पर आई है?
चीत्कार उठी वह हंसी व्यंग से।
क्या नहीं जानती है तूं मुझको।।
मैं हूं जननी जन्मभूमि तेरी।
नहीं पहचानती तूं मुझको!
वसन फटा यह चिथड़ा आंचल।
देख ले अपनी माता का।।
जिसने जांया औलाद तुम जैसा।
जो देख रही है बना तमाशा।।
मुझको लूटा तुम जैसों ने।
क्या नेता, क्या अधिकारी।।
हूं गरीब पर नहीं बेचती।
इज्जत कौड़ी में मैं अपनी।।
मगर मेरी संतानें ही अब ।
बेच रही है अस्मत मेरी।।
करके नग्न आभरण छीने।
छीन रही अब श्वास मेरी।।
खोकर अपनी मान - मर्यादा।
बनकर अब शैतान सभी।।
जनता का करती है शोषण।
बनकर अब हैवान यहीं।।
दुधमुंहें बच्चों से छीन निवाला।
भरती जेब यह सरकारें।।
बलात्कार और शोषण करती है।
बनकर दुशासन मेरी औलादें।।
ज़मीर नहीं है जिंदा इनका।
जीवित ही यह शव समान।।
गिरवी रख दी गैरत अपनी।
ऐसी भारत की संतान।।
सोई है यह जनता भारत की।
जिसको था मुझपर अभिमान।।
जिसने लड़ी जंग - ए - आज़ादी।
वह कायर, मूढ़ और बेईमान!!
कवि हैं तूं! तो जा उन्हें जगा दे।
क्रांति का अमृत उन्हें पिला दे।।
देख रही क्या मुख तूं मेरा।
मेरी बेटी है तो अलख जगा दें।।
कायर में पिघला फौलाद तूं भर दें।
शौर्य - पराक्रम उनमें भर दें।।
विश्व विजय का दुदुम्भी बजा।
मेरे हुओं में साहस ला दें।।
सत्य - असत्य का भान करा जा।
जीवन का अभिमान जगा जा।।
क्रांति का जाकर बिगुल बजा दें।
मेरा खोया सम्मान तूं वापस ला दें।।
थूं है तुम पर और इन जन पर।
जिनको न गौरव निज जीवन पर।।
बने हुए हैं स्वार्थ के कैदी।
जा देशप्रेम का पाठ पढ़ा दें।।
हां! तेरा उपकार ओ माता।
हूं कृतज्ञ इस अनुकम्पा का।।
जीवित हूं इस धारा पर जब तक।
मूल्य चुकाऊंगी हर ऋण का।।
सोई, चिंगारी को हवा मैं दूंगी।
आग हृदय में सबके भर दूंगी।।
न्याय - अन्याय का पाठ पढ़ाकर।
अपना नाम अमर कर दूंगी।।
जगाऊंगी सोते हर भारतवासी को।
जगाऊंगी सरकार और पुरवासी को।।
अक्रान्ताओं के खिलाफ मैं युद्ध छेड़ूगी।
ओ मां मत हो दुखी!
मैं अपने लहूं से तेरे पग धोऊंगी।।
लुटी - पिटी सी अर्द्धनग्न वह।
भस्मभूत से अटी हुई थी।।
लिए दुशाला फटा - चिटा सा।
तन को अपने ढके हुए थी।।
मन मलीन तन जर्जर उसका।
भूखी मानों जन्मों की वह।।
बोल फुटते न कुछ मुखसे।
लज्जा से वह गड़ी हुई थी।।
मैंने पूछा अरे कौन तुम?
क्या परिचय है कुछ तो बोलो?
कवि सखी हूं, मैं अदनी सी।
व्यथा गांठ कुछ अपनी खोलो।।
मैं तड़प रही हूं देख दशा यह।
क्या आफत तुझ पर आई है?
क्या गरीब की लज्जा आज।
उतर यूं सड़कों पर आई है?
चीत्कार उठी वह हंसी व्यंग से।
क्या नहीं जानती है तूं मुझको।।
मैं हूं जननी जन्मभूमि तेरी।
नहीं पहचानती तूं मुझको!
वसन फटा यह चिथड़ा आंचल।
देख ले अपनी माता का।।
जिसने जांया औलाद तुम जैसा।
जो देख रही है बना तमाशा।।
मुझको लूटा तुम जैसों ने।
क्या नेता, क्या अधिकारी।।
हूं गरीब पर नहीं बेचती।
इज्जत कौड़ी में मैं अपनी।।
मगर मेरी संतानें ही अब ।
बेच रही है अस्मत मेरी।।
करके नग्न आभरण छीने।
छीन रही अब श्वास मेरी।।
खोकर अपनी मान - मर्यादा।
बनकर अब शैतान सभी।।
जनता का करती है शोषण।
बनकर अब हैवान यहीं।।
दुधमुंहें बच्चों से छीन निवाला।
भरती जेब यह सरकारें।।
बलात्कार और शोषण करती है।
बनकर दुशासन मेरी औलादें।।
ज़मीर नहीं है जिंदा इनका।
जीवित ही यह शव समान।।
गिरवी रख दी गैरत अपनी।
ऐसी भारत की संतान।।
सोई है यह जनता भारत की।
जिसको था मुझपर अभिमान।।
जिसने लड़ी जंग - ए - आज़ादी।
वह कायर, मूढ़ और बेईमान!!
कवि हैं तूं! तो जा उन्हें जगा दे।
क्रांति का अमृत उन्हें पिला दे।।
देख रही क्या मुख तूं मेरा।
मेरी बेटी है तो अलख जगा दें।।
कायर में पिघला फौलाद तूं भर दें।
शौर्य - पराक्रम उनमें भर दें।।
विश्व विजय का दुदुम्भी बजा।
मेरे हुओं में साहस ला दें।।
सत्य - असत्य का भान करा जा।
जीवन का अभिमान जगा जा।।
क्रांति का जाकर बिगुल बजा दें।
मेरा खोया सम्मान तूं वापस ला दें।।
थूं है तुम पर और इन जन पर।
जिनको न गौरव निज जीवन पर।।
बने हुए हैं स्वार्थ के कैदी।
जा देशप्रेम का पाठ पढ़ा दें।।
हां! तेरा उपकार ओ माता।
हूं कृतज्ञ इस अनुकम्पा का।।
जीवित हूं इस धारा पर जब तक।
मूल्य चुकाऊंगी हर ऋण का।।
सोई, चिंगारी को हवा मैं दूंगी।
आग हृदय में सबके भर दूंगी।।
न्याय - अन्याय का पाठ पढ़ाकर।
अपना नाम अमर कर दूंगी।।
जगाऊंगी सोते हर भारतवासी को।
जगाऊंगी सरकार और पुरवासी को।।
अक्रान्ताओं के खिलाफ मैं युद्ध छेड़ूगी।
ओ मां मत हो दुखी!
मैं अपने लहूं से तेरे पग धोऊंगी।।
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