टीका देशमुख
सिधवा हए पछुवच रहिगे,
चलउक के मान होगे,
जंगल म अंधरउटी छइस,
त,कोलिहा ह सियान होगे
कोन,काय करही जी..?
जब घुघवा ओकर मितान होगे।
आनेच मन हे,मईलाहा-मतलाहा
हमन तो सुघ्घर,फरिहर
अइसन,कतका गोहराबे,
दूसर के दोष देखइ म,
अपनो ह बीरान होगे।
जिनगी मिले हे चरदिनिया,
त हांस.गोठिया,
रहि परेम ले अऊ मया बगरा,
फुसकारथस अब्बड़,
कब ले बिकहर जबान होगे।
रहिथन मिल- जुर के
अऊ रहिबो तको,
नइ करन आन - अपन,
जात -धरम अऊ भगवान के,
तैं कतको चिचिया न जी,
तोर भड़कउनी बर,
हमर भैरा,कान होगे।
सहायक शिक्षक
तेंदुभाठा बकरकट्टा,
जिला .राजनांदगाँव
इस अंक के रचनाकार
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मंगलवार, 30 नवंबर 2021
कोलिहा
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