राजेश सिंह
उनके हिस्से में नमी नहीं है
विरासत में नदी नहीं मिलती
मिलता है केवल पथरीला पहाड़
कभी - कभी रात के अंधेरों में
फूटता है झरना
इन्हीं पहाड़ों से
पर एक पुरुष का
यह निजी मसला है
समाज में ठोस जगह बनाने के लिए
वो अथाह मेहनत कर रहे हैं
उनके हाथ ठोस हो रहे हैं
उनके कंधे उनकी मांसपेशियां
ठोस हो रही है
आरोप है ...
उनके चेहरों के साथ - साथ
उनके दिल भी ठोस हो रहें हैं
सच्चाई व्यक्तिगत है
केवल पुरुष ही जानता है
लोग कहते हैं
एक स्त्री ही समझ सकती है दूसरी को
सच यह भी है कि
पुरुषों को कभी समझने की
जरुरत नहीं समझी गयी
अगर कोशिश होती
तो समझ आता
कि बहुत कठिन है
किसी का भी
एक पुरुष को समझ पाना
ठीक स्ति्रयों की तरह
स्ति्रयां जितना समझती हैं
या पुरुष जितना जानतें हैं
पुरुष उससे कई गुना
भाव छुपाए रहता हैं
कछुए सा पथरीले खोल के अंदर
यह व्यवहार पुरुषों की
वंशानुगत बीमारी है
इस अंक के रचनाकार
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मंगलवार, 30 नवंबर 2021
निजी मसला
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