डॉ. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
’ भड़क ’! पूरे जोरों के साथ दरवाजा दीवार से टकराया और दरवाजे से प्रवेश किया नशे में बुरी तरह लड़खड़ाते हुए शरीर ने। जो अपने आपको तो संभाल नहीं पा रहा था किन्तु अपने हाथ में संभाले था शराब की बोतल।
आज फिर रोज की तरह ही आकर वह वहाँ पड़ी टूटी हुई चारपाई पर लगभग गिर सा पड़ा। एक कोने में उसके दोनों बच्चे दुबके, सहमे पड़े थे। जिन्हें मालूम था कि आज पुनः वही रोज का किस्सा दोहराया जायेगा।
सामने चूल्हे पर उसकी बीवी ने वहीं से पूछा ’ आज फिर पीकर आये हो। आखिर क्यों बरबाद करने पर तुले हो’
’ हाँ आज फिर पीकर आया हूं, कोई तेरे बाप की कमाई से तो नहीं पी रहा हूं ... स्याली’। इसके साथ निकली तमाम सारी गालियाँ और हलक के नीचे उतारा एक घूँट शराब का।
उसकी बीवी ने गुस्से में आकर उसकी बोतल को छुड़ा कर फेंक दिया।
’ स्याली ... मेरी बोतल तोड़ दिया तूने ... तेरी औकात बहुत बढ़ गई है ... आज देखता हूं तुझे’गालियाँ देते हुए वह पूरे गुस्से में उठा अपनी बीवी को मारने के लिए पर वहीं लड़खड़ा कर गिर पड़ा। उसके शरीर में कोई भी हरकत नहीं हुई। वह खामोश हो गया सदा - सदा को।
उसकी पत्नी की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे? वह एकदम खामोश हो गई। अब उसके सामने पड़ी थी उसके पति की लाश जो खत्म हो गया उस शराब की वजह से जिसको खत्म करता आ रहा था वह न जाने कितने सालों से।
सम्पादक - स्पंदन
110 रामनगर,सत्कार के पास,उरई (जालौन) उ.प्र. 285001
मो.ः 9793973686,9415187965
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