श्रीमती रजनी टाटस्कर
चलो बारिश मे हम कोई ठिकाना ढ़ूँढ़ लेते हैं
हमेशा साथ रहने का, बहाना ढ़ूँढ़ लेते हैं
दीवाने हैं जहाँ में हम दीवाना ढ़ूँढ़ लेते हैं
नज़र मंजिल पे रखते हैं निशाना ढ़ूँढ़ लेते हैं
बहुत दिन हो गये, खुलकर हँसे भी तो नही हैं हम
पुराने दोस्तों का चल, खज़ाना ढ़ूँढ़ लेते हैं
भला मिलता कहाँ है न्याय, लोगो को जमाने मे
जहाँ वाले शिकायत मे, फसाना ढ़ूँढ़ लेते हैं
नफा, नुकसान सब अपना, यहाँ बस सोचते रहते
किसी के दर्द मे भी ये, तराना ढ़ूँढ़ लेते हैं
भोपाल (म.प्र.)
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