विद्या से दुख
एक बहू पशु - पक्षियों की भाषा जानती थी। आधी रात को श्रृगाल को यह कहता सुनकर कि नदी का मुर्दा मुझे दे दे और उसके गहने ले ले। नदी पर वैसा करने गई। लौटती बार श्वसुर ने देख लिया। जाना कि यह असती है। वह उसे पीहर पँहुचाने ले चला। मार्ग में करीर के पेड़ के पास से कौआ कहने लगा कि इस पेड़ के नीचे दस लाख की निधि है, निकाल ले और मुझे दही - सत्तू खिला। अपनी विद्या से दुख वह कहती है.. मैंने जो एक अविनय,कुनीति किया उससे घर से निकाली जा रही हूँ। अब यदि दूसरा करूंगी तो कभी भी अपने प्रिय से नहीं मिल सकूंगी अर्थात मार दी जाऊंगी।
जन्मांतर कथा
एक कहिल नामक कबाड़ी था, जो काठ की कावड़ कंधे पर लिए - लिए फिरता था। उसकी सिंहला नामक स्त्री थी। उसने पति से कहा कि देवाधिदेव - युगादिदेव की पूजा करो, जिनसे जन्मांतर में दारिद्रय - दुख न पावें। पति ने कहा - तू धर्म, गहली (पगली) हुई है, पर सेवक मैं क्या कर सकता हूँ? तब स्त्री ने नदी - जल और फूल से पूजा की। उसी दिन वह विषूचिका (हैजा) से मर गई और जन्मांतर में राजकन्या और राजपत्नी हुई। अपने नए पति के साथ उसी दिन मंदिर में आई तो उसी पूर्व पति दरिद्र कबाड़िए को वहाँ देखकर मूर्च्छित हो गई। उसी समय जातिस्मर जिसे अपने पूर्व जन्म का हाल याद हो, होकर उसने एक दोहे में कहा - जंगल की पत्ती और नदी का जल सुलभ था तो भी तू नहीं लाया। हाय! तेरे तन पर कपड़ा भी नहीं है और मैं रानी हो गई।
कबाड़ी ने स्वीकार करके जन्मांतर कथा की पुष्टि की।
न्याय घंटा
दिल्ली में अनंगपाल नामी एक बड़ा राय था। उसके महल के द्वार पर पत्थर के दो सिंह थे। इन सिंहों के पास उसने एक घंटी लगवाई कि जो न्याय चाहें उसे बजा दें, जिस पर राय उसे बुलाता, पुकार सुनता और न्याय करता। एक दिन एक कौआ आकर घंटी पर बैठा और घंटी बजाने लगा। राय ने पूछा - इसकी क्या पुकार है?
यह बात अनजानी नहीं है कि कौए सिंह के दाँतों में से माँस निकाल लिया करते हैं। पत्थर के सिंह शिकार नहीं करते तो कौए को अपनी नित्य जीविका कहाँ से मिले?
राय को निश्चय हुआ कि कौए की भूख की पुकार सच्ची है क्योंकि वह पत्थर के सिंहों के पास आन बैठा था। राय ने आज्ञा दी कि कई भेड़े - बकरे मारे जाएँ, जिससे कौए को दिन का भोजन मिल जाए।
न्याय रथ
चौड़ चोल या गौड़ देश में गोवर्धन नामक राजा के यहाँ सभामंडप के सामने लोहे के स्तम्भ पर न्याय घंटा था, जिसे न्याय चाहने वाला बजा दिया करता। एक समय उसके एकमात्र पुत्र ने रथ पर चढ़कर जाते समय जान - बूझकर एक बछड़े को कुचल दिया। बछड़े की माता ( गौ ) ने सींग अड़ाकर घंटा बजा दिया। राजा ने सब हाल पूछकर अपने न्याय को कोटि पर पहुँचाना चाहा। दूसरे दिन सवेरे स्वयं रथ पर बैठ राह में अपने प्यारे इकलौते पुत्र को बैठाकर उस पर रथ चलाया और गौ को दिखा दिया।
राजा के सत्व और कुमार के भाग्य से कुमार मरा नहीं।
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