डॉ. पवन कुमार पाण्डे
बालों को सुखाती प्रिये, लटें सुलझाती प्रिये
छवि वो तुम्हारी प्रिये, आज भी निर्मल है।
बैन मृदु मंथर से, उठते जो अंतर से
ग नहीं अंतस से, अभी भी निश्चल हैं।
असिस्टेंट प्रोफेसर
निजामाबाद तेलंगाना
9848781540
बालों को सुखाती प्रिये, लटें सुलझाती प्रिये
छवि वो तुम्हारी प्रिये, आज भी निर्मल है।
बैन मृदु मंथर से, उठते जो अंतर से
ग नहीं अंतस से, अभी भी निश्चल हैं।
याद बीते पल आते, कमर के बल भाते
घुॅंघराले केश छाते, गालों के डिंपल हैं।
टूटी नहीं अभी डोर, खींच रही उसी ओर
देखने को तुम्हें मन, आज भी विकल है।
घुॅंघराले केश छाते, गालों के डिंपल हैं।
टूटी नहीं अभी डोर, खींच रही उसी ओर
देखने को तुम्हें मन, आज भी विकल है।
असिस्टेंट प्रोफेसर
निजामाबाद तेलंगाना
9848781540
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