तेरे उष्ण बाहुपाश में, मैं लौह सी पिघलती हूं।
फिर जैसे तू चाहे ... उस रूप में ढलती हूं ।
तू चांद के जैसा ... डूब जाता है मुझ में,
और मैं सूरज सी, तुझ में कहीं निकलती हूं।
तू तो स्वतंत्र हो जाता है, पल में कीट सा,
मैं हिञ की आग में, सारी उम्र जलती हंू।
सच्चे ईश्क के किस्से होते हैं, फरेब से भरे,
हर दूसरी बात के, बाद बात मैं बदलती हूं।
वो और होते होंगे,जो दिल में रखते हैं तुझे,
मैं तो तुझे लफ्जों में,मढ़वा के रखती हूं ।
ये जहर ए इश्क है, बशर धीरे धीरे मरता है,
तेरी जुबां पे रखने से पहले, मैं इसे चखती हूं।
इतने भी भोले ना बनो तुम,कि मोहब्बत हो जाए ,
तुम कितने अच्छे लगते हो,कहने में झिझकती हूं।
फिर जैसे तू चाहे ... उस रूप में ढलती हूं ।
तू चांद के जैसा ... डूब जाता है मुझ में,
और मैं सूरज सी, तुझ में कहीं निकलती हूं।
तू तो स्वतंत्र हो जाता है, पल में कीट सा,
मैं हिञ की आग में, सारी उम्र जलती हंू।
सच्चे ईश्क के किस्से होते हैं, फरेब से भरे,
हर दूसरी बात के, बाद बात मैं बदलती हूं।
वो और होते होंगे,जो दिल में रखते हैं तुझे,
मैं तो तुझे लफ्जों में,मढ़वा के रखती हूं ।
ये जहर ए इश्क है, बशर धीरे धीरे मरता है,
तेरी जुबां पे रखने से पहले, मैं इसे चखती हूं।
इतने भी भोले ना बनो तुम,कि मोहब्बत हो जाए ,
तुम कितने अच्छे लगते हो,कहने में झिझकती हूं।
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