डॉ.धीरेन्द्र सिंह ’ विभु’
चापलूसी के वशीकरण और राजनीति के समीकरण मे।
माननीय मदमत्त तो हो गये तुलादान और नोट भरण में।
याद रखो कालीन जब,पर तले से खिसकाया जाएगा।
ह जमीन कैसी हमसे वह रंग छुपाया ना जाएगा।
समझ सको तो सिर्फ इशारा ना समझो आगाज समझ लो।
सिंहासन बपौती नहीं है,राज नहीं, यह राज समझ लो।
कोई चमचा कोई लंगेठा तेल लगाके चला जाएगा।
समझ नहीं आया तो क्या हो गया समझ में ना आएगा।
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