विमल सागर
आ जाओ छांव के दामन में
बैठ गीत नया एक लिख देतें हैं
रिश्ते के मनका-मनका लरज़ते
अब गाँठ रिश्तों इजारबंद दे लेतें हैं....
बैठ गीत नया एक लिख देतें हैं
रिश्ते के मनका-मनका लरज़ते
अब गाँठ रिश्तों इजारबंद दे लेतें हैं....
गिले शिकवें दिलों में जितने हों
तिलांजलि उन्हें दे आज लेतें हैं
बसंत ऋतु बसंतराज आ रहे
नव कोंपल बन फिर जीतें हैं.....
तिलांजलि उन्हें दे आज लेतें हैं
बसंत ऋतु बसंतराज आ रहे
नव कोंपल बन फिर जीतें हैं.....
महक उठे फिर से यह रिश्ता
दोनों दिल धड़कन बन लेतें हैं
पलकों की ढलती शाम फिर हो
नयनों के जाम पी लेतें हैं.....
पलकों की ढलती शाम फिर हो
नयनों के जाम पी लेतें हैं.....
पकड़ो दोनों के छोर वहीं
उधड़न तुरपन कर लेतें हैं
तन दिखे न किसी रिश्तों का
देह बसन सिल लेतें हैं...
उधड़न तुरपन कर लेतें हैं
तन दिखे न किसी रिश्तों का
देह बसन सिल लेतें हैं...
फिर से महक दिल में होगी
हम बैठ वहीं फिर एक दूजे से
बात कोई फिर मुलाकात होगी....
प्रीत का रंग पड़ गया फीका
फिर बहार बसंत ले आतें हैं
छांव के दामन बैठ लो फिर से
हम गीत नया लिख लेतें हैं।।
फिर बहार बसंत ले आतें हैं
छांव के दामन बैठ लो फिर से
हम गीत नया लिख लेतें हैं।।
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