(1)
बहुत लोग बारिश के आते हुए
रो लेते हैं आँखें बिछाते हुए
थकन इतनी है ज़िन्दगी से उसे
है मायूसी ज़िन्दा बताते हुए
बहुत चोट लगती है आवाज़ को
दिवारों में रस्ता बनाते हुए
मेरा दिल नहीं लग रहा जीने में
तेरा साथ झूठा निभाते हुए
मज़ा लेना ही पड़ता है जख्¸म का
दवा शायरी को बनाते हुए
तेरी बद्दुआ का असर इतना है
मुझे डर है पौधा लगाते हुए
(2)
जब भी हयात आब को बिसयार देती है
माँ की दुआ इलाह को ललकार देती है
रुलाये ख्¸वाब भी ना कोई उसके बच्चे को
जब माँ सुलाती है तो वो, थुथकार देती है
पल भर में भूल जाता है वो अपने दर्द को
माँ देख कर यूँ बच्चे को पुचकार देती है
बेरोज़गारी तो यूँ ही बदनाम फिरती है
फिलहाल रोजगार भी अफ़कार देती है
कुर्सी के आस - पास अगर पहुँचे अर्ज़ियाँ
तो मेज पे दबा भी ये सरकार देती है
गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश)
इस अंक के रचनाकार
.
सोमवार, 29 नवंबर 2021
तान्या सिंह - दो ग़ज़लें
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें