माहिर निज़ामी
इनकार नहीं यारों इजहार किया मैंने।
इक बार अगर उसका दीदार किया मैंने।।
गज़लों को सदा अपनी गुलज़ार किया मैंने।
हाँ यार मुहब्बत का व्यापार किया मैंने।।
सपनों को कभी मंैने अधूरा ही नहीं छोड़ा।
सपनों को हमेशा ही साकार किया मैंने।।
बुजदिल न समझना तुम भूले से कभी मुझको।
झूठों पे हमेशा ही खुद वार किया मैंने।।
खुद अपने लहू से ही श्रृंगार किया इसका।
माँ है ये मेरी धरती तो प्यार किया मैंने।।
दुश्मन जो अदब के है अब खैर नहीं उनकी।
लफ्जो को अगर माहिर तलवार किया मैंने।।
इस अंक के रचनाकार
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सोमवार, 29 नवंबर 2021
इनकार नहीं यारों ...
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